विनोद शर्मा इंदौर। जिस बीजी कंपनी के खिलाफ प्लॉटधारक अपने हक के लिए बार-बार कलेक्टर और डीआईजी का दरवाजा खटखटा रहे हैं उसने ‘मौर्या हिल्स’ की प्लानिंग ही ऐसी तगड़ी की थी कि लोगों को प्लॉट पाने में पसीने आ जाए। शिकायतकर्ताओं के माध्यम से ‘सरकार’ तक पहुंचे दस्तावेजों के अनुसार, कंपनी और उसके सर्वेसर्वा उत्तम झंवर ने सुविधाओं का सब्जबाग दिखाकर भूरी टेकरी पर कॉलोनी तो काटी लेकिन प्लॉटों की रजिस्ट्री कृषि भूमि के रूप में कर दी।
खजराना की 133.30 एकड़ जमीन पर बीजी कंपनी प्रालि ने मौर्या हिल्स कॉलोनी 1997 में काटी थी। स्विमिंग पूल, बगीचे, लैंडस्केपिंग और 24 घंटे सुरक्षा जैसी सुविधाएं गिनाई, लेकिन 20 साल बाद भी कॉलोनी नहीं बसी।
हर प्लॉट सवा दो करोड़ का
इसमें से एक दर्जन खसरे अब भी बीजी कंपनी प्रा.लि. और झंवर परिवार के नाम ही दर्ज है। 133 एकड़ में बसी इस कॉलोनी का नेट प्लॉट एरिया 78.47 एकड़ था। यदि कंपनी के खसरें जोड़ लें तो भी हर एक प्लॉट 11746 वर्गफीट का है। इतनी जमीन की मौजूदा कीमत 2 करोड़ 34 लाख 92 हजार 461 रुपए है। मतलब 291 प्लॉटों की जमीन का खेल 680.94 करोड़ का है। बाकी 54 एकड़ जमीन अलग।
ऐसे आते हैं पकड़ में
-- कंपनी ने जो नक्शा दिखाकर प्लॉट बेचे थे शिकायतों के साथ वह नक्शा भी कलेक्टर और डीआईजी के पास पहुंच चुका है। नक्शे में कॉलोनी की प्लानिंग साफ नजर आती है।
-- कंपनी ने 1997 में इसी नक्शे के अनुसार मुरम की रोड, डेÑनेज लाइन और बिजली के खम्बे लगाए थे। मौके पर ड्रेनेज लाइन, तिराहो या चौराहों पर बनी रोटरी के साथ ही सड़क भी साफ नजर आती है।
-- इस सड़क को गुगल अर्थ के साथ ही गुगल ट्रेफिक मेप पर भी आसानी से देखा जा सकता है।
-- राजस्व विभाग का जो आॅनलाइन भू-नक्शा है उस पर जमीन के बटांकन और उनके पास से निकली हुई रोड साफ नजर आती है।
-- कंपनी अब यह समझाने में असमर्थ है कि कृषि भूमि के रूप में बेची गई जमीन पर सड़क, सीवरेज, रोटरी, बिजली के खम्बे और पानी के ओवर हेड टैंक की क्या जरूरत पड़ी थी।
यह थी कॉलोनी की प्लानिंग
कुल जमीन 133 एकड़
प्लानिंग एरिया 113.02 एकड़
कनाड़िया रोड में जमीन 3.05 एकड़
नेट प्लानिंग एरिया 109.97 एकड़
प्लॉट एरिया 78.47 एकड़
क्लब हाउस 2.48 एकड़
हॉस्पिटल 1.52 एकड़
स्कूल 1.50 एकड़
पार्क/गार्डन/वॉटर 11.39 एकड़
रोड 14.61 एकड़
ऐसे खेला खेल
1975 के मास्टर प्लान में जमीन का भू-उपयोग आवासीय नहीं था। यहां कॉलोनी की अनुमति नहीं मिल सकती थी। यही वजह थी कि बीजी कंपनी की मौर्या हिल्स का अनुमोदन भी नहीं हुआ।
भू-उपयोग भिन्न होने से मौर्या हिल्स के प्लॉटों का सौदा कृषि भूमि बताकर किया गया, जैसे कि फार्म हाउस के लिए होता है। चूंकि प्लॉट की साइज बड़ी थी इसीलिए कृषि भूमि या फार्म हाउस बताने में कंपनी को कोई दिक्कत नहीं हुई।
तय हुआ था कि कॉलोनी का विकास नए मास्टर प्लान-21 के अनुसार होगा। 2008 में प्लान लागू हो गया। जमीन का भू-उपयोग आवासीय हो गया लेकिन तब तक जमीन के भाव बढ़ चुके थे इसीलिए झंवर परिवार की नियत डोल गई। इसलिए उन्होंने इसे अटकाए रखना और टीएनसी नहीं कराई।
चूंकि टीएनसी हो जाती तो नक्शे में स्कूल, हॉस्पिटल, क्लब हाउस, पार्क प्ले ग्राउंड के रूप में छोड़ी गई 16.89 एकड़ जमीन से कंपनी का आधिपत्य चला जाता। क्योंकि नक्शे के अनुरूप न सिर्फ जमीन छोड़ना पड़ती बल्कि इन सुविधाओं को विकसित करके भी देना पड़ता।
आज की स्थिति में पूरी जमीन पर एकीकृत तार फेंसिंग है। झंवर परिवार के अलावा अन्य कोई अंदर नहीं जा सकता।