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कुरान की आयत पहुंचाई सुप्रीम कोर्ट, नहीं है एक साथ तीन तलाक

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Nov 24 2016 10:18AM | Updated Date: Nov 24 2016 10:18AM
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अमरीन खान इंदौर। कुरान और हदीस समझने वाले इस्लाम के जानकार बोर्ड के गठन से ही इसके कानूनों पर सवाल कर रहे हैं। वकालत कर चुके इमाम बख्श  ने 14 जून 2016 को कुरान की आयतें सुप्रीम कोर्ट भेजी हैं। जो एक साथ तीन तलाक को गलत ठहरा रही हैं। साथ में शरीयत की अहम किताब सही मुस्लिम की प्रति भी भेजी है। जहां पैगंबर ने तलाक के लिए तीन महीने की प्रक्रिया को ही सही बताया है। अपने समय में उन्होंने कुरान की तीन महीने की प्रक्रिया को ही लागू किया था। भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन भी संविधान दिवस पर कुरान की आयतें प्रधानमंत्री को सौंप चुका है। इससे साफ हो रहा है कि एक साथ तीन तलाक न तो कुरान का कानून है न ही नबी का। जबकि एआईएमपीएलबी (आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड) कुरान की ऐसी कोई भी आयत सामने नहीं रख पा रहा, जो एक साथ तीन तलाक को मोहर लगाती हों। इसलिए समाज सालों से बोर्ड से तीन तलाक के स्रोत मांग रहा है।

इमाम ने कहा 1993 में भी एक प्रमुख अखबार में मुफ्ती और इमामों ने माना था कि  एक साथ तीन तलाक दूसरे खलीफा उमर का बनाया कानून माना था। उस समय लोग तीन तलाक में तीन महीने की अवधि को लंबा मान रहे थे। इसलिए लोगों के कहने पर तीन तलाक में तब्दीली कर दी, जबकि कुरान का कानून नहीं बदला जा सकता। इसलिए मोहम्मद ने भी तीन महीने की प्रक्रिया ही लागू की थी। उन्होंने लोगों के दबाव के बावजूद तीन महीने का तीन तलाक का कानून नहीं बदला था।

मतभेद हैं तो कुरान क्यों नहीं मान रहे

गृहिणी फरजाना कहती है हमें अब तक इस्लाम के नाम पर गुमराह किया। दूसरे खलीफा हजरत उमर ने कुरान के कानून में तब्दीली की थी। तीन महीने की प्रक्रिया को एक साथ कर दिया। पैगंबर मोहम्मद ने भी तीन महीने की प्रक्रिया ही जारी रखी थी। इसी तरह हलाला का भी मजाक बनाया जा रहा है। मर्द अपनी सहूलियत के हिसाब से बीवी को छोड़कर दूसरी शादी करते हैं। एक साथ तीन तलाक कुरान में नहीं लिखा। न पैगंबर ने  एक साथ तीन तलाक को कभी लागू किया। 

बोर्ड कर रहा है इस्लाम को बदनाम

विशिष्ट कॉलेज के डायरेक्टर डॉ. अनस इकबाल कहते हैं बोर्ड हनफी कानून मानता है, जबकि कुरान में एक साथ तीन तलाक नहीं है। इसलिए हम भी मसले में बोर्ड के खिलाफ हैं। बोर्ड को कुरान के कानून मानने चाहिए। इससे बदनामी इस्लाम की हो रही है।

बोर्ड कुरान से दूर क्यों
गृहिणी तबस्सुम शेख कहती हैं एआईएमपीएलबी के मेंबर ज्यादातर मौलाना हजरात हैं, जो हर बयान में लोगों से कहते हैं कुरआन और सुन्नत अपनी जिंदगी में उतारें। फिर क्या वजह रही की तीन तलाक के मामले में वो खुद कुरान से दूर रहे हैं। वो दूसरे खलीफा हजरत उमर के कानून को कुरआन और पैगंबर का कानून क्यों बता रहे हैं। जबकि सही मुस्लिम में भी लिखा है नबी ने लोगों के दबाव के बाद भी नबी ने तीन महीने की प्रक्रिया ही जारी रखी थी।

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