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इंदौर में 40 प्रतिशत जज कम, जिले में 140 के बजाए 75

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Nov 28 2016 10:50AM | Updated Date: Nov 28 2016 10:50AM
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तेज कुमार सेन इंदौर। देश में जजों की कमी को लेकर सरकार और न्याय पालिका के बीच तकरार चल रही है, वहीं इंदौर भी इससे अछूता नहीं है। यहां भी करीब 40 फीसदी जज कम हैं। इसी कारण लंबित प्रकरणों की संख्या बढ़ती जा रही है।

जिले की बात करें तो यहां करीब 140 पद स्वीकृत हैं, जिनमें जिला जज, एडीजे से लेकर सिविल जज तक शामिल हैं। सूत्रों के अनुसार, 140 में से बमुश्किल 75 जज पदस्थ हैं। अकेले अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के ही नौ पद खाली हैं। यही स्थिति इंदौर हाई कोर्ट की है। यहां स्वीकृत जस्टिस की संख्या 13 है, पर वर्तमान में आठ ही पदस्थ हैं। कुटुम्ब, श्रम न्यायालय से लेकर उपभोक्ता फोरम भी जजों की कमी से जूझ रहे हैं। इसके चलते कुटुम्ब न्यायालय इंदौर को तो लिंक कोर्ट बनाकर अन्य जिलों से जोड़ा गया है। यानी यहां के जज वहां के प्रकरण भी सुनेंगे। जजों की कमी को लेकर इंदौर अभिभाषक संघ भी प्रशासनिक जस्टिस पीके जायसवाल को ज्ञापन सौंप चुका है।

न्यायपालिका और केंद्र में चल रहा टकराव
जजों की कमी को लेकर दो दिन पहले उस समय तकरार की स्थिति बन गई थी, जब चीफ जस्टिस आॅफ इंडिया टीएस ठाकुर ने केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित कर कहा था कि देश में कोर्ट रूम तो हैं, लेकिन इनमें जज नहीं है। देश के हाई कोर्ट में ही करीब 500 पद खाली हैं। ट्रिब्यूनल्स को भी सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। ये पद भरने के लिए सरकार को प्रस्ताव भेजे गए, लेकिन अभी लंबित हैं। इसके जवाब में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि इसी साल हाई कोर्ट में 120 पद भरे गए। निचली कोर्ट में जो पांच हजार पद खाली हैं, इन्हें भरने का काम न्यायपालिका को ही करना है। इससे सरकार का कोई लेना-देना नहीं है। इस बीच सरकार के अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने न्यायपालिका को ‘लक्ष्मण रेखा’ की याद दिला दी थी।

बढ़ रहे लंबित मामले
जजों की लगातार कमी के कारण लंबित प्रकरणों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। जिले में लंबित प्रकरण करीब डेढ़ लाख हैं, वहीं इंदौर हाई कोर्ट में इनकी संख्या 55 से 60 हजार के बीच है।

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