संतोष शितोले इंदौर। देशी चिकित्सा पद्धति के प्रति प्रदेश का आयुष स्वास्थ्य विभाग कितना संजीदा है, इसका नमूना जिला अस्पताल की आयुष विंग में देखा जा सकता है। चिकित्सा सुविधा में सतत कोताही बरतने के कारण यहां की आयुष विंग मेडिकल काउंसलिंग पर खरी नहीं उतर पाई है। यही वजह है कि मान्यता प्राप्त आयुर्वेद मेडिकल कॉलेजों से बीएएमएस की डिग्री लेने वाले विद्यार्थियों को आयुष विंग में इंटर्नशिप की सुविधा भी नहीं मिल पा रही है।
आयुर्वेद चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए सन 2009 में प्रदेशभर में 145 आयुर्वेद अस्पताल खोले गए थे। इसके अलावा प्रत्येक जिला अस्पताल में एक पृथक भवन बनाकर आयुष विंग बनाई गई। प्रारंभिक दिनों में इंदौर के जिला अस्पताल में आयुर्वेद पद्धति से इलाज कराने वालों की भीड़ उमड़ती थी, लेकिन अब यहां सन्नाटा पसरा रहता है। यहां पंचकर्म चिकित्सा करने के लिए मशीन भी लगाई गई थी। चूंकि, पंचकर्म का इलाज कराना बाहर काफी महंगा पड़ता है, इसलिए लोगों को उम्मीद बंधी थी कि अब उनकी पंचकर्म चिकित्सा सस्ती हो सकेगी। इसे मरीजों का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि यहां स्थापित की गई पंचकर्म चिकित्सा की मशीन पहले दिन से खराब पड़ी है। इससे आज तक किसी को उपचार नहीं मिल सका है। आलम ये है कि पंचकर्म चिकित्सा पद्धति सरकारी रिकॉर्ड में भले ही मौजूद हो, लेकिन यहां तो मानो पंचतत्व में विलीन होकर रह गई है।
परीक्षा में फेल हो गई आयुष विंग
इस आयुष विंग की स्थापना के साथ यह परिकल्पना की गई थी कि यहां मरीजों को भर्ती भी किया जाएगा, लेकिन दवाई एवं साधनों का अभाव बताते हुए मरीजों को भर्ती नहीं किया गया। इसका नतीजा यह निकला कि यहां स्थापित की गई आयुष विंग मेडिकल काउंसिल की परीक्षा में फेल हो गई। हैरत की बात तो ये है कि प्रदेश की अन्य आयुर्वेद डिस्पेंसरियों में मरीजों को भर्ती किया जाता है, लेकिन यहां से टरका दिया जाता है। मान्यता प्राप्त आयुर्वेद मेडिकल से बीएएमएस की डिग्री लेने वाले विद्यार्थियों को छह माह की इंटर्नशिप में तीन माह की इंटर्नशिप आयुष विंग में पूरी करना पड़ती है।
स्टाफ पर हर माह आठ लाख खर्च
बताया जाता है कि जब छात्र यहां इंटर्नशिप के लिए आए तो उन्हें भी लौटा दिया गया। उन्हें तर्क दिया गया कि एमसीआई के मापदंड के अनुसार इंटर्नशिप वहीं की जा सकती है, जहां मरीजों को भर्ती किया जाता है। इस आयुर्वेद अस्पताल में आज तक एक भी मरीज भर्ती नहीं हो सका, इसलिए उन्हें यहां दाखिला नहीं दिया जा सकता। यहां की ओपीडी खुलती तो है, लेकिन यहां अब मरीज नहीं आते हैं। यहां के स्टाफ पर हर माह सात से आठ लाख रुपए खर्च हो रहा है, लेकिन मरीजों के उपचार और सुविधा के मामले में इसका ही उपचार होना बाकी है।
ओपीडी सुविधा का ही प्रावधान
इंटर्नशिप के लिए 30 बेड वाला अस्पताल होना जरूरी है। आयुर्वेद कॉलेजों के खुद के हॉस्पिटल हैं। यहां आईपीडी नहीं ओपीडी सुविधा है जो नियमित है। पंचकर्म चिकित्सा मशीन भी चालू स्थिति में है। 28 अक्टूबर को ही यहां एक कैम्प आयोजित किया गया था।
-डॉ. जीके धाकड़ (मेडिकल आॅफिसर व प्रभारी, आयुष विंग