सुधीर शिंदे इंदौर। चार पहिया वाहन की नई सीरीज ‘सीवी’ 17 जनवरी से शुरू हुई, लेकिन अफसरों ने 18 दिन बाद भी 222 वीआईपी नंबर आॅनलाइन नीलामी में शामिल नहीं किए। इस कारण 21 जनवरी और 1 फरवरी को हुई नीलामी में इस सीरीज के वीआईपी नंबरों की बोली नहीं लगाई जा सकी। समय पर नीलामी न होने से टैक्स का टारगेट पूरा करने की मशक्कत कर रहे परिवहन विभाग को करोड़ों का नुकसान हुआ। जबकि सीरीज शुरू होने के बाद से डीलरों ने नई गाड़ी खरीदने वालों को वीआईपी छोड़ अन्य पसंदीदा सैकड़ों नंबर पांच-पांच हजार रुपए में बेच दिए।
पसंदीदा के लिए महीनों से इंतजार
मई 2014 से वीआईपी नंबर की नीलामी शुरू हुई। तब से सीरीज खुलने के बाद फाइलों की वीआईडी एनरोलमेंट शुरू होते ही सभी नंबरों को बिक्री और वीआईपी नंबरों को नीलामी के लिए आॅनलाइन किया जाता रहा। इस बार स्मार्ट चिप, विभाग के बाबू और अन्य अफसरों की मनमानी से 18 दिन बाद भी 1 से 9999 नंबर में से 222 वीआईपी नंबर नीलामी के लिए आॅनलाइन नहीं हो सके। इस कारण महीनों से नई सीरीज खुलने का इंतजार कर रहे आवेदकों को 21 जनवरी और 1 फरवरी को हुई नीलामी के बाद निराश होना पड़ा।
साजिश की भी संभावना
सूत्रों ने बताया नियम स्पष्ट होने के बावजूद इतनी बड़ी चूक को विभाग के ही कई लोग साजिश बता रहे हैं। उनका कहना है कि नंबर आॅनलाइन करने का जिम्मा विभाग के एक सीनियर बाबू के पास है। नंबर प्रेमियों ने आॅनलाइन नहीं दिखने पर संबंधित बाबू से चर्चा भी की, लेकिन उन्होंने सभी को चलता कर दिया। बताते हैं रसूखदारों को ऊंची कीमत पर देने का खेल करने के लिए नंबर रोके गए थे। हालांकि आरटीओ डॉ. एमपी सिंह का कहना है कि किन्हीं कारणों से ये आॅनलाइन नहीं हो सके। एक-दो दिन में प्रक्रिया पूरी कर 8 फरवरी से सभी नंबर आॅनलाइन दिखेंगे।
दो से ढाई करोड़ मिलते हैं
प्रत्येक सीरीज के वीआईपी नंबरों से विभाग को दो से ढाई करोड़ रुपए का राजस्व मिलता है। अभी तक 0001 नंबर 14.60 लाख, 0007-6.71 लाख, 9999-12.40 लाख, 0011-3.82 लाख, 5000-3.20 लाख और 0009 नंबर 2.80 लाख की ऊंची बोली में नीलाम हुए।
ये डीलरों ने बेचे -101 से 151 तक, इसके अलावा 181, 214, 800, 1110, 621, 2220, 5551, 5550 जैसे कई नंबर डीलरों ने खरीदारों की पसंद के मुताबिक पांच-पांच हजार रुपए में बेच दिए। यदि वीआईपी नंबर भी आॅनलाइन होते तो वे भी नीलाम हो जाते।