विनोद शर्मा इंदौर। केमिकल के नाम पर चीनी पटाखे, आर्टिफिशियल ज्वेलरी और स्टेराइड फूड सप्लीमेंट आयात करने वाली प्रेस्टीज पॉलीमर प्रा.लि. कंपनी के नाम से न कोई गोदाम है, न मैन्युफैक्चरिंग या री-पैकिंग यूनिट। है तो सिर्फ एसईजेड में करीब पांच हजार वर्गफीट का प्लॉट। यहां आईसीडी से कंटेनर आते हैं। सामान निकालकर आधे घंटे में दूसरे कंटेनर में रखकर रवाना कर दिया जाता है। मतलब, व्यापार कम, तस्करी ज्यादा। ऐसे में कंपनी को एसईजेड में मिली जगह ने एसईजेड प्रशासन की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
प्रेस्टीज पॉलीमर के कंटेनर की जांच डायरेक्टर रेवेन्यू इंटेलीजेंस (डीआरआई) के जांच अधिकारियों के लिए सिरदर्द बन गई है। जितने कंटेनर, उतनी नई कहानी। अधिकारियों की मानें तो कस्टम ड्यूटी चोरी के मामले में आईसीडी, पीथमपुर में पहले कभी ऐसी कंपनी नहीं देखी। इस कंपनी को एसईजेड के उन अधिकारियों का भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष साथ मिल रहा है जिन्होंने मैन्युफैक्चरिंग यूनिट के बीच पहले तो इस यूनिट को टेÑडिंग के लिए जमीन दी। अब उसके कंटेनर भी चेक नहीं होते। मंगलवार को भी एक कंटेनर से 2.65 करोड़ की स्टेशनरी और फूड सप्लीमेंट निकले हैं।
सेक्शन का सहारा
एसईजेड के कानून अलग हैं। इसे अलग देश ही माना जाता है। जहां मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स को बिना ड्यूटी चुकाए माल आयात करने की इजाजत है ताकि वे इससे प्रोडक्ट बनाएं, निर्यात करें और विदेशी करेंसी भारत में लाएं। एसईजेड की यूनिट के लिए आने वाले कंटेनर की आईसीडी में जांच नहीं होती। न कंटेनर कॉर्पोरेशन आॅफ इंडिया(सीसीआई) जांच करती है। न वहां पदस्थ कस्टम, सेंट्रल एक्साइज एंड सर्विस टैक्स विभाग की टीम। जब कंटेनर एसईजेड में जाता है तो वहां भी सेक्शन 75 के नाम पर कंटेनर के कंटेंट की जांच नहीं होती।
सिर्फ यही देखा जाता है कि बिल में जो नंबर है, उसी नंबर का कंटेनर है या नहीं। उस पर बॉटल सील लगी है या नहीं। बिल में कंटेनर की लंबाई 20 फीट लिखी है और आया हुआ कंटेनर 40 फीट का तो नहीं है। कंपनी को मिले कानूनी अधिकार एसईजेड में चीनी पटाखों के रूप में बारूद का जखीरा पहुंचाने वाले थे। वह भी उस स्थिति में जब प्लॉट के आसपास केमिकल और फार्मा कंपनियां हैं।
ट्रेडिंग पर लगाई रोक
डीआरआई ने सख्ती करते हुए प्रेस्टीज पॉलिमर की एसईजेड से होने वाली ट्रेडिंग पर रोक लगा दी है। एसईजेड और कंपनी के बीच हुआ लेटर आॅफ अप्रूवल भी निरस्त कर दिया है। जांच अधिकारियों ने एसईजेड को लिखित में दे दिया है कि जब तक डीआरआई की एनओसी न मिले, तब तक ट्रेडिंग की इजाजत न दें।
अब तक सिर्फ बाउंड्रीवॉल
मूलत: दिल्ली की इस कंपनी को एसईजेड का प्लॉट नंबर डी-62 अपै्रल 2016 में आवंटित हुआ था। कुछ दिन बाद से ही कंपनी ने ‘इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट’ शुरू कर दिया था। वह भी उस स्थिति में जब आवंटित प्लॉट पर शेड भी नहीं लगा। रेडीमेड बाउंड्रीवॉल खड़ी है। बीच में प्लींथ का काम हुआ है, दो फीट ऊंची दीवार उठी है।
कंपनी के डायरेक्टर भी फरार
डीआरआई ने आईसीडी में छापामार कार्रवाई करने के साथ ही ए-6 शालीमार टाउनशिप रो-बंगलो और साहिल कान्हा पार्क में भी कार्रवाई की थी। दोनों जगह कोई नहीं मिला। दिल्ली के पतों पर भी दबिश दी, लेकिन जांच में वह भी फर्जी निकले। विशेषज्ञों की मानें तो चूंकि आयातित माल की कीमत एक करोड़ से अधिक है, इसीलिए डायरेक्टर्स की गिरफ्तारी तय है। गलत जानकारी देने की कार्रवाई अलग।