अयोध्या राम मंदिर के गर्भगृह में रामलला की 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है, जिसको लेकर तैयारियां चल रही हैं। इसी मौके पर आपके लिए एक ऐसी जानकारी लेकर आए हैं, जिससे आप अनजान होंगे। ये तो आपने सुना ही होगा कि गिद्धराज जटायु की जब भगवान श्रीराम से मुलाकात हुई तो उन्होंने राजा दशरथ के मित्र के रूप में अपना परिचय दिया था, लेकिन लोगों को शायद ये मालूम नहीं होगा कि जटायु और राजा दशरथ की मित्रता कैसे हुई। आज हम आपको इसकी जानकारी देंगे।
पौराणिक कथा के मुताबिक, जब जटायु नासिक के पंचवटी में रहते थे तब एक दिन महाराज दशरथ एक पेड़ के नीचे साधना में लीन थे। तभी कुछ राक्षसों ने उन पर हमला करना चाहा तो ये सब जटायु ने देख लिया कि ये राक्षक राजा दशरथ को हानि पहुंचाने वाले हैं। तभी जटायु ने राजा दशरथ को बचाने के लिए राक्षसों से युद्ध करने लगे। इसके कुछ समय बाद जब दशरथ की साधना खत्म हुई तो देखा कि राक्षस और जटायु युद्ध कर रहे थे। फिर दशरथ ने भी अपने धनुष वाण से सभी राक्षसों का वध कर दिया।
इसके बाद जब उन्होंने पूछा वे युद्ध क्यों कर रहे थे तो जटायु ने कहा कि आप साधना में लीन थे और ये राक्षस तभी आपको मारना चाहते थे, लेकिन आपको बचाने और उन्हें रोकने के लिए ही मैं ये युद्ध कर रहा था। तभी जटायु ने राजा दशरथ से मित्रता का आग्रह किया और राजा दशरथ भी उनके आग्रह को मना नहीं कर पाएं। इसके बाद राजा दशरथ ने जटायु का आग्रह स्वीकार कर उनसे मित्रता कर ली।
जब रावण, माता सीता का हरण करके आकाश में उड़ गया तब सीता का विलाप सुनकर जटायु ने रावण को रोकने का बहुत प्रयास किया लेकिन अन्त में रावण ने तलवार से उनके पंख काट दिए। जिससे वे उड़ न सके और मरणासन्न होकर भूमि पर गिर पड़े। इसके बाद रावण सीता को लेकर लंका की ओर चला गया। जब सीता की खोज करते हुए राम उस रास्ते से गुजर रहे थे तभी उन्हें घायल अवस्था में जटायु मिले। जो कि मरणासन्न अवस्था में थे। जटायु ने राम को पूरी कहानी सुनाई और यह भी बताया कि रावण किस दिशा में गया है। जटायु के मरने के बाद राम ने उसका वहीं गोदावरी नदी के तट पर अंतिम संस्कार और पिंडदान कर मुक्ति दिलाई थी।