- केपी सिंह
इंदौर। सूरज की तपिश बढ़ने के साथ ही शहर में पानी की समस्या विकराल रूप धारण कर रही है। जलस्तर तेजी से घटता जा रहा है। तालाबों के साथ बोरिंग भी सूखना शुरू हो गए। ऐसे में नगर निगम ने प्राइवेट टैंकरों का भी सहारा लेना शुरू कर दिया है। शहर में हर तरफ टैंकर दौड़ते दिखाई दे रहे हैं और जनता को पानी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
नरवल में रहवासी सुबह से हाथों में पाइप लिए पानी का इंतजार करते दिखाई देते हैं। टैंकर की आस में घरों के बाहर ड्रम रखे हुए हैं। कहीं पर दो दिन तो कहीं तीन दिन से पानी का इंतजार होता है। कई स्थानों पर तो लोगों को भीषण गर्मी में एक बाल्टी पानी के लिए घंटों संघर्ष करना पड़ा तो कहीं पर पार्षद पति अपनी सक्रियता से जनता को पानी बांटते दिखाई दिए। यह है शहर में पानी की हकीकत और निगम के तमाम दावों की पोल खुल रही है।
यही कारण है कि टैंकरों के भरोसे शहर की जनता है। निगम द्वारा प्रायवेट टैंकर-ट्रैक्टर 50 से ज्यादा लगा दिए है तो निगम के 80 से ज्यादा टैंकर-ट्रैक्टर भी दिन-रात वार्डों में में दौड़ रहे है। पानी की समस्या को देखते हुए टैंकर की संख्या बढ़ाई जा रही है। मतलब ढेरों टैंकर-ट्रैक्टर होने के बाद भी जनता प्यासी है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि निगम का पानी मैनेजमेंट प्लान कितना ‘असरदार’ है कि जनता को पानी के लिए बड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। मार्च में पानी के लिए इतना संघर्ष करना पड़ रहा है, अभी तो अपै्रल, मई और जून भी बचा हुआ है।
पहले थे बड़े टैंकर, अब कर दिए छोटे, जनता प्यासी
सुबह आठ बजे का वक्त था। भीषण गर्मी में जनता पानी का इंतजार करती दिखाई दी। नरवल कांकड़, नरवल गांव, कुमेड़ी कांकड़, गणेश धाम, मुखर्जी नगर सहित अन्य स्थानों पर पानी के लिए शुरू हो जाता है ‘भीषण’ संघर्ष। वार्ड में दौड़ रहे है टैंकर, लेकिन फिर भी पानी की पूर्ति नहीं हो पा रही। क्योंकि हर साल निगम द्वारा 20-20 हजार लीटर के टैंकर उपलब्ध कराए गए थे, लेकिन इस बार 6 हजार लीटर के टैंकर थमा दिए, जिससे व्यवस्था चरमराना शुरू हो गई। यहां पार्षद पति दिलीप मिश्रा सुबह से कमान संभाल लेते है, ताकि घर-घर पानी पहुंचाया जाए। रहवासियों ने बताया कि पानी के लिए घंटों इंतजार करते है। पहले पानी भरते है उसके बाद काम पर जाते है। पार्षद पति दिलीप ने बताया मैं हट जाऊ तो विवाद शुरू हो जाता है। इसीलिए सुबह से रात तक घर-घर पानी पहुंचाता हूं।
सांवेर रोड पर यही स्थिति
सांवेर रोड पर भी यही स्थिति है, यहां टैंकर की आवाज सुन कोई घर में जाकर पाइप लाता है तो कोई टैंकर पर चढ़कर ढक्कन खोलता है। एक साथ करीब 50 से ज्यादा लोग हाथों में पाइप लेकर टैंकर के पीछे दौड़ते है। बच्चों से लेकर बड़े और बुजुर्गों के हाथों में रहता है पाइप और 500 से एक हजार लीटर की केन। जैसे ही टैंकर रुकता है उस पर चढ़ने की होड़ मचना शुरू हो जाती है, क्योंकि सभी को कीमती पानी जो चाहिए। यहां नर्मदा पाइप लाइन नहीं है, इसलिए जनता को टैंकर के माध्यम से पानी की पूर्ति करना पड़ती है। इसमें एक बार टर्न आ गया तो फिर दो दिन इंतजार करना पड़ता है।
कई वार्डों में भीषण जलसंकट
यह स्थिति शहर के कई वार्डों में है। इसमें नर्मदा लाइन वाले इलाकों में भी पानी का संकट हो गया है। अब शहर में पानी की समस्या गहराना शुरू हो गई है। तेजी से तालाबों का जलस्तर भी घटता जा रहा है। निगम द्वारा उपलब्ध कराए गए टैंकर भी अब दम तोड़ने लगे हैं और नाकाफी हैं। इसीलिए टैंकर की डिमांड भी बढ़ रही है। इसमें निगम के जिम्मेदार अधिकारी भीषण संकट की आड़ में माफियाओं से तगड़ी सेटिंग कर लेंगे और फिर यह संख्या 100 से 400 तक आसानी से पहुंचेगी।
संकट बता बढ़ा रहे टैंकर
भीषण गर्मी में गिरते जलस्तर ने नगर निगम की चिंता बढ़ा दी है। इसके साथ ही निगम की जलप्रदाय व्यवस्था गड़बड़ा गई है। गर्मी में जलस्तर गिरने से शहर में प्रतिदिन होने वाली पेयजल सप्लाय का समय भी कम हो गया है। इसीलिए पानी के लिए रोजाना बड़ी मशक्कत करना पड़ रही है। ऐसे में शहरी सीमा में शामिल हुए गांव में स्थिति बहुत दयनीय हो गई है। इससे साफ दिखाई दे रहा है कि नगर निगम की मैनेजमेंट व्यवस्था पूरी तरह से फ्लॉप है।
पानी उपलब्ध कराना प्राथमिकता
वार्ड में छोटे-छोटे टैंकरों से पानी सप्लाय कर रहा है, जो पर्याप्त नहीं है। रहवासियों को पानी नहीं मिलता है और टैंकर आगे बढ़ा दे तो विवाद की स्थिति निर्मित होती है, इसलिए बड़ी सावधानी रखना पड़ती है और मैं खुद ही खड़े रहकर पानी बंटवाता हूं। क्योंकि जरा सी बात में विवाद हो जाता है। यहां बोरिंग सूख रहे है। वार्ड में 40 फीसदी स्थानों पर नर्मदा लाइन है, जबकि 60 फीसदी स्थान पर बोरिंग व टैंकर के भरोसे है। जनता को पानी उपलब्ध कराना ही हमारी प्राथमिकता है।
-दिलीप मिश्रा, पार्षद पति