नवरात्र में सप्तमी तिथि से कन्या पूजन शुरू हो जाता है और इस दौरान कन्याओं को घर बुलाकर उनकी आवभगत की जाती है। नवरात्री उत्सव के दौरान कन्याओं को नौ देवी का रूप माना जाता है। माना जाता है कि कन्याओं का देवियों की तरह आदर सत्कार और भोज कराने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को सुख समृधि का वरदान देती हैं।
पुराणों में वर्णित है कि मात्र श्लोक-मंत्र-उपवास और हवन से देवी को प्रसन्न नहीं किया जा सकता। इन दिनों 2 से लेकर 5 वर्ष तक की नन्ही कन्याओं के पूजन का विशेष महत्व है। पुराणों के अनुसार नौ दिनों तक कन्याओं को एक विशेष प्रकार की भेंट देना शुभ होता है।
नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिबिंब के रूप में पूजने के बाद ही भक्त का नवरात्र व्रत पूरा होता है। कन्याओं को भोज और दक्षिणा देने मात्र से ही देवी मां प्रसन्न हो जाती हैं।
कन्या पूजन की विधि
प्रथम दिन इन्हें फूल की भेंट देना शुभ होता है।
दूसरे दिन फल देकर इनका पूजन करें।
तीसरे दिन मिठाई का महत्व होता है।
चौथे दिन इन्हें वस्त्र देने का महत्व है
कन्याओं को पांच प्रकार की श्रृंगार सामग्री देना अत्यंत शुभ होता है।
छठे दिन बच्चियों को खेल-सामग्री देना चाहिए।
सातवां दिन मां सरस्वती के आह्वान का होता है। अत: इस दिन कन्याओं को शिक्षण सामग्री दी जानी चाहिए।
आठवां दिन सबसे पवित्र दिन माना जाता है। इस दिन अगर कन्या का अपने हाथों से श्रृंगार किया जाए तो देवी विशेष आशीर्वाद देती है।
नौवें दिन खीर, ग्वारफली और दूध में गूंथी पूरियां कन्या को खिलानी चाहिए।
इस परंपरा के पीछे मान्यता है कि देवी जब अपने लोक जाती है तो उसे घर की कन्या की तरह ही बिदा किया जाना चाहिए। अगर सामर्थ्य हो तो नौवें दिन लाल चुनर कन्याओं को भेंट में दें।