21 Nov 2024, 17:23:59 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

खुल्लम-खुल्ला पुस्तक लोकप्रिय तथा वास्तव में अभिनय की क्षमता रखने वाले ऋषि कपूर की आत्मकथा है, जो अभी-अभी आकर पुस्तकों के शो-रूम पर सजी है। पुस्तकों की दुकान कहना अच्छा नहीं लगता। जब कपड़ों की दुकानों को शो रूम्स कहा जाने लगा है तो पुस्तकें तो बहुत सम्मानीय व आदरणीय हैं, उन्हें क्यों नहीं शो रूम्स में सजी हुई कहा जाए? खैर! बात हो रही थी ऋषि कपूर पर लिखी पुस्तक खुल्लम-खुल्ला की।

जैसा कि स्वाभाविक है चर्चित व्यक्तियों पर लिखी गई बुक पर बहुत चर्चा होती ही है और ‘‘खुल्लम-खुला’’ पर भी बातें शुरू हो गईं। लोगों की दिलचस्पी इसमें बहुत थी कि ऋषि कपूर के बेटे और वह भी चर्चित अभिनेता हैं रणवीर कपूर, की इसे लेकर क्या प्रतिक्रिया है। पत्रकार उनके आगे पीछे हो लिए और उनकी प्रतिक्रिया ले ही ली। रणवीर की प्रतिक्रिया थी-मैं अपने पिता का बहुत सम्मान करता हंू पर, उनके साथ मेरी एक निश्चित दूरी थी। डैड के मुकाबले मैं मॉम के ज्यादा करीब था और उनसे बातें शेअर करता था। ऋषि कपूर ने भी पिता के रूप में अपने बेटे के साथ संबंधों के बारे में लगभग यही कहा था। उन्होंने कहा- मैं पूरी तरह स्वीकारता हंू कि आजकल जैसे पिता-पुत्र के बीच मित्रवत संबंधों की बातें होती हैं, मेरे रणवीर के साथ ऐसे संबंध नहीं थे। इसे लेकर अब उन्हें कोई अफसोस है ऐसा उन्होंने नहीं स्वीकारा। एक समय हमारे परिवारों में वास्तव में ऐसा ही था जब पिता अपने काम में व्यस्त रहते थे। उनके साथ दोस्ताना व्यवहार की कल्पना भी नहीं की जाती थी। ‘मां’ जो अब ‘मम्मी’ भी कही जाने लगी थी अधिक निकट होती थी और उनके साथ लगभग सारी बातें बांटी जाती थीं। कई बार तो पहले-पहल मां को ही पता होता था कि बेटा-बेटी किसके नजदीक हो रहे हैं और किससे वह विवाह क मन बना चुके हैं? मां ही मौका देख कर ‘पापा’ को यह बात बतातीं थीं और साथ ही उन्हें इस बात पर मना लेती थीं कि इसके लिए युवा बेटे व बेटी को अपनी सहमति दे देना चाहिए और यही समय की मांग भी है।

समय ने करवट बदली और सब सामाजिक चिंतक और मनोवैज्ञानिक यहां तक कि मनोचिकित्सक भी बोलने लगे कि माता-पिता दोनों को ही अपने बेटों-बेटियों के साथ मित्रवत व्यवहार करना चाहिए व उनके दोस्त बनना चाहिए। बदले हुए माहौल में परिवारों की एकल व्यवस्था ने धीरे-धीरे माता-पिता को यह संकेत देना शुरू कर दिए कि अपने बच्चों के दोस्त बनिए नहीं तो उनके सामने ऐसी कई समस्याएं आ जाएंगी जिनका समाधान उन्हें नहीं मिल पाएगा तथा इसी कारण उनमें कई मानसिक चिंताए भी पनप जाएंगी, वह मानसिक रूप से बीमार हो जाएंगे और यहां तक की वह हताशा में आत्महत्या कर लेंगे। माता-पिता अब (पैरेंट्स) बहुत डर गए और वह पिता अपने रुतबे के पैडस्टल से नीचे उतरकर बच्चों के मित्र बन गए।

आज पैरेंट्स अपने बच्चों के फ्रेंड्स बनने की पूरी कोशिश करते हैं। सब और से यही सुझाया जा रहा है कि बच्चों के मानसिक विकास व संतुष्टि के लिए पैरेंट्स उनके जितना नजदीक हो सकते हैं उतना अधिक होने की कोशिश करें। ऋषि कपूर ने यही कहा कि आज जिस तरह बच्चे अपने पैरेंट्स के नजदीक हैं तब हमारे समय में अपने पैरेंट्स के साथ सम्मानीय दूरी रहती थी। ऋषि कपूर ने कहा कि अपने पिता राज कपूर के प्रति उनके मन में असीम सम्मान व आदर बना रहा और कहा- हम उनसे बहुत प्रभावित थे। उनकी कार्यशैली हमारे लिए आदर्श थी। ऋषि कपूर की यह बातें पूरे एक युग की बातें हैं। वह युग अपनी जगह सही था पर आज के युग की जो भी मांग है, जरूरतें हैं वैसा व्यवहार करना भी जरूरी है।

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