अगर कोई पुरूष कभी गुलाबी रंग के कपड़े पहन ले, तो लोगों को ये सुनते जुरूर सुना होगा कि ये क्या लड़कियों का रंग पहन रखा है। अगर आपके साथ भी ऐसा होता है, तो गुस्सा होने के बजाए खुश हो जाइए, क्योंकि गुलाबी लड़कियों का नहीं पुरूषों का ही रंग है। ये बात हम नहीं कह रहे बल्कि इतिहास खुद इस बात का गवाह है।
वैसे आमतौर पर लोगों के मन में ये मिथ है कि पिंक कलर लड़कियों का होता है और ब्लू कलर लड़कों से जुड़ा होता है। ज्यादातर घरों में यदि लड़की जन्म ले, तो उसके कमरे की अलमारी से लेकर पालना, बेड , खिलौने तक सबकुछ पिंक कलर का डिजाइन किया जाता है। यहां तक की पिंक पार्टी ड्रेस तक को लड़कियों से गुलाबी रंग को हरसंभव तरीके से जोड़ दिया जाता है। ये मिथ लोगों में इतना गहरा है कि अगर कोई लड़का पिंक कलर पहन ले, तो उसे ही अहसज महसूस होने लगता है। मगर सवाल यह उठता है कि आखिर पिंक कलर लड़कियों का कलर क्यों माना जाता है, आखिर गुलाबी रंग लड़कियों की पहचान से कैसे जुड़ गया। लेकिन सच्चाई तो कुछ और ही है।
अगर इतिहास में गुलाबी पुरूषों का रंग है, तो ये लड़कियों की पहचान कैसे बना ये आप जरूर सोच रहे होंगे। इन कलरों के स्टीरियोटाइप तय होने में युद्ध का बड़ा रोल रहा है। फस्र्ट वल्र्डवॉर के दौरान कुछ ऐसी घटनाएं घटी जिससे ये स्टीरियोटाइप तय हुए। दरअसल, फस्र्ट वल्र्ड वॉर के समय नए रोजगार बने। जैसे टाइपिस्ट, सेके्रटरी, वेटर और नर्स । ये जॉब्स व्हाइट कॉलर जॉब नहीं थी, लेकिन मजदूरों वाली ब्लू कॉलर जॉब भी नहीं थीं, इसलिए इसे पिंक कॉलर जॉब कहा गया। पिंक कॉलर जॉब की एक सबसे बड़ी खासियत ये थी कि इस जॉब की तरक्की बहुत लिमिटेड थी, इसलिए इसे वुमन ऑरिएन्टिड जॉब बना दिया। बस इसी दौर से पुरूषों का गुलाबी रंग से मोह खत्म हो गया। एक नॉबेल “द ग्रेट गैट्सबी” में नायक से एक आदमी कहता है कि कोई भी खानदानी अमीर गुलाबी सूट नहीं पहनता है । इस बात का मतलब लड़के या लड़की से नहीं बल्कि अमीर और गरीब से है।