अनूप सोनी इंदौर। जवाहर मार्ग पर ब्रिज बनता तो जाम से राहत मिलती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मामला ठंडे बस्ते में जा चुका है। इस मार्ग पर रोज सुबह से शाम और रात तक वाहन रेंगते नजर आते है। मार्ग पर व्यवस्थित ट्रैफिक चले इसे लेकर ट्रैफिक पुलिस ने भी कई प्रयोग किए , लेकिन सब फेल हो गए। इस मार्ग पर पहुंचना कई लोगों की मजबूरी भी है, यही कारण है कि अब लोगों ने यहां के जाम को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया है।
जवाहर मार्ग पर ब्रिज नहीं बने, इसका सबसे ज्यादा विरोध व्यापारियों ने किया था। उन्हें डर था कि ब्रिज बनने से व्यापार ठप हो जाएगा। ब्रिज बनने में दूसरी बड़ी परेशानी इस मार्ग से जुड़ने वाले कई रास्तें हैं, जो प्रमुख बाजारों के लिए जाते हैं। नगर निगम ने तो 2009 में जवाहर मार्ग पर ब्रिज बनाने को लेकर टेंडर भी जारी किया था। यदि ब्रिज बनता तो गंगवाल बस स्टैंड से सरवटे बस स्टैंड और जिला अस्पताल से एमवाय अस्पताल कनेक्ट हो जाते। उन लोगों को भी बड़ी राहत मिलती, जो ब्रिज से होकर सीधे आरएनटी मार्ग पहुंच जाते। तब निगम ने करीब ढाई साल तक सर्वे भी कराया था।
एक कंपनी को दे दिया था ठेका
नगर निगम ने करीब छह साल पहले ब्रिज बनाने को लेकर टेंडर बुलाए थे। तब यह काम जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत प्रस्तावित किया गया था। तमाम प्रतिस्पर्धा के बीच चार कंपनियों में से इंदौर की केटी कंस्ट्रक्शन कंपनी को चुना गया था। उस समय ब्रिज करीब 60 करोड़ रुपए में बनने वाला था, जो साढ़े तीन से चार किलोमीटर का बनाया जाता।
धंधा चौपट हो जाने का था डर
यदि ब्रिज बनता तो इस पर ट्रैफिक का दबाव ज्यादा हो सकता था और इसे बनाने में किसी कारण से लेटलतीफी भी हो सकती थी। इन दोनों बातों से व्यापारियों को धंधा चौपट होने का डर था। उनका कहना था ब्रिज बनाना है तो जवाहर मार्ग के समानांतर एक ब्रिज बनाया जाए, इसमें किसी व्यापारी को कोई दिक्कत भी नहीं होगी।
व्यापारियों के विरोध के कारण नहीं शुरू हो पाया काम
ट्रैफिक पुलिस कर चुकी प्रयोग
जवाहर मार्ग के ट्रैफिक की समस्या को हल करने के लिए ट्रैफिक पुलिस ने भी कई प्रयोग किए, लेकिन हल नहीं निकला। यहां दो पहिया व चार पहिया वाहनों की पार्किंग अलग-अलग की गई। फिर चार पहिया वाहनों की पार्किंग खत्म की गई। इसके बाद नंदलालपुरा से सियागंज तक डिवाइडर रखकर ट्रैफिक को सुचारू रूप से चलाने का प्रयोग किया गया। इसके बाद भी राहत नहीं मिली और स्थिति जस की तस है।
25 रास्ते हैं बड़ी परेशानी
पश्चिमी इंदौर को पूर्वी इंदौर से जोड़ने में ंजवाहर मार्ग की महत्वपूर्ण भूमिका है। इससे कपड़ा बाजार, बर्तन व सराफा बाजार, आड़ा बाजार, सियागंज और हाथीपाला स्थित लोहामंडी बाजार जुड़े हंै। यहां वाहनों का दबाव ज्यादा रहता है। राजमोहल्ला से पटेल ब्रिज तक 15 सड़कें सीधे जवाहर मार्ग से जुड़ती हैं। 10 छोटी-मोटी गलियां व रास्ते भी हंै। इस कारण जवाहर मार्ग तक पहुंचने वाले वाहनों की संख्या अधिक हो जाती है।
इन्हें हो सकता था फायदा
जानकारों के मुताबिक ब्रिज बनने से जवाहर मार्ग से वाहन चालकों को फायदा होता। अभी एअरपोर्ट से रीगल, पलासिया वाले हिस्से में आने के लिए वाहन चालक सुपर कॉरिडोर या वीआईपी रोड का सहारा लेते हैं। ब्रिज बनता तो एअरपोर्ट से चालक सीधे जवाहर मार्ग से होकर सरवटे पहुंच सकते थे और वहां से सीधे गंगवाल होते हुए क्लॉथ मार्केट हॉस्पिटल और जिला अस्पताल आदि एमवाय अस्पताल से कनेक्ट हो जाते।
मल्टीलेवल पार्किंग से भी कोई हल नहीं
जवाहर मार्ग के कई हिस्सों पर टू व्हीलर व फोर व्हीलर की स्थायी पार्किंग लोगों ने बना दी है। सड़क पर ही ये वाहन चौबीस घंटे खड़े रहते है। मल्टीलेवल पार्किंग बनने के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि लोग सड़क पर वाहन खड़े करने की आदत को बदलेंगे, लेकिन व्यापारी, कर्मचारी और ग्राहक मार्ग पर ही वाहन खड़ा करते हैं।
बस व लोडिंग रिक्शा भी है बड़ी परेशानी
इस मार्ग पर इतने रास्ते हैं कि कौन वाहन चालक कहां से घुसकर किस हिस्से में जाता है यह पता ही नहीं चलता है। तीन से चार बजे के बीच स्कूल बसों के कारण स्थिति खराब हो जाती है। सिटी बसों से भी जाम की स्थिति बनती है। सबसे ज्यादा लोडिंग रिक्शाओं से परेशानी होती है।
जवाहर मार्ग पर जो भी प्रयोग हुए सभी असफल साबित हुए। इस मार्ग का ट्रैफिक तभी सुधर सकता है, जब यहां की सड़क पर हो रही पार्किंग को हटा दिया जाए। यदि ब्रिज बनाया जाता तो स्थिति और खराब हो जाती। यहां ब्रिज कभी बनेगा ही नहीं। साढ़े तीन किलोमीटर का जवाहर मार्ग 50 फीट चौड़ा रोड है। यहां करीब आठ-आठ फीट के फुटपाथ है, जिन पर दुकानदारों का कब्जा रहता है।
- किशोर कोडवानी, सामाजिक कार्यकर्ता
जवाहर मार्ग से जुड़ने वाले रास्तों की संख्या काफी अधिक है। इस कारण यहां ब्रिज बनाना मुश्किल है। व्यापारियों ने नगर निगम को जवाहर मार्ग के सामानांतर रोड बनाने की सलाह दी थी।
-अजीत अग्रवाल, व्यापारी जवाहर मार्ग
अब इस ब्रिज का मामला पूरी तरह समाप्त ही हो गया है। इसके नहीं बनने का खास कारण व्यापारी है, व्यापारियों का कहना था कि उनका व्यापार ठप हो जाएगा। 2009 में जब ब्रिज का टेंडर हुआ था तब लागत करीब 60 करोड़ रुपए हो रही थी। हमने पूरी तैयारी भी कर ली थी, लेकिन निर्माण शुरू नहीं हो पाया। -उमाशशि शर्मा, पूर्व महापौर नगर निगम