- दबंग इंवेस्टिगेशन टीम
इंदौर। ये बात चौंकाने वाली है कि इंदौर और आसपास के इलाकों तक सीमित किसान आंदोलन अचानक मंदसौर, नीमच कैसे पहुंच गया और फिर इतना उग्र कैसे हो गया? दरअसल जिस प्रकार के संकेत मिल रहे हैं उनसे पता चलता है कि अफीम उत्पादक इस बेल्ट में सक्रिय डोडाचूरा तस्करों ने पुलिस का ध्यान भटकाने के लिए किसानों की आड़ में सत्ता विरोधी दलों के साथ मिलकर भाड़े के उपद्रवियों की सेवाएं लीं और उत्पात मचाया।
मालूम हो कि इन तस्करों की कांग्रेस शासनकाल में मौज रही है। कई कांग्रेसी व भाजपा नेता इनके संरक्षक हैं। कथित किसानों के उत्पाद की आड़ में तस्करों ने करोड़ों का डोडाचूरा सीमा पार पहुंचाया, वहीं हर मोर्चे पर विफल मुख्य विपक्षी राजनीतिक दल ने सरकार को नीचा दिखाने के लाशों पर सियासी रोटिया सेंकने की साजिश रची है।
बड़ी हद तक गांधीवादी तरीके से चलने वाला किसान आंदोलन आखिर अचानक हिंसक कैसे हो गया? और गांव-गांव तक इसकी आंच कैसे पहुंची, इसे गहराई से समझने की जरूरत है। मंदसौर, नीमच, पिपलिया मंडी, बरखेड़ादेव, मल्हारगढ़, नारायणगढ़ और दलोदा आदि स्थानों पर यह आंदोलन अग्निकांड के रूप में सामने आया। बताया जाता है कि इसका खाका पहले ही खींच दिया गया था। मंदसौर, नीमच जावरा और राजस्थान का चित्तौड़ जिला पूरे देश में काला सोना यानी अफीम की पैदावार के लिए जाना जाता है।
अफीम की पैदावार के बाद जो वेस्टेज होता है, उसे डोडाचूरा के नाम से जाना जाता है। पिछले सालों में सरकार ठेका प्रणाली के अनुसार करोड़ों रुपयों में इसकी नीलामी के ठेके जिलेवार देती रही है। करोड़ों के ठेके लेकर इस धंधे के मास्टरमाइंड और इस काली दुनिया के तस्कर करोड़ों लगाकर अरबों की गाढ़ी कमाई कर चुके हैं। यही कारण है कि इसके ठेकों को लेकर कई बार खूनी गैंगवार तक हो चुका है। इसमें मंदसौर के अनिल त्रिवेदी, राजस्थान में निंबाहेड़ा के हाजी बंधुओं सहित कई लोगों की जान गैंगवार में जा चुकी है।
मंदसौर के गोपाल सोनी, कोमल बाफना जैसे बड़े डोडाचूरा ठेकेदारों पर प्राणघातक हमले भी हो चुके हैं। इस साल केंद्र की मोदी सरकार ने ठेका प्रणाली में कुछ परिवर्तन किया। नई नीतियों के फलस्वरूप तस्करों के लिए इस काले कारोबार में मुनाफा कम और जोखिम अधिक हो चला था। डोडाचूरा का सबसे ज्यादा उपयोग भी पंजाब में होता है जो मंदसौर-नीमच बेल्ट से तस्करी के जरिए पहुंचता है।
पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश, श्रीलंका तक इस डोडाचूरे से बनने वाले नशीले सामान की भारी डिमांड है। जहां माल पहुंचाने के लिए ये तस्कर पुरजोर कोशिश करते हैं, लेकिन अब केंद्र सरकार की नई नीति से ऐसे तस्करों की इस डोडाचूरा को काला से सफेद बनाने यानी की एक नंबर में डोडाचूरा खपाने की कोशिश नाकाम हो चुकी है। इससे मंदसौर, नीमच और इसके आसपास के बड़े तस्करों की कमर टूट चुकी है। अब उनके पास डोडाचूरा को खपाने का कोई तरीका नहीं मिल रहा था। यहां सबसे बड़ी बात ये है कि पहली बारिश के साथ ही अफीम के डोडाचूरे में सैकड़ों सांप और बिच्छू पनप जाते हैं। ऐसे में ये किसान इसे अपने घर में नहीं रख सकते।
शासन के आदेश के अनुसार इसे नष्ट करना जरूरी है, लेकिन लचर प्रशासनिक व्यवस्था का फायदा उठाकर अफीम की खेती करने वाले कुछ तस्करों ने इसे ब्लैक में निकालने के तरीकों की खोज में थे, क्योंकि सूत्रों के अनुसार डोडाचूरा ब्लैक में 3 से 8 हजार प्रति क्विंटल जाता है, लेकिन इस तस्करी के खेल में डोडाचूरा की कालाबाजारी करने वाले कुछ स्थानीय निवासी और चालाक तस्कर दोनों के लिए पुलिस सिरदर्द बन चुकी थी। शिवराज सरकार की पैनी निगाह इनके अरमानों को...
