-गौरीशंकर दुबे
इंदौर। सिर में गंभीर चोट लगने के कारण बहुत से लोग जान गंवा देते हैं। ऐसा ही कुछ भारतीय क्रिकेटर रमन लांबा व आॅस्ट्रेलियाई क्रिकेटर फिल ह्यूजेस के साथ भी हुआ था, लेकिन इंदौर के एक युवा इंजीनियर ने इसे झुठलाते हुए मौत से लगी बाजी जीत ली। आईआईटी गांधीनगर से पिछले साल केमिकल इंजीनियर बने अक्षय जैन पीएचडी करने के लिए 2014 को अमेरिका के टेक्सास स्थित टीएंडएम यूनिवर्सिटी (टामू) गए थे। वहां एक महीना भी नहीं हुआ था कि उनकी कार को एक मिनी ट्रक ने टक्कर मार दी। दुर्घटना में अक्षय बुरी तरह घायल हो गए। उनके सीने, हाथ व पैर की हड्डियां टूट गई थीं, वहीं सिर में गंभीर चोट आई थी।
पहनाया एक खास हेलमेट
उन्हें एअर एंबुलेंस से ह्यूस्टन ले जाया गया, जहां ढाई महीने तक उनकी खोपड़ी फ्रिज में रखी रही, क्योंकि खून का दबाव सिर के केमिकल को गाढ़ा कर रहा था और दिमाग को जमा रहा था। डॉक्टरों ने उन्हें एक खास तरह का हेलमेट पहना दिया, ताकि मष्तिष्क को चोट न लगे। अक्षय के सिर में तीन वॉल लगाए गए हैं। हाथ और सीने की हड्डियों में रॉड डली है। उन्होंने पिछले साल 20 दिसंबर को आंखें खोलीं। वहां कजिन सिस्टर रीना भंसारी ने उनकी देखभाल की। वहां एमपी मित्रमंडल, आईआईटी एलुमिनाई और जैन संगठन ने अक्षय की मदद की। मां सरोज वहां उनके साथ आठ महीने रहीं और लौट आर्इं। व्हील चेअर पर बैठे अक्षय ने 16 मई को पहला शब्द कहा- मम्मा, तब सरोज देवी की आंखों में खुशी के आंसू भर आए।
मैं धोनी का सबसे बड़ा फैन हूं
18 जून से अक्षय बोलने लगे हैं, लेकिन जो आप पूछते हैं, उनका ही उत्तर देते हैं। उन्होंने बताया कि क्रिकेटर महेंद्रसिंह धोनी का मैं सबसे बड़ा फैन हूं। इंदौर में उन्हें खेलते देखना चाहता था, लेकिन टीम इंडिया जीत गई, यही खुशी की बात है..., मसाला डोसा खाना पसंद है..., मेरा बंगला रिंंग रोड पर है..., जीजाजी का नाम गगन पारख है..., नया साल शादी करके सेलिब्रेट करूंगा। यह वाक्य सुनकर मां का गला रूंध गया और कहने लगीं, बहुत सपने संजोए थे इसे लेकर। चाय व्यवसायी पति अशोक और मैंने ताउम्र कभी किसी का दिल नहीं दुखाया। मैं लोगों से गुजारिश करती हूं कि मेरे बेटे के पैरों पर खड़े होने के लिए दुआ करें।
ठीक होने में वक्त लगेगा: डॉक्टर
मेदांता हॉस्पिटल गुड़गांव में अक्षय को 12 दिन तक उपचार के लिए रखा गया था। वहां डॉक्टर रजनीश कछारा (न्यूरो सर्जन) ने उनका इलाज किया और कहा कि ठीक होने में वक्त लगेगा। न्यूरो फिजिशियन डॉ. अपूर्व पुराणिक ने अक्षय को चिड़ियाघर, नेहरू पार्क और ऐसे स्थलों पर ले जाने की सलाह दी है, जहां बच्चे कुछ नया सीखते हैं। वास्तव में अक्षय को फिर से वह सब सीखना पड़ेगा, जो हरेक बाल्य अवस्था में सीखता है। बूढ़े पिता की कमर टूट चुकी है, लेकिन वे बुलंद हौसले के साथ कहते हैं- ठीक है परमात्मा ने हमें फिर उसका बचपन जीने का मौका दिया है। मां रोआंसी जरूर है, लेकिन अपने हाथों से अक्षय को खाना खिलाने का सुख भी उनकी आंखों में देखते बनता है।