26 Apr 2024, 16:47:24 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

मुनीष शर्मा इंदौर। जिस केसरबाग ओवरब्रिज को एक साल में बनना था, वह आठ साल बाद भी पूरा नहीं हुआ है। 20.32 करोड़ रुपए से बनने वाला यह ब्रिज 30 करोड़ रुपए में पड़ने जा रहा है। हालांकि निर्माण करने वाली कंपनी अरविंद टेक्नो इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड ने फाइनल बिल नहीं दिया है, लेकिन इंदौर विकास प्राधिकरण ठेकेदार को 25 करोड़ रुपए से ज्यादा दे चुका। कोर्ट के आदेश के बाद 2.64 करोड़ रुपए और देना हैं। उल्लेखनीय है कि अब भी कंपनी को ब्रिज के दोनों तरफ सीढ़ियां बनाना हैं। गोपुर चौराहा व चोइथराम मंडी तक लाइटिंग लगाना है, डिवाइडर के बीच में कम ऊंचाई वाले पौधे लगाना हैं। ब्रिज के नीचे बगीचा व वॉकिंग ट्रैक बनाना है। इन सभी का पैसा अलग से प्राधिकरण ठेकेदार कंपनी को देगा, जिससे उसका बिल 30 करोड़ रुपए से ज्यादा होने की संभावना है।  ब्रिज में देरी को लेकर अधिकारी या निर्माण एजेंसी दंड नहीं देना आश्चर्यजनक है।

ब्रिज के लिए कंपनी को 16 जुलाई 2007 को वर्क आॅर्डर जारी हुआ था, जिसके तहत 20.32 करोड़ रुपए के स्थान पर 21.20 करोड़ रुपए तय हुए। वह इसलिए कि वस्तुओं की कीमत बढ़ने की स्थिति में भी तय राशि पर काम होगा। कंपनी ने काम शुरू किया, लेकिन 12 माह तक गति ही नहीं पकड़ पाई। बीच में ठेकेदार ने अतिक्रमण या बाधक निर्माण नहीं हटाने की बात कही तो कभी रेलवे से अनुमति में देरी को लेकर मुद्दा बनाया। डिजाइन को लेकर भी देरी की बात कही। यदि ठेकेदार की बात को सही मानें तो संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई होना चाहिए। किसी भी ठेकेदार को काम देने से पहले उसे बाधक निर्माण हटाना थे, लेकिन प्राधिकरण ने ऐसा नहीं किया। यह तय होना चाहिए कि किन अधिकारियों की लापरवाही के कारण ठेकेदार को निर्माण क्षेत्र खाली नहीं मिल सका। रेलवे की अनुमति के प्रयास भी देरी से किए गए जिसके कारण भी मंजूरी में देरी हुई। प्राधिकरण अधिकारियों ने न्यायालय में भी सही पक्ष नहीं रखे जिसके कारण ठेकेदार को और राशि दिए जाने के आदेश जारी हुए। यदि प्राधिकरण सभी पक्ष रखता तो संभव है न्यायालय ठेकेदार कंपनी से वसूली करवाता। प्राधिकरण को पारदर्शिता रखते हुए बिल व भुगतान वाउचर्स को वेबसाइट पर आॅनलाइन करना चाहिए। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भी चाहते हैं कि जनता की राशि की पाई-पाई की जानकारी अधिकारी आॅनलाइन करें।

लागत हर साल एक करोड़ बढ़ी
ब्रिज के निर्माण में औसतन हर साल एक करोड़ रुपए की लागत बढ़ी। दबंग दुनिया ने ब्रिज में लगे लोहे की लागत पता कि तो आश्चर्यजनक पहलू सामने आया। लोहा व्यापारियों के अनुसार 2007 में लोहा 40000 से 45000 रुपए प्रति टन था, जो अभी 32000 से 35000 रुपए है। सीमेंट की बोरी 2007 में 240 रुपए में मिलती थी, अभी कीम 300 रुपए है। गिट्टी में करीब 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई तो रेती जरूर दोगुने दाम की हो गई है।

लापरवाह कंपनी
वर्क आॅर्डर जारी करने के 10 दिन के अंदर कंपनी को अनुबंध करना था, लेकिन वह नहीं आई। ऐसे में प्राधिकरण को नोटिस देना पड़ा। ब्रिज का काम तेज करने के लिए भी कई नोटिस दिए।

डिजाइन के दिए 50 लाख
ठेकेदार को फायदा पहुंचाने का मामला कंसलटेंसी व ब्रिज डिजाइन को लेकर भी स्पष्ट है, इसमें अफसरों की मिलीभगत दिखती है। अनुबंध के मुताबिक कंपनी ने यह जिम्मेदारी भी ली, इसके लिए प्राधिकरण ने 50 लाख रुपए दिए। बाद में प्राधिकरण ने खुद ही डिजाइन बनाने की बात कहीं।

मामला समझेंगे
ब्रिज की लागत जरूर बढ़ी है। इसमें कंपनी व अधिकारी दोनों खुद को सही बता रहे हैं। कौन सही है कौन गलत, यह तो बैठने पर ही समझा जा सकता है।                                                                                                                                                                                   -शंकर लालवानी, अध्यक्ष, आईडीए 

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