उमा प्रजापति-
भोपाल। ऐसे शावक (शेर के बच्चे) जो अपनी मां से बिछड़ गए हैं या मां को शिकारियों ने मार दिया है। इन शावकों को बचाने के लिए अब वन विभाग लैब्रडॉर प्रजाति के श्वानों की मदद लेगा। पहले इंदौर एवं रायपुर के टाइगर रिजर्व में इस तरह के प्रयोग किए गए, इसकी सफलता को देखते हुए विभाग ने अब इन श्वानों की सूची तैयार करना शुरू कर दी है। ताकि जरूरत पड़ने पर श्वानों के मालिकों से संपर्क किया जा सके। एक इसकी शुरूआत भोपाल से की जा रही है। इसके बाद इंदौर, जबलपुर एवं ग्वालियर में भी इस तरह का प्रयोग किया जाएगा।
दरअसल पिछले दिनों बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व पार्क में तीन शावकों को बचाने में नाकाम रहा वनविभाग अब इस रिसर्च में लगा है कि बिना मां के शेर के बच्चों को कैसे बचाया जा सकता है। अधिकारी बताते हैं कि दो साल से कम आयु के बच्चों को बचाना काफी मुश्किल होता है। खासतौर से ऐसे शावक जो कुछ खा, पी नहीं सकते। विभाग के अधिकारी भी यह मनाते हैं कि बांधवगढ़ में शावकों को बचाने में थोड़ी सी चूक हुई है। इन बच्चों को यदि मादा लैब्राडॉर के साथ रखकर उसका दूध पिलाया जाता तो शायद इनकी जान बच सकती थी।
मुश्किल होता है ऐसा डॉग मिलना
वनविभाग के अधिकारियों ने बताया कि यह बात सच है कि लैब्राडॉर (डॉग ब्रीड) शावकों को बचाने में मददगार साबित हो सकते हैं। इस नस्ल के कुत्ते बहुत ही अनुशासित होते हैं। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि उस श्वान के बच्चे भी उतने ही बड़े हों जितने शेर के बच्चे हैं। ऐसे में लैब्राडॉर के बच्चों के साथ शावकों को छोड़ा जा सकता है। लेकिन इस तरह के श्वान मिलना काफी मुश्किल होता है।
इंदौर और रायपुर में हुए प्रयोग
जानकारी के अनुसार फरवरी 2016 में बस्तर स्थित इंद्रावती टाइगर रिजर्व के कर्मचारियों को जंगल में भालू का एक और तेंदूए के दो शावक मिले थे। काफी देर बाद भी उनकी मां के नहीं आने पर तीनों को वन कार्यालय लाया गया। जहां चार दिन तक शावकों को गाय का दूध दिया गया, लेकिन वे इसे नहीं पी रहे थे। तीनों बेहद कमजोर हैं। डॉक्टर की सलाह पर उनकी जान बचाने के लिए डॉगी का दूध पिलाया गया था। इसके लिए डॉग ब्रिडरों से संपर्क किया गया। शहर के एक ब्रिडर ने जू प्रबंधन को लेबराडोर नस्ल की एक डॉगी दी।
थोड़ी देर की कोशिश के बाद शावकों ने डॉगी का दूध पीना शुरू कर दिया था। वहीं 20 नवंबर दो 2014 में इंदौर जू में भी शावक को दूध पिलाने के लिए पहले बकरी को लाया गया था। ज्यादा असर नहीं हुआ तो लेब्राडोर मादा श्वान को लाया गया। उसने करीब ढाई माह तक रोजाना लेब्राडोर मादा श्वान का दूध पिया और उसकी हालत में तेजी से सुधार आया था। इसके बाद उसे धीमे-धीमे मांस देना शुरू किया गया।
यदि कोई शावक मां से बिछड़ गया है, तो हमारी पहली कोशिश होती है कि बच्चे को मां से मिलाया जाए। यह मां नहीं मिलती है तो उसे हम किसी भी तरह से बचाने की कोशिश करते हैं, सर्च में यह सामने आया है कि लैब्राडॉर शावकों को बचाने में मददगार साबित हो सकते हैं, इसके लिए तैयारी की जा रही है।
आरपी सिंह, एपीसीसीएफ, वाइल्ड लाइफ मुख्यालय