नई दिल्ली। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर के उस बयान को ‘‘स्तब्ध करने वाला' बताकर एनजीओ को लताड़ लगाई जिसमें उन्होंने यमुना के डूबक्षेत्रों को हुए नुकसान के लिए केंद्र एवं हरित पैनल को दोषी बताया है।
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘‘आपको जिम्मेदारी का कोई एहसास नहीं है। आपको बोलने की आजादी है तो क्या आप कुछ भी बोल देंगे। यह स्तब्ध करने वाला है।'
याचिकाकर्ता मनोज मिश्रा की ओर से पेश हुए वकील संजय पारिख ने पीठ को सूचित किया था कि रवि शंकर ने हाल में एक बयान देकर यमुना नदी के डूबक्षेत्रों में विश्व संस्कृति उत्सव आयोजित करने की अनुमति उनके एनजीओ को देने के लिए सरकार और एनजीटी को जिम्मेदार ठहराया है जिसके बाद पीठ ने यह बात कही। पारिख ने हरित पीठ को बताया कि आध्यात्मिक गुरु ने एनजीटी के खिलाफ आरोप लगाए हैं।
आज की सुनवाई में हमने अपना पक्ष रखा है और आगे भी कोर्ट के आदेश का पालन करेंगे। लेकिन ये कमेटी की रिपोर्ट बायस्ड है। हमें इस पर भरोसा नहीं है। हम कोर्ट के माध्यम से इसकी वैज्ञानिक तरीके से जांच कराना चाहते हैं। पहले इसी कमेटी ने 120 करोड़ का नुकसान दिखाया था और अब 42 करोड़ का नुकसान बताया है।
दरअसल, पिछले साल 11 से 13 मार्च के बीच यमुना किनारे हुए इस महोत्सव से पहुंचे पर्यावरण को नुकसान के मद्देनजर चार सदस्यों वाली एक समिति ने शुरू में सिफारिश की थी कि श्रीश्री रविशंकर की आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन को यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र को हुए गंभीर नुकसान के कारण पुनर्वास लागत के तौर पर 100-120 करोड़ रुपये का भुगतान करना चाहिए। हालांकि बाद में इसे घटा कर पांच करोड़ रुपये का अंतरिम पर्यावरण जुर्माना लगाया था, आर्ट ऑफ लिविंग ने काफी हील-हुज्जत के बाद चुका दिया था। ऐसे में अब समिति की इस रिपोर्ट के बाद संभावना है कि एनजीटी जुर्माने की यह राशि बढ़ा सकती है।