नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। मां कालरात्रि दुष्टों के लिए विनाशक हैं और भक्तों के लिए रक्षक का रूप धारण करती हैं। मां कालरात्रि की पूजा से नकारात्मक शक्तियों का असर खत्म हो जाता है। ज्योतिष में शनि का संबंध मां कालरात्रि से ही माना जाता है।
असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए मां दुर्गा ने अपने तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया। रंग काला होने के कारण मां को कालरात्रि कहा गया। शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था।
देवतागण भगवान शिव के पास गए तो भगवान शिव ने देवी पार्वती से राक्षसों का संहार करने को कहा। मां पार्वती जी ने दुर्गा रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। जैसे ही मां दुर्गा ने रक्तबीज को मारा तभी उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए।
यह देख मां दुर्गा ने अपने तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया। जब मां दुर्गा ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को माता कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया और रक्तबीज का वध कर दिया।
सप्तमी की रात्रि को ‘सिद्धियों’ की रात भी कहा जाता है। देवी मां का यह रूप ऋद्धि सिद्धि प्रदान करने वाला है। मां कालरात्रि की कृपा से हर बाधा दूर हो जाती है। माता की कृपा पाने के लिए उन्हें गुड़ का भोग लगाया जाता है।