26 Apr 2024, 19:23:45 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

मुंबई। हिन्दी फिल्मों में जब भी टाइटल गीतों का जिक्र होता है गीतकार हसरत जयपुर का नाम सबसे पहले लिया जाता है। वैसे तो हसरत जयपुरी ने हर तरह के गीत लिखे, लेकिन फिल्मों के टाइटल पर गीत लिखने में उन्हें महारत हासिल थी। हिन्दी फिल्मों के स्वर्णयुग के दौरान टाइटल गीत लिखना बडी बात समझी जाती थी। निर्माताओं को जब भी टाइटल गीत की जरूरत होती थी, हसरत जयपुरी से गीत लिखवाने की गुजारिश की जाती थी। उनके लिखे टाइटल गीतों ने कई फिल्मों को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

 
हसरत जयपुरी के लिखे कुछ टाइटल गीत हैं- दीवाना मुझको लोग कहें (दीवाना), दिल एक मंदिर है (दिल एक मंदिर), रात और दिन दीया जले (रात और दिन), तेरे घर के सामने इक घर बनाऊंगा (तेरे घर के सामने), ऐन इवनिंग इन पेरिस (ऐन इवनिंग इन पेरिस), गुमनाम है कोई बदनाम है कोई (गुमनाम), दो जासूस करें महसूस (दो जासूस) आदि।
 
15 अप्रैल, 1918 को जन्मे हसरत जयपुरी का मूल नाम इकबाल हुसैन था। उन्होंने जयपुर में प्रारंभिक शिक्षा हासिल करने के बाद अपने दादा फिदा हुसैन से उर्दू और फारसी की तालीम हासिल की। बीस वर्ष का होने तक उनका झुकाव शेरो-शायरी की तरफ होने लगा और वह छोटी-छोटी कविताएं लिखने लगे।
 
वर्ष 1940 मे नौकरी की तलाश में हसरत जयपुरी ने मुंबई का रुख किया और आजीविका चलाने के लिए वहां बस कंडक्टर के रुप में नौकरी करने लगे। इस काम के लिए उन्हे मात्र 11 रुपये प्रति माह वेतन मिला करता था। इस बीच उन्होंने मुशायरा के कार्यक्रम में भाग लेना शुरू किया। उसी दौरान एक कार्यक्रम में पृथ्वीराज कपूर उनके गीत को सुनकर काफी प्रभावित हुए और उन्होने अपने पुत्र राजकपूर को हसरत जयपुरी से मिलने की सलाह दी।
 
राजकपूर उन दिनों अपनी फिल्म बरसात के लिए गीतकार की तलाश कर रहे थे। उन्होंने हसरत जयपुरी को मिलने का न्योता भेजा। राजकपूर से हसरत जयपुरी की पहली मुलाकात रायल ओपेरा हाउस में हुई और उन्होने अपनी फिल्म बरसात के लिए उनसे गीत लिखने की गुजारिश की। इसे महज संयोग ही कहा जाएगा कि फिल्म बरसात से ही संगीतकार शंकर जयकिशन ने भी अपने सिने कैरियर की शुरुआत की थी।
 
राजकपूर के कहने पर शंकर जयकिशन ने हसरत जयपुरी को एक धुन सुनाई और उसपर उनसे गीत लिखने को कहा। धुन के बोल कुछ इस प्रकार थे- अंबुआ का पेड है वहीं मुंडेर है, आजा मेरे बालमा काहे की देर है। शंकर जयकिशन की इस धुन को सुनकर हसरत जयपुरी ने गीत लिखा- जिया बेकरार है छाई बहार है, आजा मेरे बालमा तेरा इंतजार है।
 
वर्ष 1949 में प्रदर्शित फिल्म बरसात में अपने इस गीत की कामयाबी के बाद हसरत जयपुरी गीतकार के रुप में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। बरसात की कामयाबी के बाद राजकपूर, हसरत जयपुरी और शंकर जयकिशन की जोड़ी  ने कई फिल्मों मे एक साथ काम किया। इनमें आवारा (1951), श्री 420 (1955), चोरी चोरी (1956), अनाड़ी (1959), जिस देश में गंगा बहती है (1960), संगम (1964), तीसरी कसम (1966), दीवाना (1967), एराउंड द वर्ल्ड (1967), मेरा नाम जोकर (1970), कल आज और कल (1971) जैसी फिल्में शामिल है।
 
