26 Apr 2024, 14:13:44 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

विनोद शर्मा इंदौर। विजय माल्या, छगन भुजबल, मधु कोड़ा और ए. राजा जैसे लोगों की संपत्तियां अटैच करने वाले प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) पर इंदौर के ‘जादूगर’ भारी पड़े। बड़ा उदाहरण सुगनीदेवी जमीन घोटाले के मुख्य आरोपी विजय नगीनचंद्र कोठारी और पुणे की सुजलॉन कंपनी में रहकर 200 करोड़ का गबन कर चुके संजय बांगर का है। ये उन जमीनों का सौदा कर चुके हैं, जिसे ईडी ने अटैच किया था। अब अटैच्ड प्रॉपर्टी के नाम पर ईडी के पास सिर्फ डॉक्यूमेंट बचे हैं। हालांकि ईडी के पास न अमला है और न ही अधिकार जिनके दम पर अन्य जमीनों की बिक्री रोकी जा सके।

एक दशक में ईडी के नाम की धाक इंदौर से लेकर न्यूयॉर्क तक सुनाई दी। फिर भी विभाग का जितना खौफ होना चाहिए था, उतना मध्यप्रदेश में दिखाई नहीं देता। इसकी वजह स्टाफ का संकट और अधिकारियों के नियमित तबादले बताए जा रहे हैं। इसका खामियाजा विभाग को करोड़ों की अटैच्ड प्रॉपर्टी गंवाकर चुकाना पड़ा है। अटैच्ड प्रॉपर्टी बेचने वालों में कोठारी सब पर भारी है जिसने 1 अगस्त 2014 को अटैच हुई बिलावली की अपनी और अपने भागीदार मनीष पिता भूपेंद्र तांबी की करीब 80 हजार वर्ग फीट की जमीन बेच दी, जिसकी अनुमानित कीमत 16 करोड़ रुपए है।    

कहां थी जमीन
देवास    : भतलपुर, भटियाखुर्द
खंडवा    : सेल्दा (बड़वाह), चकारिया
खरगोन    : भीकनगांव, कसरावद, गोपालपुरा, खेड़ी
धार    : सुंद्रेल

सिर्फ शब्दों का खेल है अटैचमेंट
पुरानी अटैच्ड प्रापर्टी के मामले में ईडी ने राजस्व दस्तावेजों में टिप दर्ज नहीं करवाई कि उक्त संपत्ति ईडी द्वारा अटैच की जा चुकी है इसीलिए इसका सौदा नहीं हो सकता।
अटैचमेंट कन्फर्म होने के बाद मालिक को संपत्ति खाली करने का और पजेसन नोटिस दिया जाता है लेकिन फिजिकल पजेशन मुश्किल होता है ज्यादातर कृषि भूमि के मामले में। बाउंड्रीवाल या फेंसिंग करके जमीन सुरक्षित करने का सिस्टम भी नहीं है।
दुकान, मकान, फ्लैट अटैच करने में दिक्कत नहीं रहती। रमाकांत विजयवर्गीय की दुकानों पर ईडी का ही ताला लगा है।
मॉनिटरिंग के लिए मैदानी अमला नहीं। बस अटैचमेंट आॅर्डर जारी करो और भूल जाओ।

भू-माफियाओं की कलाकारी
जिला पंजीयकों को लिखे गए पत्र बाद में कमीशन लेकर दबा दिए गए और विवादित जमीनों की रजिस्ट्री हो गई।
जहां रजिस्ट्री नहीं हो सकती थी वहां एग्रीमेंट से जमीन बिकी। पूरी कंपनी ट्रांसफर कर दी गई।
अटैच्ड प्रॉपर्टी पर नोटरी के माध्यम से प्लॉट बेच दिए जाते हैं। बाद में कॉलोनी को पुरानी साबित कर दिया जाता है।

यह है संपत्ति
विजय कोठारी : ग्राम बिलावली के सर्वे नं. 127/1/4, 117/1/2/मिन-2 और 117/2/मिन-4 की 1.132 हेक्टेयर जमीन। कोठारी ने पिता के नाम को दो तरह से लिखा है। सर्वे नं. 127/1/4 की जमीन विजय पिता नगीनभाई कोठारी के नाम है। जबकि बाकी दोनों जमीन विजय पिता नगीनचंद्र कोठारी के नाम। हालांकि दोनों का पता ई-42 साकेतनगर ही है। 11/2/1 उषागंज छावनी में विजय और 11/2 में पत्नी शिल्पा की बिल्डिंग है जहां ब्राइट स्कूल चल रहा है।

मनीष पिता भूपेंद्र तांबी: सर्वे नं. 117/2/मिन-2 और 117/2/मिन-3 की 0.544 हेक्टेयर जमीन।
(जमीन का सौदा हो चुका है लेकिन दस्तावेजों में कोठारी-तांबी का ही नाम दर्ज है। खसरों के आगे ईडी ने भी कोई नोट नहीं लिखा है)

400 एकड़ में से आधी बेच डाली
157, तिलकनगर निवासी संजय बांगर पुणे में सिनेफ्रा इंजीनियरिंग एंड कंस्ट्रक्शन कंपनी में जीएम, लॉजिस्टिक था। उसने सुजलॉन एनर्जी प्रा.लि. और सुजलॉन पॉवर के साथ कंपनी का अनुबंध कराया। बाद में सिनेफ्रा के ही राजगोपाल श्रीधरन के साथ मिलकर करीब 200 करोड़ की हेराफेरी की। पुणे पुलिस ने धोखाधड़ी का प्रकरण दर्ज कर मामला ईडी को सौंपा। बांगर ने गबन की राशि से इंदौर, देवास, खरगोन और खंडवा में 400 एकड़ से ज्यादा जमीन खरीदी। ईडी जानकारी जुटाता रहा और जिला पंजीयकों को पत्र लिखता रहा तब तक 50 फीसदी जमीन बिक गई। इसमें से 40 फीसदी जमीन तो अटैचमेंट के बाद बेच दी गई।






 

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