उमेश भारद्वाज-
इंदौर। केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने 10 दिसंबर, 2015 को एक बयान देकर देश में हो रहे भ्रष्टाचार की पोल खोल दी थी। उन्होंने कहा था ‘आरटीओ देश का सबसे ज्यादा भ्रष्ट संस्थान है। वे जंगल में रहने वाले चंबल के डकैतों से भी ज्यादा लूटते हैं।’ यह बयान करीब डेढ़ वर्ष पहले दिया था। लेकिन इंदौर आरटीओ में भ्रष्टाचार आज भी वैसा ही है, जैसा डेढ़ वर्ष पहले था। 23 मई, 2017 को भी उत्तरप्रदेश के परिवहन मंत्री की जुबान फिसली और प्रशिक्षु आरटीओ अफसरों को पैसा कमाने के लिए न्यौता दे डाला।
मंत्रीजी के बयान के बाद दबंग दुनिया ने मामले की तह तक जाने का फैसला किया। भ्रष्टाचार गांव, शहर, जिला या राज्य की सीमाएं देखकर नहीं किया जाता। अगर उत्तरप्रदेश का आरटीओ भ्रष्ट है तो इंदौर भी इससे जुदा नहीं है। यहां भी भ्रष्टाचार आरटीओ कार्यालय की दहलीज से लेकर साहब के कैबिन तक है। दबंग रिपोर्टर अपने खुफिया कैमरे के साथ निकला और ‘हाल ए भ्रष्टाचार’ जानने का प्रयास किया।
कई दलालों से की मुलाकात
दलाल ने हमें सभी दस्तावेज बताए। कहा कि लर्निंग लाइसेंस दो से तीन घंटे में दे दूंगा। रिपोर्टर ने फीस पूछी तो उसने पहले 1400 रुपए बताई, जोर देने पर 1300 रुपए बता दिए। उसने दावा किया कि सरकारी प्रक्रिया पूरी करोगे तो 15 से 20 दिन लग जाएंगे। इसके बाद हम एक और दलाल के पास पहुंचे। उसने भी पहले तो 1400 रुपए में लाइसेंस की सहमति दी, शक होने पर उसने कहा कि फिलहाल समय नहीं है।
अंदर का सच
आरटीओ में हर दिन लगभग 200 लोग अलग-अलग काम कराने के लिए जाते हैं। दलाल सरकारी फीस से दो से तीन गुना तक वसूलते हैं। अब सवाल यह है कि सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों की मिलीभगत के बगैर क्या यह कारगुजारी मुमकिन है? दलालों के इस नेटवर्क और उनकी कमाई के आकलन के लिए हमने कई दलालों से संपर्क किया। भ्रष्टाचार की रेट लिस्ट भी जुटाई।
दलाल ने क्या कहा
किसान ने बताया दूसरे दलाल से संपर्क किया तो बड़ी मुश्किल से वह 2000 रुपए में लाइसेंस बनाकर देने को तैयार हुआ। उसे वाहन के फिटनेस के लिए 4000 रुपए फीस बताई गई। परेशानी इतनी ही नहीं है। रुपए नहीं देने पर लोगों को छोटे-छोटे काम के लिए टरकाया जाता है।
हर दिन दो लाख से ज्यादा की दलाली : आरटीओ आॅफिस में माना जाए कि हर दिन लाइसेंस, फिटनेस, आरसी और नंबर प्लेट के करीब 200 लोगों के काम होते हैं और एक व्यक्ति से औसतन एक हजार रुपए की अवैध वसूली होती है तो हर दिन दो लाख रुपए सीधे दलालों और सहयोगी कर्मचारियों की जेब में जाते हैं।
कैसे होता है भ्रष्टाचार
दबंग पड़ताल में नावदा पंथ का एक किसान मिला। वह दलालों के संपर्क में था। हमने जब उससे बातचीत के लिए कहा तो उसने पहले तो इनकार कर दिया, फिर फोटो नहीं छापने की शर्त पर कई राज खोले। उसने बताया वह कई दलालों से मिला लेकिन ज्यादातर ने 2500 रुपए की फीस बताई। सभी ने कहा सरकारी नियमों में लाइसेंस आसानी से नहीं बन पाएगा।