27 Apr 2024, 00:18:03 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

विनोद शर्मा इंदौर। राज्य से लेकर केंद्र सरकार को कोसने की कलाबाजी के कारण सुर्खियों में बने रहने वाले विधायक जीतू पटवारी ने इंदौर विकास प्राधिकरण की स्कीम का डर दिखाकर बिजलपुर के किसानों से मनीष कालानी को औने-पौने दाम पर जमीन दिलाई थी। बदले में जीतू ने कालानी का दिल तो जीता ही अपनी जेब भी भरी। हालांकि जब जमीन के भाव बढ़े और स्कीम हवा हो गई तो बिजलपुर के किसान भी उनसे किनारा कर गए।

इंदौर ट्रेजर टाउन प्रा.लि. (पहले नाम था ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी प्रॉपर्टीज प्रा.लि.), पुणे इंटरटेनमेंट वर्ल्ड डेवलपर्स प्रा.लि. और इंटरटेनमेंट वर्ल्ड डेवलपर्स प्रा.लि. के नाम से बिजलपुर में कालानी ने वर्ष 2003-04 से जमीन खरीदना शुरू कर दिया था। इसमें पुणे इंटरटेनमेंट के नाम पर 8.392, ट्वेंटी फस्ट सेंचुरी के नाम 27.026 और इंटरटेनमेंट वर्ल्ड डेवलपर्स के नाम पर 10.56 हेक्टेयर जमीन है। इनमें से 36.012 हेक्टेयर जमीन पर कालानी ने जनवरी 2010 में टेÑजर फैंटेसी का ले-आउट मंजूर करवाया था। बताया जा रहा है पहले प्राधिकरण की स्कीम का हौवा फैलाया गया। जीतू पटवारी और उनके भाइयों ने किसानों से औने-पौने दाम पर टोकन बयाना किया। बाद में ऊंचे दाम पर जमीन कालानी को दे दी।

इसलिए डरे किसान
आईडीए की नजर राऊ-बिजलपुर पर अरसे से रही है। राऊ में स्कीम-165 घोषित कर दी गई। मास्टर प्लान में प्रस्तावित एमआर-3 पर आईडीए ने बड़ी स्कीम प्लान की। दोनों तरफ 200-200 मीटर वाली। यह स्कीम करीब 200 एकड़ की थी, जिसकी शासन से स्वीकृति आज तक नहीं मिली। इसी तरह तेजपुर गड़बड़ी में स्कीम-97(2) प्लान कर दी गई। इसी बीच संभागायुक्त रहे बीपी सिंह गोल्फ कोर्स की स्कीम लेकर आ गए जो भी स्वीकृत नहीं हुई। ऐसे में कालानी और पटवारी की जुगलबंदी द्वारा फैलाई गई स्कीम की अफवाह ने किसानों की हवा निकाल दी। उन्होंने बिना भविष्य देखे जमीनें बेच दीं। जबकि प्राधिकरण के पूर्व प्लानर ने बताया कि जिस जमीन पर टेÑजर सिटी और ट्रेजर विहार नाम की कॉलोनी कटी है वहां कभी कोई स्कीम प्लान ही नहीं हुई।

हम तो जीतू को जानते हैं
कालानी को आठ एकड़ जमीन बेच चुका किसान परिवार अब भी पास की जमीन पर खेती कर रहा है। परिवार के मुखिया ने बताया कि हम तो मनीष कालानी को जानते नहीं थे। जीतू हमारे गांव का था इसीलिए उसी को जानते हैं, उसी ने सौदे करवाए। उन्होंने बताया कि अब जो जमीन बची है वह ग्रीन बेल्ट का हिस्सा है। ऐसे में हम कालानी को उस दौरान मरे भाव में जमीन बेचकर पछता रहे हैं।

किस्मत को कोस रहे किसान

पूरी जमीन पर करीब 20 से ज्यादा किसानों के परिवारों का गुजर-बसर चलता था। जिराती, चौधरी और माली समाज के किसानों की जमीन थी जो कि बिजलपुर में ही रहते हैं। एक किसान ने बताया कि स्कीम का डर ऐसा था कि मुआवजा में क्या मिलेगा क्या नहीं? कौन समझे। जो मिल रहा था वही ले लो। यही सोचकर हमने 11 लाख रुपए एकड़ में जमीन बेच दी। बीच में जीतू पटवारी थे। एक साल बाद ही जमीन का दूसरा हिस्सा बेचा तो उसकी कीमत 37 लाख रुपए एकड़ मिली। मामले को करीब 15 साल हो चुके हैं। इस दौरान कीमत बढ़कर चार से 4.5 करोड़ रुपए/एकड़ हो चुकी है। ऐसे में आज सिर्फ किस्मत को कोसने के अलावा विकल्प बचता भी क्या है?

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