27 Apr 2024, 04:12:53 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-विनोद शर्मा 

इंदौर। आबकारी विभाग में हुए 41.33 करोड़ के फर्जीवाड़े में आबकारी आयुक्त ने जो पांच सदस्यीय जांच कमेटी बनाई थी उसने जांच पूरी करके रिपोर्ट आयुक्त को सौंप दी है। उपायुक्त आबकारी विनोद रघुवंशी द्वारा पूर्व में भेजी गई रिपोर्ट की तरह इस रिपोर्ट ने भी सहायक आयुक्त संजीव दुबे के लापरवाही में लिपटे कारनामों को बेनकाब कर दिया है। आला अधिकारियों की मानें तो दुबे पर गाज गिरना तय है, जिनके इंदौर में पदस्थ होने के बाद से ही इस घपले की शुरुआत हो गई थी। हालांकि इससे पहले सारा जोर उस 41.33 करोड़ की रिकवरी पर है जिसकी हेराफेरी की गई थी। रावजी बाजार पुलिस द्वारा 11 अगस्त 2017 को राजू दशवंत ओर अंश के खिलाफ केस दर्ज होने के साथ ही विभाग में हुए 41.33 करोड़ का घोटाला उजागर हुआ।
 
इसके बाद आबकारी आयुक्त अरुण कोचर ने इंदौर पहुंचकर जहां चालानों की जांच की वहीं ज्वाइंट डायरेक्टर (फाइनेंस) एसआर मौर्या और सहायक आयुक्त पीके झा सहित पांच सदस्यीय जांच कमेटी बनाई थी। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सोमवार को आयुक्त कोचर के समक्ष प्रस्तुत की। कोचर ने रिपोर्ट मंत्री जयंत मलैया और प्रमुख सचिव मनोज श्रीवास्तव को सबमिट की। 
 
रामायण पूरी हो जाने दो, महाभारत जरूर होगी
मप्र के सबसे बेबाक और धुरंधर अधिकारी के रूप में पहचाने जाने वाले वित्त विभाग के आला अधिकारी ने जांच रिपोर्ट पेश होने की पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि मैं मीडिया में अभी बयान नहीं देना चाहता। हमारा फोकस उन 41.33 करोड़ रुपए की रिकवरी पर है जिसका गबन हुआ। अभी यही हमारे लिए रामायण है। इसे पूरी हो जाने दो। कारनामों को अंजाम देने वाले कौरव बेनकाब हो चुके हैं। उनके खिलाफ महाभारत का ऐलान जल्द होगा। 
 
रिपोर्ट में सांठगांठ का खुलासा
उपायुक्त विनोद रघुवंशी की रिपोर्ट की तरह ही जांच कमेटी की रिपोर्ट में भी सहायक आयुक्त संजीव दुबे के गैरजिम्मेदाराना रवैये को उजागर किया है। नियमानुसार मासिक तौजी सत्यापन की जिम्मेदारी सहायक आयुक्त की थी जो उन्होंने नहीं निभाई। न ही बैंक से प्राप्त चालान का विभाग में प्राप्त रकम से मिलान किया। घपला एक-दो या 10-12 चालान के माध्यम से नहीं हुआ है। बल्कि ऐसे चालानों की संख्या 500 से अधिक बताई जा रही है। तीन साल की अवधि और इतने चालान में लापरवाही से दुबे की सांठगांठ स्पष्ट होती है। 

41 में से 18 करोड़ की वसूली
आंकड़ों के लिहाज से बात करें तो 2015-16 में तीन करोड़ 72 लाख 48 हजार 855 रुपए का गबन हुआ। 2016-17 में 20 करोड़ 18 लाख 91 हजार का। इसी तरह 2017-18 में 17 करोड़ 42 लाख की सेंधमारी हुई। इसके विपरीत बीते 10 दिनों में अब तक 2017-18 की गबन राशि में से करीब 14 करोड़ रुपए जमा हुए। ऐसे ही 2016-17 की हजम रकम से करीब 3.81 करोड़ जमा हुए हैं। अब तक 2015-16 में 3.72 करोड़ की जो हेराफेरी हुई उसमें कोई रकम प्राप्त नहीं हुई। 
 
बिना ब्याज के रिकवरी क्यों? 
संजीव दुबे अपनी कॉलर चमकाने के चक्कर में गबन की गई राशि की वसूली बिना ब्याज के कर रहे हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि 2016-17 में यदि 20 करोड़ रुपए आबकारी विभाग के खजाने में जमा होना थे लेकिन हुए नहीं। यदि 2017-18 में एक साल बाद यह राशि जमा हो रही है तो कतिपय लोगों द्वारा सालभर इस राशि का जो इस्तेमाल किया जाता रहा उस पर विभाग को न सिर्फ ब्याज वसूलना चाहिए बल्कि पैनल्टी भी लगाना चाहिए। 
 
46 दुकानों का खेल
देशी विदेशी
2015-16
4     2
2016-17
12    8
2017-18
12     8
टोटल
28  18
 
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