हसरत जयपुरी के सिने कैरियर पर निगाह डालने पर पता चलता है कि उनकी जोडी़ संगीतकार शंकर जयकिशन के साथ खूब जमी। इस जोडी़ के गीतों में शामिल कुछ गीत है- छोड़ गए बालम मुझे हाय अकेला... (बरसात,1949), हम तुम से मोहब्बत करके सनम... (आवारा,1951), इचक दाना बीचक दाना... (श्री 420,1955), आजा सनम मधुर चांदनी में हम... (चोरी चोरी,1956), जाऊं कहा बता ए दिल... (छोटी बहन,1959), एहसान तेरा होगा मुझपर... (जंगली,1961), तेरी प्यारी प्यारी सूरत को... (ससुराल,1961), तुम रूठी रहो मैं मनाता रहूं... (आस का पंछी,1961), इब्तिदाए इश्क में हम सारी रात जागे... (हरियाली और रास्ता,1962) बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है... (सूरज,1966), दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई... (तीसरी कसम,1966), कौन है जो सपनों में आया... (झुक गया आसमान, 1968), रूख से जरा नकाब उठाओ मेरे हुजूर... (मेरे हुजूर,1968), पर्दे में रहने दो पर्दा ना उठाओ... (शिकार,1968) जाने कहां गए वो दिन... (मेरा नाम जोकर,1970) और जिंदगी एक सफर है सुहाना... (अंदाज,1971)।
 
हसरत जयपुरी की जोड़ी राजकपूर के साथ वर्ष 1971 तक कायम रही। संगीतकार जयकिशन की मृत्यु और फिल्म मेरा नाम जोकर और कल आज और कल की बॉक्स ऑफिस पर नाकामयाबी के बाद राजकपूर ने हसरत जयपुरी की जगह आनंद बख्शी को अपनी फिल्मों के लिए लेना शुरू कर दिया। हालांकि अपनी फिल्म प्रेम रोग के लिए राजकपूर ने एक बार फिर से हसरत जयपुरी को मौका देना चाहा, लेकिन बात नही बनी। इसके बाद हसरत जयपुरी ने राजकपूर के लिए वर्ष 1985 मे प्रदर्शित फिल्म राम तेरी गंगा मैली मे सुन साहिबा सुन गीत लिखा जो काफी लोकप्रिय हुआ।
 
हसरत जयपुरी को दो बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें पहला फिल्म फेयर पुरस्कार वर्ष 1966 में फिल्म सूरज के गीत बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है के लिए दिया गया। वर्ष 1971 मे फिल्म अंदाज में जिंदगी एक सफर है सुहाना गीत के लिए भी वह सर्वश्रेष्ठ गीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए। हसरत जयपुरी वर्ल्ड यूनिवर्सिटी टेबुल के डाक्ट्रेट अवार्ड और उर्दू कान्फ्रेंस में जोश मलीहाबादी अवार्ड से भी सम्मानित किए गए। फिल्म मेरे हुजूर में हिन्दी और ब्रज भाषा में रचित गीत झनक झनक तोरी बाजे पायलिया के लिए वह अम्बेडकर अवार्ड से सम्मानित किए गए।
 
महान गायक मुकेश को शोहरत की बुलंदियों तक पहुंचाने में हसरत जयपुरी के गीतों का अहम योगदान रहा है। मुकेश और हसरत जयुपरी की जोड़ी के गीतों में छोड़ गए बालम मुझे हाय अकेला... (बरसात), आजा रे अब मेरा दिल पुकारा (आह) इचक दाना बिचक दाना... (श्री 420), आंसू भरी है ये जीवन की राहें (परवरिश), वो चांद खिला वो तारे... (अनाड़ी), जाऊं कहां बता ऐ दिल... (छोटी बहन), हाले दिन हमारा जाने ना... (श्रीमान सत्यवादी), तुम रूठी रहो मैं मनाता रहूं... (आस का पंछी), इब्तिदाए इश्क में हम सारी रात जागे... (हरियाली और रास्ता), ओ मेहबूबा ओ मेहबूबा... (संगम), दुनिया बनाने वाली क्या तेरे मन में समाई... (तीसरी कसम), दीवाना मुझको लोग कहें... (दीवाना), जाने कहां गए वो दिन... (मेरा नाम जोकर) प्रमुख है। हसरत जयपुरी ने यूं तो कई रूमानी गीत लिखे, लेकिन असल जिदंगी में उन्हें अपना पहला प्यार नहीं मिला।
 
बचपन के दिनों में उनका राधा नाम की हिन्दू लड़की से प्रेम हो गया था, लेकिन उन्होंने अपने प्यार का इजहार नहीं किया। उन्होंने पत्र के माध्यम से अपने प्यार का इजहार करना चाहा, लेकिन उसे देने की हिम्मत वह नहीं जुटा पाए। बाद में राजकपूर ने उस पत्र में लिखी कविता 'ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर तुम नाराज ना होना...' का इस्तेमाल अपनी फिल्म संगम के लिए किया। हसरत जयपुरी ने तीन दशक लंबे अपने सिने कैरियर में 300 से अधिक फिल्मों के लिए लगभग 2000 गीत लिखे।
 
अपने गीतों से कई वर्षों तक श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाला यह शायर और गीतकार 17 सिंतबर, 1999 को संगीतप्रेमियों को अपने एक गीत की इन पंक्तियों तुम मुझे यूं भूला ना पाओगे, जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे संग संग तुम भी गुनगुनाओगे... की स्वर लहरियों में छोड़कर इस दुनिया को अलविदा कह गए।
 
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