पूरा करने में लगातार कड़ी बाधा बनी हुई थी। केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन और मप्र सरकार की सतर्कता ने तस्करों की नाक में दम कर रखा था। उन्हें अपना भविष्य अंधकार में नजर आने लगा था। मप्र में ‘उदार’ कांग्रेस राज के दौरान इन तस्करों ने जो चांदी काटी थी उसके दिन लदते नजर आ रहे थे। इस बीच किसानों का आंदोनल इन तस्करों को एक तीर से दो निशाने के रूप में नजर आया और इसका पूरा लाभ उठाने की कोशिश भी इन्होंने की। पिछले महीनों में सैकड़ों डोडाचूरा तस्करों पर प्रकरण दर्ज हुए हैं।
ऐसे में अचानक किसान आंदोलन जो कि मूल रूप से किसान कर रहे थे तस्करों के लिए संजीवनी बूटी बनकर आया और उन्होंने मध्यप्रदेश, राजस्थान की पुलिस को उलझाने के लिए किसानों के इस आंदोलन को हाईजैक किया। साथ ही खुद तो आंदोलन में घुसे ही कुछ किसानों को उकसाने का काम किया और अपने गुर्गों से भी हिंसा फैलाने के काम को अंजाम दिलवाया। उनकी ये चाल सटीक बैठ गई और सारा पुलिस फोर्स पूरी तरह से किसानों के आंदोलन में लग गया।
सूत्रों की मानें तो इसकी आड़ में धड़ल्ले से तस्करी की गई। और जारी भी है। पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों पर इस आंदोलन की आंच भी आई। इसके बाद कुछ अधिकारियों ने किसान आंदोलन को देखते हुए अपने हाथ पीछे खींच लिए, लेकिन जहां-जहां हिंसक किसान आंदोलन हुआ उन क्षेत्रों के कुछ संदिग्ध लोगों की कॉल डिटेल खंगाली जाए तो पुलिस इस हिंसक आंदोलन और आगजनी के गुनहगारों तक पहुंच सकती है।
पूरी संभावना जताई जा रही है कि गहन छानबीन से जो परिणाम सामने आएंगे उससे यह बात साबित हो सकती है कि किसानों के आंदोलन की आड़ में निश्चित ही तस्करों की जमात एक तीर से दो निशाने की साजिश रच रही है। अर्थात सरकार की बदनामी और तस्करी को अंजाम देना। केंद्र की नीतियों को सही तरीके से लागू करने में पूरी ताकत लगा रही शिवराज सरकार को किसान आंदोलन के नाम पर ‘निपटाने’ के लिए इस साजिश में तस्कर, विपक्षी दल और खुद सत्तादल के असंतुष्टों ने भी जोर लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। फिलहाल साजिश नाकाम होती नजर आती है।