हर देश में इंद्रधनुष पर तरह तरह की कहानियां हैं। लेकिन इंद्रधनुष बनता कैसे है और हर किसी को ये अलग अलग जगहों पर क्यों दिखता है। कैसे सूरज की रोशनी सात रंगों में बिखर जाती है।
इंद्र्रधनुष के सातों रंग सदियों से इंसान को अपनी तरफ खींचते आए हैं। हर देश में इंद्रधनुष पर तरह तरह की कहानियां हैं। लेकिन आखिर इंद्रधनुष बनता कैसे है और हर किसी को ये अलग अलग जगहों पर क्यों दिखता है। अगर एक प्रिज्म के जरिए देखा जाए तो पता चलता है कि कैसे सूरज की रोशनी सात रंगों में बिखर जाती है। दरअसल दिन में जो रोशनी हमें दिखती है वह असल में सफेद होती ही नहीं, बल्कि वह कई रंगों के प्रकाश का मिला जुला रूप है। बादल और बारिश इसका राज हैं। सूर्य की रोशनी जब बारिश की बूंदों में घुसती है तो वह परिवर्तित होती है और बूंद की अंदरूनी दीवार से टकराती है। फिर वह लौटती है लेकिन तब वह मूल रंगों में बिखर जाती है। विज्ञान की भाषा में इसे प्रकाश का वर्ण विक्षेपण यानी रंगों का बिखराव कहते हैं। इंद्रधनुष कितना बड़ा और गहरा होगा इंद्रधनुष देखने के लिए एक खास संयोग की जरूरत भी पड़ती है। इंद्रधनुष देखने वाले को सूरज और बारिश के बीच होना चाहिए। जरूरी है कि आपकी पीठ सूर्य की तरफ हो और मुंह बारिश की तरफ। यही कारण है कि हर व्यक्ति को अपना अलग इंद्रधनुष दिखता है। हम कहां खड़े हैं, इंद्रधनुष का इस पर आकार निर्भर करता है। लेकिन चाहे छोटा हो या बड़ा, सात रंगों वाला इंद्रधनुष वाकई कुदरत का एक करिश्मा है।