27 Apr 2024, 02:49:04 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

- विनोद शर्मा 

इंदौर। 2 पलसीकर...।  हरभजन सिंह, भूपेंद्र सिंह, सतवंत सिंह, चरणजीत सिंह और कमलजीत सिंह ने स्वयं के इस्तेमाल का शपथ-पत्र देकर नक्शा मंजूर करवाया था। बावजूद इसके यहां न सिर्फ फ्लैट-पेंट हाउस बन गए बल्कि बिक भी गए। जिला पंजीयक ने रजिस्ट्री भी कर दी। ऐसी एक-दो नहीं बल्कि शहर में 2000 से ज्यादा इमारतें जहां सात साल में 12 हजार से अधिक फ्लैट की  प्रकोष्ठ अधिनियम का उल्लंघन करते  हुए ले-देकर रजिस्ट्री कर दी गई।
 
1 अगस्त से रेरा पंजीयन जरूरी है। इससे जहां बड़े बिल्डरों पर लगाम कसना तय है। वहीं घर बनाने का शपथ पत्र देकर मल्टियां तानकर बेचने वाले जालसाज मजे में है। नगर निगम ने जहां इन्हें मनमाने निर्माण की छूट दे रखी है वहीं जिला पंजीयक कार्यालय में बैठे अधिकारी मनमानी रजिस्ट्रियां ठोंक रहे हैं। इसीलिए ऐसी बिल्डिंगों का ग्राफ आसमान छू रहा है। 
 
यह है प्रकोष्ठ अधिनियम 
फ्लैट मालिकों के हितों का ध्यान रखते हुए विधानसभा में मप्र प्रकोष्ठ स्वामित्व अधिनियम (अपार्टमेंट एक्ट)-2000 पारित किया गया था। एक्ट के अनुसार किसी प्लॉट या किसी खसरे की जमीन पर टॉउन एंड कंट्री प्लानिंग के ले-आउट और नगर निगम द्वारा स्वीकृत नक्शे के आधार पर किसी मल्टी या मार्केट का प्रकोष्ठ पंजीबद्ध होता है। बिना प्रकोष्ठ पंजीयन के फ्लैट्स की बिक्री हो नहीं सकती। प्रकोष्ठ पंजीयन के दौरान बिल्डर फ्लैटवार व मंजिलवार बताता है कि कुल निर्माण कितना मंजूर हुआ है। कितना बनाया है। कितना बिल्टअप है। कितना सुपर बिल्टअप। आने-जाने की व्यवस्था क्या है। अन्य सुविधाओं का समीकरण भी बताते हैं। 
 
फिर कैसे हो जाती है इनकी रजिस्ट्री
- 2 पलसीकर, 134-135-136-137 पल्हरनगर जोड़कर बनी बिल्डिंग जैसे कई उदाहरण है जिनका नक्शा स्वउपयोग के शपथ पत्र के आधार पर मंजूर हुआ था। जब खुद को ही रहना था तो फिर फ्लैट कैसे बने और बिके। 
- नक्शे में 10 हजार वर्गफीट निर्माण स्वीकृत है और निर्माण हुआ 15 हजार वर्गफीट। ऐसे में पांच हजार वर्गफीट अतिरिक्त निर्माण कैसे बिका। जिसका उदाहरण पांच साल में बनी हर दूसरी इमारत है। 
- बड़ी तादाद में ऐसी इमारतें हैं जिनका नक्शा या भू-उपयोग आवासीय था लेकिन मौके पर मार्केट बनाकर बेच दिया गया।  इंदौर में ऐसी रजिस्ट्रियों की संख्या हजारों में है। 

सालाना 10 करोड़ से ज्यादा का लेनदेन
- बीते दिनों बैराठी कॉलोनी में स्वउपयोग का नक्शा मंजूर कराकर एक बिल्डिंग बनी। उसमें दुकानें निकलीं। फ्लैट निकाले गए। हालांकि प्रकोष्ठ पंजीयन न होने के कारण रजिस्ट्री नहीं हो पाई। सौदा एग्रीमेंट पर हुआ। बाद में जिला पंजीयक कार्यालय के अधिकारियों ने अपनी फीस के रूप में पांच लाख रुपए लिए और प्रकोष्ठ पंजीबद्ध करके यूनिट  रजिस्ट्री कर दी। 
- यह राशि प्रोजेक्ट के कुल निर्माण और विवाद की स्थिति को देखते हुए घटती-बढ़ती है। कमर्शियल प्रोजेक्ट में पैसा ज्यादा मिलता है। यदि  एक बिल्डिंग के प्रकोष्ठ रजिस्टर्ड करने में पंजीयन अधिकारी औसत ढाई लाख रुपए लेता है और सालभर में ऐसी 500 बिल्डिंग बनती है तो इसका मतलब है 10 करोड़ से ज्यादा का लेनदेन होता है। 
 
बिल्डरों को दे रहे लाभ
टॉउन एंड कंट्री प्लानिंग, नगर निगम और जिला पंजीयक की जुगलबंदी से बिल्डर फलफूल रहे हैं। वरना कोई कारण नहीं कि गैरकानूनी निर्माण प्रकोष्ठ के रूप में रजिस्टर्ड होकर बिक जाए। अधिनियम सिर्फ उन्हीं मल्टियों पर लागू होता है जिनका निर्माण स्वीकृत नक्शे के अनुसार हुआ है। 
- अनुराग बैजल, एडवोकेट
 
गलत है, पर रोक नहीं सकते
स्वउपयोग के शपथ पत्र के साथ बनने वाली बिल्डिंग की रजिस्ट्री होना बिलकुल गलत है लेकिन कानूनन घर के किसी हिस्से का सौदा नहीं रोका जा सकता। यह देखना नगर निगम का काम है कि निर्माण वैध है या अवैध। वह क्या देख रहे हैं। 
- विनय द्विवेदी, एडवोकेट, दस्तावेज लेखक
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