नई दिल्ली। डैडी को याद करता हूं, तो एक पिता भी याद आता है और एक कोच भी। उनके लिए पहली याद ऐसे कोच की आती है, जिसके लिए कंप्रोमाइज शब्द बना ही नहीं थी। बेहद सख्त, अनुशासनप्रिय, समय के पाबंद, हर काम में सौ फीसदी कोशिश। यही मेरे डैडी लाला अमरनाथ की पहचान थी।
हमारी क्लास घर में भी चलती रहती थी। कभी-कभी, या यूं कहूं कि अक्सर हम डांट खाते थे। मुझे याद है कि स्कूल में था। उस वक्त लखनऊ में हमारा कैंप लगा था। शायद अंडर-18 का था। कैंप शुरू होने वाला था।
सख्त और गर्ममिजाज थे लाला अमरनाथ
मेरे एक शॉट पर वो लगातार टोक रहे थे। मैं स्वीप की जगह टैप कर रहा था। दूर खड़े थे। एक-दो बार उन्होंने जोर से शॉट खेलने को कहा। मैं फिर भी टैप करता रहा। उसके बाद उन्होंने दूर से जो गाली दी। किसी ने उम्मीद नहीं की थी। वहां जितने बच्चे थे, उन्हें समझ आ गया कि अगर अपने बच्चे के साथ ऐसा है, तो उनके साथ क्या होगा। उन्हें पसंद नहीं था कि उनकी बात को न माना जाए। वो कहते थे कि अगर मैं कोच हूं, तो तुम्हें वही करना है, जो मैं कह रहा हूं। अपने आप कुछ नहीं।
टैलेंट को परखने में महारत हासिल थी
उनकी खासियत थी कि युवाओं को बहुत मौके दिए। जयसिम्हा, विजय मेहरा जैसे तमाम खिलाड़ी हैं, जिनके टैलेंट को उन्होंने बहुत जल्दी परख लिया। कोच के तौर पर उनका जवाब नहीं था। कोच के तौर पर उनकी सख्ती भी इसी वजह से थी। जैसे, हमें फिल्म देखने की इजाजत नहीं थी। मैच के दौरान या रात का शो देखने की तो हरगिज नहीं। डाइटिंग का खास खयाल रखते थे। रात को दस बजे सोना और जल्दी उठना जरूरी था। दोपहर में न तो वो सोते थे, न किसी और का सोना उन्हें पसंद था।
पाकिस्तान के साथ रिश्ते
पाकिस्तान के साथ उनके रिश्ते तो वाकई कमाल थे। 1978 की बात है। रावलपिंडी या मुल्तान में हमारे लिए एक एक ऑफिशियल डिनर था, जो गवर्नर ने दिया था। भारत और पाकिस्तान, दोनों टीमों के खिलाड़ी थे। ऑफिशियल उनसे बात कर रहे थे। गवर्नर भी थे। अचानक अनाउंसमेंट हुआ। बताया गया कि डैडी आ गए हैं। उसके बाद देखा, तो कोई ऑफिशियल हमारे आसपास नहीं था। सब डैडी को घेरे, उनके साथ थे। गवर्नर भी हमें छोड़कर उनके साथ खड़े हुए थे।
मुझे एक और किस्सा याद है। टीम पाकिस्तान गई थी। मैनेजर फतेहसिंह राव गायकवाड थे। एयरपोर्ट पर एक टीम बस थी और एक मर्सिडीज आई थी। मैनेजर साहब टीम के पास आए और कहा कि चलो बॉयज, हम लोग होटल में मिलते हैं। तुम लोग बस से जाओ। मैं गाड़ी से आता हूं। उन्हें पीछे खड़े सेक्रेटरी ने धीरे से समझाया कि ये गाड़ी आपके लिए नहीं है। वो हैरान कि ये किसके लिए है? सेक्रेटरी ने कहा कि ये लालाजी के लिए है। सरकारी गाड़ी है। उन्हें हमेशा स्टेट गेस्ट का दर्जा मिला। आप खुद समझ सकते हैं कि अगर 70 के दशक में ये हाल था, तो उनके प्लेइंग डेज में क्या होता होगा।