संतोष शितोले इंदौर। प्रदेश के सबसे बड़े एमवाय अस्पताल के पीडियाट्रिक मॉड्यूलर आॅपरेशन थिएटर में पाइपलाइन की गड़बड़ी के कारण आॅक्सीजन के बजाय नाइट्रस आॅक्साइड गैस (बेहोशी की) से मासूम आयुष व राजवीर की मौत के बाद हड़कंप मचा है। लापरवाही के लिए टेक्नीशियन को जिम्मेदार बता उसे गिरफ्तार कर लिया गया। उस पर आयुष की मौत के मामले में गैरइरादतन हत्या का केस तो दर्ज था ही, अब राजवीर की मौत पर भी उसे इसी धारा में आरोपी बनाया गया है। वहीं आॅपरेशन थिएटर सील कर दिया गया है। जिम्मेदार अभी भी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं हैं। मासूम राजवीर के परिजन रह-रहकर अस्पताल की अव्यवस्था को कोस रहे हैं।
थोथे साबित हुए दावे- 24 मई को पीडियाट्रिक मॉड्युलर आॅपरेशन थिएटर का शुभारंभ हुआ तो बड़ी सौगात के साथ बड़े-बड़े दावे किए गए, जो खोखले साबित हुए। मामले में राजवीर के परिजन या मानों खुद राजवीर ने ऐसे कई सवाल समाज के सामने खड़े कर दिए, जिनका जवाब न तो जिम्मेदार अधिकारियों के पास है और न ही डॉक्टरों के पास। जानिए, इन सवालों को और चाहिए जिम्मेदारों से इनके जवाब-
नए पीडियाट्रिक मॉड्युलर ओटी की लापरवाही
आॅपरेशन थिएटर का जब काम शुरू हुआ तो क्या सुपरविजन नहीं हुआ?
जब आॅक्सीजन, नाइट्रस आॅक्साइड व वैक्यूम पाइप को जोड़ा जाना था तो प्रक्रिया इंटरनेशनल कलर कोडिंग मापदंड के तहत क्यों नहीं अपनाई गई? क्यों सहजता से एक टेक्नीशियन से काम पूरा करा लिया गया?
लोक निर्माण विभाग जब ये काम करा रहा था तो इसके लिए विधिवत टेंडर प्रक्रिया क्यों नहीं अपनाई?
क्या आॅपरेशन थिएटर शुरू करने में जल्दबाजी नहीं की गई? नया ओटी शुरू करने के पहले तमाम बिंदुओं को क्यों नहीं परखा गया?
अस्पताल प्रभारी अधीक्षक डॉ. सुमित शुक्ला कहते हैं कि गैस चेक करने का कोई पैमाना नहीं है। पाइप के रंग से ही पता चलता है कि कौन-सी गैस है। क्या उनका ये जवाब गैरजिम्मेदाराना नहीं है? निजी अस्पतालों में तो ऐसा नहीं होता। क्या सरकारी और निजी अस्पतालों में भर्ती बच्चों की प्रकृति व प्रबंधन की जवाबदेही अलग तरह की होती है?
डॉ. ब्रजेश लाहोटी (इंचार्ज पीडियाट्रिक आॅपरेशन थिएटर) का कहना है कि तकनीकी गड़बड़ी के कारण घटना घटित हुई। डॉक्टर साहब, ये तो सभी को मालूम है, लेकिन आॅपरेशनथिएटर प्रभारी होने के नाते क्या जांच करने की जिम्मेदारी आपकी नहीं थी? कम से कम नैतिकता के नाते गलती तो स्वीकार सकते हैं?
निर्मल श्रीवास्तव (एक्जीक्यूटिव इंजीनियर, लोनिवि) ये कहकर खुद का बचाव करते हैं कि आॅपरेशन थिएटर का काम डोनेशन से हुआ। विभाग के ठेकेदार का मामले में कोई कांट्रेक्ट नहीं था। ये बात मान ली जाए तो भी क्या विभाग या ठेकेदार की जिम्मेदारी नहीं थी कि वे अस्पताल के विभाग प्रमुख या ओटी प्रमुख को हैंडओवर करने के दौरान टेक्नीकल रूप से समझाते। टेक्नीशियन राजेंद्र चौधरी तो तीन माह पहले काम कर चला गया था। इसके बाद भी काम चलता रहा तो वह अकेले दोषी क्यों?
डॉ. एमके राठौर (डीन, एमजीएम मेडिकल कॉलेज), सीधे तौर पर गलती स्वीकारने को तैयार नहीं हैं। वे ठेकेदार की गलती बताते हैं। अब आनन-फानन दोनों मासूम की मौत की रिपोर्ट पीएस को सौंप दी है। ऐसी तत्परता उद्घाटन के पहले पाइपलाइन की जांच में दिखाते, जब लोनिवि ने ओटी हैंडओवर किया था?
खास सवाल ठेकेदार रोहित गुप्ता से... जब टेक्नीशियन राजेंद्र चौधरी को बुलाकर तीन दिन काम कराया था तो ओके रिपोर्ट (मौखिक) तो खुद आपने ही दी थी। ऐसे में आप आरोपी क्यों नहीं हैं?
अस्पताल के वे विशेषज्ञ जिम्मेदार नहीं हैं, जिन्होंने पाइपलाइन (पॉइंट) से एनेस्थेसिया मशीन जोड़ी, फिर आयुष व मुझे गैस दी। उन्होंने चेक क्यों नहीं किया?
आखिरी तीन तीखे सवाल...
गठित जांच कमेटी क्या निष्पक्ष रिपोर्ट देगी?
खास सवाल डीआईजी संतोषकुमार सिंह से... जब फैक्टरी में किसी मजदूर का हाथ कटता है या काम करने के दौरान उसकी मौत होती है तो पुलिस सीधे प्रबंधक और फैक्टरी मालिक पर केस दर्ज करती है। इस मामले में एकमात्र टेक्नीशियन के खिलाफ केस क्यों? क्या बाकी अधिकारी व डॉक्टर जिम्मेदार नहीं हैं? उन पर केस दर्ज क्यों नहीं?
क्या भविष्य में भरोसा किया जाए कि अब मेरे (राजवीर) और आयुष जैसे मासूमों की जान इस आॅपरेशन थिएटर में नहीं जाएगी?
लाड़ले के शव के साथ जिंदगीभर का दर्द भी ले गए बिलखते परिजन
इंदौर। एक ओर 40 घंटे से ज्यादा जिंदगी और मौत के बीच चले मासूम राजवीर के संघर्ष का दृश्य तो दूसरी ओर लाड़ले का शव मिलने की बाट जोहते परिजन। कुछ पल माता-पिता को उसका हंसता हुआ चेहरा याद आ रहा था तो अगले ही पल वह पीड़ा, जो उसने बेहोशी की गैस के कारण भोगी। आंसू थम नहीं रहे थे उनके। डॉक्टरों की टीम ने मौत के 15 घंटे बाद पीएम शुरू कर जैसे ही परिजन को शव सौंपा वे फूट-फूटकर रो पड़े और लाड़ले के शव के साथ जिंदगीभर का दर्द भी ले गए। मन एक ही बात कह रहा था कि अब किसी मासूम के साथ ऐसा न हो।