मुंबर्इ। जिस एक्ट्रेस की जिंदगी पर विद्या बालन के लीड रोल वाली फिल्म ‘डर्टी पिक्चर’ बनी, उस साउथ इंडियन फिल्म इंडस्ट्री की पहली सेक्स सायरन कही जाने वाली एक्ट्रेस सिल्क स्मिता का आज जन्मदिन है।
अस्सी के दशक में दक्षिण भारतीय सिनेमा में सिल्क स्मिता की शोहरत का ये आलम था कि हिंदी सिनेमा भी उन्हें उस वक्त अपनाने के मोह से खुद को बचा नहीं पाया। सिल्क स्मिता कौन थी?
कहां से आई? और क्यों हिंदी सिनेमा के पांच बड़े प्रोडक्शन घरानों में शुमार बालाजी टेलीफिल्म्स को क्यों इस फिल्म को बनाने की सूझी? आंध्र प्रदेश में राजमुंदरी के एल्लुरू 2 दिसंबर 1960 को जन्मी विजयालक्ष्मी कैसे पहले स्मिता बनी और फिर सिल्क स्मिता।
ये वो नाम हैं जिसने एक समय दक्षिण भारतीय सिनेमा को अपने यौवन के जादू से हिलाकर रख दिया था और उस दौर की कोई भी फिल्म वितरक तभी खरीदते थे जब उसमें कम से कम सिल्क स्मिता का एक गाना जरूर हो।
अपने दस साल के छोटे से करियर में करीब पांच सौ फिल्मों में काम करने वाली सिल्क स्मिता का परिवार इतना गरीब था कि घर वाले उसे सरकारी स्कूल में भेजने तक का खर्च उठाने में नाकाम रहे। चौथी क्लास में पढ़ाई छूटी और पहला काम स्मिता को मिला फिल्मों में मेकअप असिस्टेंट का।
स्मिता शूटिंग के दौरान हीरोइन के चेहरे पर शॉट्स के बीच टचअप का काम किया करती और यहीं से उसकी आंखों में पलने शुरू हुए ग्लैमर के आसमान पर चांद की तरह चमकने के सपने।
शर्म से नहीं झुकती थी स्मिता की आंखें
जिस हीरोइन का वो टचअप किया करती थी, उसी के हीरोइनों के फिल्ममेकर से उसने दोस्ती की पींगें बढ़ाईं और 1979 में मलयालम फिल्म ‘इनाये थेडी’ में पहली बार लोगों ने परदे पर देखी एक ऐसी लड़की जो गोरी नहीं थी, छरहरी नहीं थी, जिसकी अदाओं में शराफत नहीं थी और जिसकी आंखें आम लड़कियों की तरह शर्म से झुकती नहीं थी।
इस तरह बनीं सिल्क स्मिता को करियर का बड़ा ब्रेक मिला 1980 में रिलीज हुई फिल्म ‘वांडी’ चक्रम में। उसमें उन्होंने अपने किरदार को खुद डिजाइन किया और मद्रासी चोली को फैशन स्टेटमेंट बना दिया।
इस फिल्म तक उनका नाम सिर्फ स्मिता ही था, लेकिन फिल्म में अपने किरदार सिल्क को मिली शोहरत को उन्होंने अपने साथ जोड़ते हुए अपना नाम सिल्क स्मिता कर लिया। उन्होंने सिल्क, सिल्क, सिल्क नाम की एक फिल्म में लीड रोल भी किया।
एक गाने का 50 हजार रुपए लेती थी सिल्क
1980 से 1983 का दौर सिल्क स्मिता के करियर वो दौर था जिसमें उन्होंने करीब 200 फिल्में की। एक दिन में तीन तीन शिμटों में काम किया और एक एक गाने की कीमत 50 हजार रुपए तक वसूली।
यही वो दौर था जब पूरी फिल्म बना लेने के बाद भी निर्माता सिर्फ उनके एक गाने के लिए अपनी फिल्मों की रिलीज महीनों तक रोके रहते थे। सिल्क स्मिता की शोहरत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शिवाजी गणेशन से लेकर रजनीकांत, कमल हासन और चिरंजीवी तक की फिल्मों में उनका कम से कम एक गाना उस वक्त की जरूरत बन चुका था।
