चपाती बनाने के लिए प्रारम्भ में जब पानी की सहायता से आटा गूँधा जाता है तब गेहूँ में विद्यमान प्रोटीन एक लचीली परत बना लेती है जिसे लासा या ग्लूटेन कहते हैं। लासा की विशेषता यह है कि वह अपने अदंर कार्बन-डाई-आक्साइड सोख लेती है, इसी कारण आटा गूँधने के बाद फूला रहता है।
चपाती को सेंकने पर लासा में बंद कार्बन-डाई-आक्साइड फैलती है और चपाती के ऊपरी भाग को फुला देती है। जो भाग तवे के साथ चिपका होता है उसकी पपड़ी-सी बन जाती है, इसी प्रकार दूसरी तरफ से सेंकने पर चपाती के दूसरी तरफ भी पपड़ी बन जाती है। इन दो पपड़ियों के बीच बंद कार्बन-डाई-आक्साइड गैस और भाप चपाती की दो अलग-अलग पर्ते बना देती हैं।
कार्बन-डाई-आक्साइट गैस बनने के लिए आटे में लासा की उपस्थिति आवश्यक है। गेहूँ की चपाती खूब फूलती है परन्तु जौ, बाजरा मक्का आदि की चपाती नहीं फूलती या कम फूलती है तथा इनमें परतें भी नहीं बनतीं क्योंकि इन अनाजों में लासा की कमी होती है।