कुशीनगर। उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में जैन धर्म के 24वें एवं अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी के जीवन का अंतिम उपदेश स्थल पावानगर उपेक्षा के चलते आज तक अपनी वाजिब पहचान नहीं बना पाया है। महावीर स्वामी ने फाजिलनगर से सटे पावानगर में अपने जीवन का अंतिम उपदेश दिया था, लेकिन महावीर स्वामी की परिनिर्वाण स्थली पावानगर उनके अनुयायियों एवं सरकार की उपेक्षा के चलते वाजिब पहचान बनाने में अब तक सफल नहीं हो सका है।
भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण स्थली को लेकर भिन्नता के बावजूद इतिहासकारों एवं जैन धर्मावलंबियों का एक बड़ा समूह अपने विभिन्न दावों एवं प्रमाण के आधार पर पावानगर फाजिलनगर को ही उनकी निर्वाण स्थली होने का दावा करता है। इसके बाद भी इस स्थान का अपेक्षित विकास नहीं हो सका है। यहां अक्सर उनके देशी-विदेशी अनुयायी आते हैं, लेकिन यहां की दुर्दशा देखकर रुकने का नाम नहीं लेते।
-----भगवान महावीर स्वामी ने 72 वर्ष की आयु में त्यागी थी देह
540 ईसा पूर्व बिहार के वैशाली में जन्में सिद्धार्थ एवं त्रिशला के तीसरे पुत्र वर्धमान तीस वर्ष की आयु में ही अपने बड़े भाई की आज्ञा से गृह त्याग कर सत्य की खोज में निकल गये थे। रिजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे 12 वर्ष मौन साधना करने के बाद उनको कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद उन्होंने प्रथम उपदेश राजगृह के बितूलाचल पहाड़ी पर दिया। उन्होंने जैन धर्म के उपदेशों के प्रचार-प्रसार के लिए अपने अनुयायियों का एक संघ बनाया। जिसमें महिला-पुरुष मिलाकर 1400 लोग शामिल थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को पांच व्रत अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह तथा ब्रह्मचर्य का पालन करने की सीख दी। उनको सर्वोच्च ज्ञान प्राप्त व्यक्ति, जिन विजेता, पूज्य व बंधन रहित की उपाधि दी गई। वह पंचशील सिद्धांत के प्रवर्तक थे। महावीर स्वामी के निर्वाण स्थल के विभिन्न मत भिन्नताओं के बीच इतिहासकारों के एक समूह के अनुसार 72 वर्ष की आयु में 468 ईसा पूर्व वर्तमान उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के पावानगर फाजिलनगर में उन्होंने दीपावली के दिन अपने शरीर का त्याग कर महापरिनिर्वाण लिया था।
-----पावानगर में आने से कतराते हैं अनुयायी
जैन धर्म के अनुयायियों का मानना है कि महावीर स्वामी अपने जीवन के अंतिम समय में भी लोगों को यहां अपने उपदेश दिया करते थे। पावानगर फाजिलनगर में भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण स्थल पर श्री दिगम्बर जैन पावानगर सिद्ध क्षेत्र द्वारा वर्ष 1971 में जैन मंदिर का निर्माण कराया गया। इसके बाद मंदिर में पुजारी नियुक्त कर पूजा पाठ शुरू हुआ। इस मंदिर में भगवान महावीर स्वामी के अलावा प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव, नेमीनाथ, पार्श्वनाथ की मूर्तियां स्थापित की गईं। प्रति वर्ष उनके निर्वाण दिवस की सुबह देश के विभिन्न हिस्सों से यहां जैन अनुयायी पहुंचते हैं और शोभा यात्रा निकालने के साथ विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।
इस जैन मंदिर से एक किमी दूर छठियांव ग्राम सभा में उनके निर्वाण स्थल पर लगभग पौने दो एकड़ जमीन की बाउंड्री कर उसमें स्तूप बनवाया गया है। इसका निर्माण वर्ष 1994 मे कराया गया, लेकिन देखरेख के अभाव में वहां जाने से भी लोग कतराते हैं। जैन मंदिर के पुजारी प्रशांत जैन का कहना है कि क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों एवं प्रदेश सरकार की उपेक्षा के चलते इसका विकास नहीं हो सका जबकि देश-विदेश के अनुयायी यहां आते हैं। अगर इसका विकास हो जाये तो अनुयायियों के साथ यहां पर्यटक भी आने लगेंगे। जिससे इस क्षेत्र के विकास के साथ लोगों को रोजगार भी मिलने लगेगा।