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लाखों की राहत राशि ले ली... फिर कहा नहीं हुआ बलात्कार

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jul 12 2017 9:29AM | Updated Date: Jul 12 2017 9:29AM
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संतोष शितोले-
इंदौर। पिछले दो दशकों से शासन द्वारा अजाजजा वर्ग के लोगों के साथ हुए अत्याचार के मामले में दी जाने वाली राहत राशि में भले पारदर्शिता बरती जा रही हो, लेकिन कोर्ट में चल रहे इन क्रिमिनल केसों की हकीकत कुछ और है। चौंकाने वाला तथ्य है कि अजाजजा वर्ग की जिन बलात्कार पीड़िताओं को शासन ने राहत राशि उपलब्ध कराई, वही अपने साथ हुई घटना को लेकर कोर्ट में मुकर रही हैं। बीते तीन सालों में ऐसे 70 फीसदी पीड़ित बयान से पलट गए। इससे आरोपियों पर दोष सिद्ध नहीं हुआ और वे बरी हो गए। विडम्बना है, राहत राशि लेने के बाद कोर्ट में बयान से पलटने वाले फरियादी पक्ष के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई भी नहीं हो पाती।
 
अजाजजा वर्ग पर अत्याचारों के मामले में अजाक थाना द्वारा प्रारंभिक तौर पर मामला पाए जाने पर दोषियों के खिलाफ अजाक अधिनियम एक्ट की धारा में कार्रवाई की जाती है। बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, जातिसूचक शब्द, प्रताड़ना, हमला, हत्या आदि मामलों में आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा राहत राशि देने का प्रावधान है। सबसे ज्यादा छानबीन बलात्कार के मामलों में होती है। इंदौर जिले के देपालपुर, सांवेर, महू सहित अन्य थानों से अजाजजा संबंधी मामले अजाक थाना रैफर किए जाते हैं। पीड़ित को राहत राशि दिलाने का प्रस्ताव आजाकवि को भेजा जाता है।

ऐेसे बढ़ती गई राहत राशि
- 1996 में शासन ने अजाजजा अत्याचार निवारण अधिनियम एक्ट के तहत राहत राशि देने का प्रावधान किया। तब बलात्कार पीड़िता को 50 हजार रुपए दिए जाते थे। आधी राशि एफआईआर के बाद, शेष 25 हजार कोर्ट में दोष सिद्ध होने पर दी जाती थी। 
- दिसंबर, 2011 में संशोधन कर राहत राशि 1.20 लाख रुपए की गई। राशि देने का प्रावधान 50 फीसदी पहले, शेष बाद में देने का रहा।
- 2014 में संशोधन कर राहत 1.80 लाख रुपए कर दी। इसमें एक नियम लागू किया गया कि पहले एफआईआर के दौरान जो आधी राशि दी जाती थी, उसे अब चालान पेश करने के दौरान अनिवार्य किया गया। नियम में मेडिकल रिपोर्ट अनिवार्य की और उसे चालान के साथ पेश किया जाने लगा।
- 2014 में राहत चार लाख की गई। इसमें मेडिकल रिपोर्ट के साथ डॉक्टरों की ओर से चिकित्सा पुष्टिकारक से कराना अनिवार्य की गई। 50 फीसदी पहले दौर में, चालान पेश होने पर 25 फीसदी और बाकी 25 फीसदी दोष सिद्ध होने पर अनिवार्य की गई। 

यह है समिति का दायित्व
राहत राशि का प्रस्ताव राहत समिति के समक्ष रखा जाता है। समिति में कलेक्टर (अध्यक्ष), एसपी (मुख्यालय) तथा सहायक आयुक्त (आजाकवि) सदस्य होते हैं। समिति के फाइनल अनुमोदन के बाद ही पीड़िता को राशि किश्तों में दी जाती है। 2015 में 22 केसों (बलात्कार, हमला, प्रताड़ना आदि) में 11.70 लाख रुपए दिए गए। 2016 में 13 मामलों में 23 लाख, वहीं 2017 में अभी तक पांच मामलों में नौ लाख रुपए की राशि दी जा चुकी है। इधर, अजाजजा के सभी तरह के मामले लें तो जनवरी से जून 2017 तक कुल 335 केस हुए। इनमें भादंवि की धाराओं में छह को सजा हुई, जबकि अत्याचार एक्ट में 15 बरी हुए। 2013-2016 के दौरान 70 फीसदी पीड़िता कोर्ट में अपने साथ हुई बलात्कार की घटना में बयान से पलट गई, जबकि वे राहत राशि ले चुकी थीं।
 
एफआईआर के तुरंत बाद धारा 164 में बयान
नए संशोधित नियम के तहत बलात्कार की एफआईआर के तुरंत बाद पीड़िता के मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 164 में बयान कराए जाते हैं। महिला अधिकारी द्वारा ही पीड़ित महिला से पूछताछ की जाती है और इसकी वीडियो रिकॉर्डिंग भी कराई जाती है। इतनी पारदर्शिता होने की स्थिति में पक्ष विरोधी होने के मामले कम ही बनते हैं।
मनोज श्रीवास्तव, एसपी (अजाक) 

छानबीन के बाद जारी होती है राशि
विभाग का काम अजाक थाने से आए केसों को राहत समिति के समक्ष रखना है। पूरी छानबीन के बाद ही चालान में मेडिकल रिपोर्ट के बाद पहली राशि दी जाती है। अगर पीड़िताएं कोर्ट में अपने साथ घटित हुई घटना से मुकर जाती हैं तो इसका विभाग से कोई ताल्लुक नहीं है। दोनों मामलों में स्थिति अलग होती है।
-मोहिनी श्रीवास्तव, सहायक आयुक्त 
(आदिम जाति कल्याण विभाग)

बरी के अलावा रास्ता नहीं
बीते सालों में अजाजजा सहित अन्य वर्गों की बलात्कार पीड़िताएं अधिकांश केसों में बयानों से पलट चुकी हैं। उन्हें पक्ष विरोधी घोषित किया जाता है। ऐसे केस में कोर्ट के पास बरी करने के अलावा कोई रास्ता नहीं होता। अभियोजन की ओर से संबंधित फरियादी के खिलाफ धारा 340 व 344 में कोर्ट में आवेदन देने का प्रावधान है। कोर्ट बयान से मुकरने वाली फरियादी महिला के खिलाफ कार्रवाई करने में सक्षम है।
-बीजी शर्मा, उप संचालक (अभियोजन)
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