मसाला फिल्मों के निर्देशकों पर चल चुके इस जादू ने लीक से हटकर फिल्में बनाने वाले निर्देशकों बालू महेंद्रा और भारती राजा को भी अपनी चपेट में लिया। बालू महेंद्रा ने सिल्क स्मिता को अपनी फिल्म ‘मूरनम पिराई’ में खास रोल दिया और इसे जब उन्होंने हिंदी में सदमा के नाम से बनाया तो सिल्क स्मिता को उसमें भी रिपीट किया।
निर्माताओं पर बिखेरा अपने हुस्न का जलवा
जितेंद्र-श्रीदेवी और जितेंद्र-जया प्रदा की हिंदी फिल्मों के इसी दौर में सिल्क स्मिता ने हिंदी सिनेमा में प्रवेश किया। ‘सदमा’ रिलीज होने के ठीक महीने भर पहले वो ‘जीत हमारी’ नाम की फिल्म के जरिए मायानगरी के निर्माताओं को अपने हुस्न का जलवा दिखा चुकी थीं।
इसके बाद तो ताकतवाला, पाताल भैरवी, तूफान रानी, कनवरलाल, इज्जत आबरू, द्रोही और विजय पथ तक सिल्क स्मिता हिंदी सिनेमा के दर्शकों को अपनी शोहरत की वजह का एहसास कराती रहीं।
भारतीय नायिकाओं को लो वेस्ट साड़ी पहनने की दी प्रेरणा
भारतीय फैशन की जहां तक बात की जाए तो सिल्क स्मिता ने ही दक्षिण भारतीय नायिकाओं को लो वेस्ट साड़ी पहनने की प्रेरणा दी। रही बात आज के दौर की तो मौजूदा दौर में सिल्क स्मिता का देसी यौवन परदे पर प्रदर्शित करने के लिए एक हीरोइन को पहले तो प्लास्टिक सर्जन की जरूरत होगी क्योंकि जीरो फीगर के इस दौर में उनके जैसी मादकता दिखाने वाली कोई हीरोइन नहीं है।
मनोवैज्ञानिक रूप से कमजोर हो गईं थीं
शोहरत के दौर में अपने निजी जीवन को संतुलित न रख पाने की कीमत उन्हें करियर के ढलान पर आते ही चुकानी पड़ी। सिल्क स्मिता के एक करीबी मित्र उन्हें फिल्म निर्माता बनने का लालच दिखाया। सिर्फ दो फिल्मों के निर्माण में ही उन्हें दो करोड़ रुपए का घाटा हो गया।
स्मिता की तीसरी फिल्म शुरू तो हुई पर कभी पूरी नहीं हो सकी। बैंक में घटती रकम और एक स्टार की जीवनशैली कायम रखने के दबाव ने सिल्क स्मिता को मनोवैज्ञानिक रूप से कमजोर कर दिया। 23 सितंबर 1996 को उनकी लाश उनके ही घर में पंखे से झूलती पाई गई।
पुलिस ने इसे आत्महत्या का मामला मानते हुए ये केस बंद कर दिया, हालांकि ऐसे भी लोगों की कमी नहीं है जो इसे हत्या का मामला मानते हैं और इसके पीछे एक बड़ी साजिश की आशंका जताते रहे हैं।
पुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं भी सिल्क दीवानी थी
सिल्क स्मिता ने बीस साल पहले जो किया, उसे समझने के लिए हमें आज के दौर में नहीं बल्कि बीस साल पीछे जाना होगा। सिल्क स्मिता ने चाहे बिकनी पहनी, साड़ी पहनी हो, या फिर हॉट पैंट्स और बुनाई वाले ब्लाउज पहने हो, उनके हर पहनावे में आम भारतीय नारी को अपनी कल्पनाएं नजर आईं।
लोग जानते होंगे लेकिन सिल्क स्मिता के दीवाने जितने पुरुष थे, उससे कहीं ज्यादा बड़ा प्रशंसक वर्ग उस दौर में उनका महिलाओं में था। सिल्क स्मिता ने उस दौर में समाज की वर्जनाएं तोड़ भारतीय महिलाओं की बरसों से दबी कुचली दैहिक संतुष्टि की इच्छाओं को प्रकट करने का रूपक दिया था।
सिल्क ने उन भावनाओं को परदे पर जिया जिनकी झलक हमें खजुराहो के मूर्ति शिल्प में ही मिलती रही। ऐसा नहीं है कि इन इच्छाओं को किसी और नायिका या खलनायिका ने हिंदी सिनेमा में उनसे पहले करने की कोशिश ही नहीं की, लेकिन सिल्क स्मिता का आम नायिका से विपरीत आम महिला के ज्यादा करीब होना उनके हक में गया।