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बॉलीवुड की मसाला फिल्मों जैसी है इस मसाले की कहानी

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 25 2017 10:00AM | Updated Date: Jun 25 2017 10:00AM
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पंकज मुकाती, स्टेट एडिटर दैनिक दबंग दुनिया

आजादी के पहले पाकिस्तान में शुरू हुई एक कंपनी, आजादी के बाद भारत का सबसे बड़ा ब्रांड बन गई। इसके बिना किचन अधूरा है, इस ब्रांड को खड़ा करने वाले शख्श ने दिल्ली के सड़कों पर तांगा भी चलाया और आज 500 करोड़ का कारोबार है। ये मसाला कहानी है एमडीएच की।

बॉलीवुड के मसाला फिल्मों की कहानी भी इस मसाला किंग के आगे कमजोर है। ये असली हीरो हैं, इनकी अपनी जिंदगी की कहानी में कई मसाले हैं। पाकिस्तान में जन्मे,विभाजन का दर्द झेला, परिवार का विवाद, कई काम किए। हिम्मत नहीं हारी शरणार्थी कैंप के बजाय मेहनत से बड़ा बिजनेस खड़ा किया। आज हिंदुस्तान के 70 फीसदी मसाला कारोबार पर इनका कब्जा है। शाहरुख, कैटरीना, धोनी नहीं अपने ब्रांड के ब्रांड एंबेसडर भी यही हैं। ये हैं एमडीएच मसाला वाले महाशय धर्मपाल गुलाटी। 

आपने एमडीएच मसाले के हर पैकेट और विज्ञापन में मूंछ वाले, पगड़ी पहने जिस शख्श को देखा वही हैं इस ब्रांड की ताकत। एमडीएच की कहानी दो भाग में है। एक हिंदुस्तान के विभाजन के पहले दूसरी उसके बाद। 1919 में सियालकोट पाकिस्तान में ये ब्रांड शुरू हुआ, महाशय चुन्नीलाल ने एक छोटी सी दुकान से मसाले का धंधा शुरू किया। बहुत कम समय में ‘देगी मिर्ची वाले’ के नाम से दुकान मशहूर हो गई। हिंदुस्तान के विभाजन के बाद चुन्नीलाल के बेटे महाशय धर्मपाल पाक से दिल्ली आ गए। वे 27 सितंबर 1947 को 1500 रुपए लेकर दिल्ली आए थे। इसमें से 650 रुपए में तांगा (घोड़ागाड़ी ) खरीदा और नई दिल्ली स्टेशन से कुतुब रोड़ तक इसे चलाते रहे। इसके पहले पाकिस्तान में साबुन, हार्डवेयर, मिरर जैसे कई काम में हाथ आजमा चुके थे। आखिर उन्होंने अपने खानदानी मसाले के बिजनेस को अपनाया। दिल्ली में करोलबाग के अजमल खान रोड पर लकड़ी के पटियों की एक छोटी से दूकान से मसाला बिजनेस शुरू किया। यहीं से शुरू हुआ ‘महाशय दी हट्टी’ यानि एमडीएच। 1950 के दशक में लोग खड़े मसाले खरीदकर घरों में उन्हें कूटकर, पीसकर तैयार करते थे। मसाले की शुद्धता खास देखी जाती थी। उस दौर में पैक्ड, तैयार मसाला बेचना आसान काम नहीं था। एमडीएच ने इस बात को समझा और क्वालिटी से कभी कोई समझौता नहीं किया। कंपनी कोई विशेष फार्मूला नहीं अपनाती बस जो फॉमूर्ले बरसों से भारतीय किचन में अपनाए जा रहे हैं, उन्हें अपनाया। आज एमडीएच 62 प्रोडक्ट बनाता है। कंपनी मसाला सीधे उनके खेत से खरीदती है, फिर उसे देसी तरीके से सुखाकर, साफ करके, मशीनों से पिसती है।  मसाले में ज्यादा हाथ लगने से इसका तीखापन कम हो जाता है। इसीलिए पूरी तरह से आॅटोमेटिक मशीनों का उपयोग करता है एक हजार स्टॉकिस्ट और करीब चार लाख रिटेल डीलर्स की मदद से ये घरों तक पहुंचता है। प्रतिदिन कंपनी 30 टन मसाला पैक करती है। 10 ग्राम से लेकर 500 ग्राम तक की पैकिंग होती है। प्रत्येक नये मसाले और पुराने मसालों की क्वालिटी भी समय-समय अपर कंपनी की अपनी प्रयोगशाला में टेस्ट की जाती है। जरा, भी संदेह होने पर प्रोडक्शन रोक दिया जाता है। कंपनी के चना मसाला, चाट मसाला जैसे 6 प्रोडक्ट ऐसे हैं जिनका 70 फीसदी बाजार पर कब्जा है। अपने विस्तार के तहत कंपनी ने दिल्ली, गुडगांव में तीन प्लांट लगाए। राजस्थान में पापड़, मैथी के 5 प्लांट लगाए। इसके अलावा गाजियाबाद, अमृतसर और लुधियाना से भी कंपनी प्रोडक्शन करती है। कंपनी का देश के बाहर भी अच्छा बिजनेस है। लंदन में कंपनी का खुद का आॅफिस है, वही संयुक्त अरब अमीरात के शारजाह में कंपनी की प्रोडक्शन यूनिट है। अमेरिका, ब्रिटेन, ईस्ट एशिया सहित करीब 100 देशों में ये कारोबार फैला हुआ है। 1500 रुपये लेकर पाकिस्तान से आए धर्मपाल गुलाटी का ये बिजनेस आज 500 करोड़ की मार्किट वैल्यू रखता है। एमडीएच को कई क्वालिटी अवार्ड भी मिले हैं।

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