इटावा। चंबल की सुरम्य वादियों के बीच कलकल बहती चंबल नदी में विचरते विशेष प्रजाति के कछुये 'चिप्स' की खातिर शिकारियों की निगाह में चढ़े हुये हैं। भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के संरक्षण अधिकारी डॉ. राजीव चौहान का कहना है कि असल मे कछुए की चिप्स से बनने वाले सूप से इसको इस्तेमाल करने वाले के शरीर मे शारीरिक क्षमता का खासी तादात मे इजाफा होता है। सूप के इस्तेमाल के बाद सेक्स पॉवर बढ़ जाती है इसलिए कछुए के चिप्स का सूप सामान्य तौर पर थाईलैंड, मलेशिया और सिंगापुर में एक लाख से दो लाख रूपये मे उपलब्ध होता है। इन दोनों में सूप के लिए इस्तेमाल किये जाने के इरादे से ही कछुओं की चिप्स को बड़े पैमाने पर तस्करी करने का भी काम बदस्तूर जारी है। जिंदा हालत में कछुओं की तस्करी करना बेहद खतरनाक और मुश्किल भरा होता है, क्योंकि जिंदा हालत में कछुओं को ले जाने पर पुलिस के अलावा अन्य एजेंसियों के जरिए भी पकड़े जाने का खतरा बना रहता है, लेकिन अब कछुआ तस्करों ने कछुओं की चिप्स बनाकर के इसकी तस्करी का एक नया रास्ता निकाला है।
उन्होंने बताया कि आगरा के पिनहाट और इटावा के ज्ञानपुरी और बंसरी में दो जाति ऐसी हैं जो कछुए के चिप्स बनाने का काम करती हैं। कछुए की निचली सतह जिसे प्लैस्ट्रॉन कहते हैं, को काटकर अलग कर लेते हैं। उसे कई घंटे तक पानी में उबाला जाता है। उसके बाद इस परत को सुखाकर उसके चिप्स बनाए जाते हैं। एक किलो वजन के कछुए में 250 ग्राम तक चिप्स बन जाते हैं। निलसोनिया गैंगटिस और चित्रा इंडिका नामक कछुए की प्रजाति से प्लैस्ट्रॉन निकाली जाती है। इटावा की नदियों और तालाब मे 11 प्रजाति के कुछए पाये जाते हैं लेकिन चिप्स निलसोनिया गैंगटिस और चित्रा इंडिका से ही निकाली जाती है।
----425 किमी के तटीय क्षेत्र को राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी किया जा चुका है घोषित
इटावा के वन रेंज अफसर एन.एस.यादव का कहना है कि चंबल आदि नदियों से कछुए की चिप्स निकालने का काम करने में कछुआ तस्कर जुटे हुए हैं। ऐसी खबरें उनके गुप्तचरो के माध्यम से आ रही हैं। कछुए की चिप्स को निकालने वाले तस्करों को पकड़ने के लिए वन अमले की टीमों को सक्रिय कर दिया गया है।
हालांकि 1979 में सरकार ने कछुआ सहित दूसरे जलचरों को को बचाने के लिए चम्बल से लगे 425 किमी में फैले तटीय क्षेत्र को राष्ट्रीय चंबल सेंचूरी घोषित कर दिया था। बावजूद इसके 1980 से अब तक 85 हजार कछुए बरामद किए जा चुके हैं। 100 तस्कर पकड़े गए हैं। 24 तस्कर तो पिछले तीन साल में ही पकड़े जा चुके हैं। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कछुओं की तस्करी किस स्तर पर की जा रही है।
इटावा के एसएसपी अशोक कुमार त्रिपाठी का कहना है कि कछुओं को काट कर उनकी चिप्स बना कर तस्करी करने के मामले मे यूपी की स्पेशल टास्क फोर्स के एएसपी अरविंद चतुर्वेदी की अगुवाई मे प्रदेश भर मे सघन अभियान चलाया जा रहा है।
-----भारत से बाहर पहुंचते ही 5 हजार से 20 लाख रूपये हो जाती है कीमत
सबसे पहले कछुओं की चिप्स बनाए जाने का मामला साल 2000 में उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में सामने आया था लेकिन तब इस बात का अंदाजा नहीं था कि कछुआ की तस्करी के बजाय उनकी चिप्स भी बना कर के इस ढंग से बाजार में उतारी जा सकती है लेकिन अब जिंदा कछुआ के बजाय कछुओं की चिप्स का कारोबार बड़े पैमाने पर चल निकला है, जो हिंदुस्तान के रास्ते होते हुए थाईलैंड, मलेशिया और सिंगापुर आदि देशों तक जा पहुंचा है। जहां चंबल इलाके में मात्र 5000 रूपये प्रति किलोग्राम से बिकने वाली कछुए की चिप्स हिंदुस्तान के बाहर पहुंचते ही 20 लाख रूपये मूल्य तक की हो जाती है इसी लालच के चलते कछुओं का बड़े पैमाने पर शिकार किया जाना शिकारियों ने बेहतर और मुफीद मान लिया है।
गौरतलब है कि 31 मार्च को कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर कछुओं के अंतरराष्ट्रीय तस्कर सलीम शेख को 27 किलो खालें व कछुओं के सूखे हुए अंग बरामद कर पकडा गया। इसकी गिरफतारी के बाद एकाएक कछुओं की चिप्स बनाने वालों पर निगाह तेज हो गई। एक किलोग्राम चिप्स के लिए औसतन 50 से 70 कछुओं को मारा जाता है।