रायपुर। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने शनिवार को प्रदेश प्रवास के दौरान जिन बातों को स्पष्ट किया है, उसके मुताबिक सीवी रमन यूनिवर्सिटी बिलासपुर में ताला लगना तय है। विदित है कि सीवी रमन विवि ने छात्र-छात्राओं से मोटी रकम वसूलकर उनके भविष्य को अंधकार में धकेल दिया है, इसके बावजूद विवि ने दंभ भरना नहीं छोड़ा है।
यूजीसी ने पहले ही चार विवि की मान्यता रद्द कर दी है, जिसमें सीवी रमन का नाम भी शामिल है। अब जबकि केंद्रीय मंत्री जावड़ेकर ने साफ कह दिया है कि फर्जी डिग्री बेचने वालों की दुकानों में ताला लगना तय है, तो इसके आगे किसी अफसर के प्रभाव की बात हो या फिर आॅफर की, मोदी सरकार के रहते यह तो संभव नहीं है।
चार साल पहले फूट गया था भांडा
विवि के कारनामों का भंडा तो 2013 में ही फूट गया था जब सूबे के कुछ जिला पंचायतों ने ग्रंथपाल के लिए आवेदन मंगाए थे। लेकिन हायर एजुकेशन विभाग के अफसरों ने इसे दबा दिया। बताते हैं, बिलासपुर जिला पंचायत में 40 आवेदकों की डिग्रियों पर आपत्ति की गई थी। जांच के दौरान जिपं ने विवि को डिग्रियों के सत्यापन के लिए लेटर लिखा।
चोरी पकड़ी गई तो सीवी रमन ने स्वीकार कर लिया कि फर्जी डिग्रियां उनकी है। जांच में खुलासा यह भी हुआ कि बीलिब पाठ्यक्रम की अनुमति मिले बिना ही विवि ने डिग्री बांट डाली। बताते हैं, 2011-12 से सीवी रमन को बीलिब की इजाजत मिली। आरोप है कि मोटी राशि लेकर विवि ने 2010-11 शैक्षणिक सत्र की जाली डिग्रियां बना डाली।
अफसर के प्रभाव में नहीं हुई कार्रवाई
फर्जी डिग्रियों पर विवि के खिलाफ एक्शन 2013 में ही होना जाना चाहिए था। मगर ना तो जिला पंचायत ने एफआईआर कराई और ना ही हायर एजुकेशन डिपार्टमेंट ने संज्ञान लिया। निजी विवि विनियामक आयोग ने भी अनदेखी कर दी। मगर मामला अब दिल्ली पहुंच गया है। ऐसे में, लोग सवाल उठा रहे हैं कि जिस तरह आईएएस बाबूलाल अग्रवाल के खिलाफ लोकल लेवल पर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो सीबीआई को एक्शन में आना पड़ा, उसी तरह सीवी रमन के खिलाफ कहीं दिल्ली से कार्रवाई तो नहीं।
गजब है कि विवि के वेबसाइट पर इसका कहीं भी उल्लेख नहीं है कि किस विभाग में कितनी सीट स्वीकृत है और उसमें कितने का दाखिला हुआ है। राज्य की जांच एजेंसियों के पास शिकायत आई है कि विवि ने स्वीकृत सीटों से कहीं अधिक डिग्रियां दे दी है। साथ ही प्रत्येक डिग्री की कीमत भी तय है।