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नई व्यवस्था से प्रोफेसर त्रस्त, धीमी जंच रही कॉपियां

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jul 28 2016 10:01AM | Updated Date: Jul 28 2016 10:01AM
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रफी मोहम्मद शेख  इंदौर। देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी द्वारा लागू की गई नई मूल्यांकन व्यवस्था में कॉपियां जांचने वाले प्रोफेसर्स के लिए उलझन खड़ी हो गई है। यूनिवर्सिटी ने शहर के चार प्रमुख गवर्नमेंट कॉलेजों को कॉपियां वितरित करने के लिए सेंटर बनाया है। इन कॉलेजों में अलग-अलग विषयों के साथ ही महिला और पुरुषों के लिए भी अलग-अलग सेंटर बना दिए गए। इससे चकरघिन्नी हुए प्रोफेसर्स को काफी समस्या आ रही है। वहीं दूसरी ओर नई व्यवस्था में सख्ती के साथ केवल नियमित और कोड 28 वाले प्रोफेसर्स को ही कॉपियां दी जा रही हैं, जिससे सालों से कॉपियां जांच रहे प्रोफेसर्स भी बाहर हो गए हैं। अब इसकी सफलता पर संदेह जताया जा रहा है।

यूनिवर्सिटी ने शहर में बीए, बीकॉम और बीएससी की कॉपियां जांचने के लिए वितरण करने के चार नोडल सेंटर बनाए हैं। इन सेंटर्स को भी अलग-अलग काम दिया है। अटलबिहारी वाजपेयी गवर्नमेंट आर्ट्स एंड कॉमर्स कॉलेज और ओल्ड जीडीसी कॉलेज मोतीतबेला से बीए व बीकॉम की कॉपियां तो होलकर साइंस कॉलेज से बीएससी और कम्प्यूटर विषय की कॉपियां वितरित हो रही हैं।

अलग-अलग कर दिया

यह व्यवस्था यहां तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उसके साथ ही महिला और पुरुष प्रोफेसर्स को कॉपियां देने के नए सेंटर भी बना दिए गए हैं। इसमें अगर कोई महिला प्रोफेसर है तो उसे ओल्ड जीडीसी से ही कॉपियां मिलेंगी तो पुरुष प्रोफेसर को कॉपियां लेने के लिए जीएसीसी जाना होगा। इसी प्रकार साइंस और कम्प्यूटर वालों को होलकर साइंस कॉलेज से ही कॉपियां मिलेंगी। वहीं न्यू जीडीसी कॉलेज किला रोड को हिंदी और अंग्रेजी भाषा की कॉपियां भेजी गई हैं। यहां से केवल ये कॉपियां ही मिल रही हैं।

सुलभता के बजाय परेशानी
नई व्यवस्था सिस्टम को सुलभ बनाने के लिए की गई थी, लेकिन हो उलटा रहा है। कॉलेज अलग-अलग स्थान पर होने से प्रोफेसर्स को वहां जाना पड़ रहा है। खासकर प्राइवेट कॉलेजों के प्रोफेसर्स ज्यादा परेशान हैं। करीब आधा किलोमीटर दूर गाड़ियां पार्क होने से बंडल उठाकर लाना पड़ते हैं। वहीं कॉपियां खुद ले जाने पर अलग से भत्ता भी नहीं दिया जा रहा।

सख्ती भी अलग से

मूल्यांकन सेंटर ने कॉपियां किसे देना हैं, इसके लिए नई गाइडलाइन तय की है। इसके अनुसार गवर्नमेंट और ग्रांट प्राप्त कॉलेजों के रेग्युलर व परमानेंट प्रोफेसर्स के साथ ही केवल कोड 28 में सिलेक्ट प्रोफेसर्स को ही कॉपियां दी जाएं। इस कारण अन्य प्रोफेसर्स से उनके कोड 28 के नियुक्ति-पत्र मांगे जा रहे हैं। यानी बिना कोड 28 वर्षों से पढ़ा रहे प्रोफेसर्स को कॉपियां नहीं दी जा रहीं।

पिछली बार जैसा न हो
नए नियमों के आधार पर यूनिवर्सिटी की करीब 50 हजार कॉपियां कैसे जंच पाएंगी, इस पर अभी से संशय है। पिछले साल तक ये कॉपियां बिना कोड 28 वाले प्राइवेट प्रोफेसर्स जांचते थे, लेकिन अब यह सीधे-सीधे बाहर हो गए हैं। वहीं दूसरी ओर मान्य प्रोफेसर दूर-दूर सेंटर होने से कॉपियां लेने नहीं जा रहे हैं। पहले इन्हें कॉलेजों में जाकर कॉपियां दी जाती थीं। इससे कॉपियां जांचने की रफ्तार काफी धीमी है, जिसके चलते रिजल्ट में तो देरी होगी ही, साथ ही यह बिना जंचे रह जाएं तो भी आश्चर्य नहीं। पिछले साल भी इन सेंटर पर कॉपियां जांचने वाला नहीं मिला था, तब दूसरे प्रोफसर्स से जंचवाई गई थीं।

अभी बता नहीं सकते..
हां, नई व्यवस्था लागू की है। इसके लिए पूरे नियम-कानून बनाकर भेजे गए हैं और उसी आधार पर कॉपियां जांचने के लिए दी जा रही हैं। व्यवस्था कितनी सफल हो रही है, यह अभी नहीं बता सकते, क्योंकि अभी शुरुआत है।
-डॉ. दीपक भटनागर, मूल्यांकन सेंटर प्रभारी

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