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ग्वालियर में संगीत साधकों ने बिखेरी स्वर लहरियाँ

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Dec 28 2021 4:39PM | Updated Date: Dec 28 2021 4:39PM
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ग्वालियर। मध्यप्रदेश के ग्वालियर में विश्व संगीत समागम तानसेन समारोह में आज हल्की बारिश की संगीतमयी थाप के साथ व्रह्म नाद के साधकों ने जब स्वर लहरियाँ बिखेरी तो लगा जैसे गान मनीषी तानसेन का आँगन दिव्य सुरों में सज गया है। खूबसूरत देश फ्रांस से आए संगीतज्ञ मार्टिन डबॉइस ने भारतीय शास्त्रीय संगीत के रागों के साथ संगत की तो लगा सारे रुके सुर एक साथ बजने लगे हैं। 

यहाँ बात हो रही है विश्व संगीत समागम तानसेन समारोह के तहत रिमझिम फुहारों के बीच सजी आज प्रात:कालीन सभा।मधुर थाप के साथ जैसे-जैसे बारिश का बरसना शुरू हुआ तो मीठे-मीठे सुरों ने भी बूँदों के साथ साम्य बना लिया। पश्चिमी देश फ्रांस से आये मार्टिन ने ताल वाद्य के अलावा कोरा एवं गायन भी किया। उनके द्वारा प्रस्तुत जैज संगीत सुनते ही बन रहा था। मार्टिन के गायन-वादन में भारतीय शास्त्रीय संगीत की झलक भी दिखाई दी। अफ्रीकन लोक संगीत से भी उन्होंने श्रोताओं को रू-ब-रू कराया। उनकी आकर्षक प्रस्तुति से एक नूतन संगीत गूँज उठा और रसिक मंत्रमुग्ध हो गए।
तानसेन समारोह की चौथी एवं मंगलवार की प्रात:कालीन सभा की शुरुआत पारंपरिक ढंग से स्थानीय भारतीय संगीत महाविद्यालय के ध्रुपद गायन के साथ हुई। राग देशी में प्रस्तुत ध्रुपद रचना के बोल थे ‘रघुवर की छवि सुंदर’। पखावज  पर संजय आगले और हारमोनियम पर मुनेन्द्र ंिसह ने संगत की। इस मनोहारी  प्रस्तुति में संगीताचार्य संजय देवले का कुशल संयोजन रहा।कर्नाटक संगीत की ख्यातिनाम गायिका सुश्री सुधा रघुरामन ने संगीत मोहक गायन से अलग ही रंगत बिखेरी। गान महृषि तानसेन को उन्होंने हिदुस्तानी शास्त्रीय संगीत अर्थात कर्नाटक शैली की मिसुरी भरी राग-रागनियों से स्वरांजलि अर्पित की।
तानसेन समारोह में प्रस्तुति देने दिल्ली से पधारीं सुश्री रघुरामन ने कर्नाटक शैली के राग ‘अमृत वर्षिणी’ में अपने गायन का आगाज़ किया। अपनी खनकदार आवाज से सुंदर स्वरावली का उपयोग करते हुए उन्होंने दक्षिण भारत के प्रसिद्ध संगीतज्ञ संत मुत्थु स्वामी की रचना का सुमधुर गायन किया। इसके बाद उन्होंने राग ‘वासंती’ और आदि ताल में  मराठी अभंग की मनोहारी प्रस्तुति दी। संत नामदेव द्वारा रचित इस अभंग के बोल थे ‘पाण्डुरंगे अनाथाच्चा दीनाचा दयाड़ा’। सुश्री रघुरामन ने राग ‘शुद्ध सारंग’ में जयदेव रचित अष्टपदी ‘सखीए येशी मदन..’ की कर्णप्रिय प्रस्तुति देकर बड़ी संख्या में मौजूद संगीत रसिकों को तालियाँ बजाने के लिए मजबूर कर दिया। यह प्रस्तुति मिश्र चप्पू ताल में निबद्ध थी, जिसे उत्तर भारत में रूपक कहा जाता है। 
उन्होंने राग ‘वृंदावनी सारंग’ में  दक्षिण भारतीय ‘तिल्लाना’ पेश कर अपने गायन को विराम दिया। उनके साथ बाँसुरी पर जी रघुरामन, मृदंगम पर एम व्ही चन्द्रशेखर और तबले पर शम्भूनाथ भट्टाचार्य ने कमाल की संगत कर गायन को नई ऊँचाइयाँ प्रदान कीं।सुधा रघुरामन कर्नाटक शैली में अब तक ढाई सौ से अधिक गीत रिकॉर्ड करा चुकीं हैं। वे देश के प्रसिद्ध संगीत समारोहों के साथ आॅस्ट्रेलिया व अमेरिका सहित दुनियाँ के कई देशों के प्रतिष्ठित मंचों पर भी ंिहदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति दे चुकीं हैं।
प्रतिभावान युवा गायक राहुल मिश्रा व रोहित मिश्रा की जोड़ी ने जब अपनी दानेदार व बुलंद आवाज़ में राग ‘देशी तोड़ी’  और तीन ताल में निबद्ध छोटा ख्याल ‘गूंद गूंद लाओ री मालनिया...’ का गायन किया तो बनारस घराने की गायकी जीवंत हो उठी।
तानसेन समारोह में मंगलवार की प्रात:कालीन सभा में  चौथे कलाकार के रूप में बनारस घराने की इस युवा जोड़ी की प्रस्तुति हुई। राग ‘देशी तोड़ी’ में सुंदर रागदारी के साथ बड़ा ख्याल पेश किया। एक ताल में निबद्ध बंदिश के बोल थे ‘चैन न आवे’। इसके बाद द्रुत गति में बंदिश गाकर अपने गायन को ऊँचाइयाँ तक पहुंचाया। युवा गायकों की जोड़ी ने रसिकों की फरमाइश पर जब बनारस घराने का प्रसिद्धि टप्पा  ‘गुलशन में बुलबुल चहकी.. गाकर सुनाया तो सभी मंत्रमुग्ध हो गए। प्रसिद्ध ठुमरी "गोरी तोरे नैन काजर बिन कारे.. और एक भजन सुनाकर अपने गायन को विराम दिया।
गायन की जुगलबंदी में हारमोनियम पर पंडित धर्मनाथ मिश्र, तबले पर अंशुल प्रताप  और सारंगी पर उस्ताद मजीद खान ने नफासत भरी और कमाल की संगत की।
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