नई दिल्ली। ये है कानपुर के प्रणवीर सिंह जिनके घर के चौथे मंजिल पर सिर्फ दो कमरे हैं। इन दो कमरों में रखे पतंगों और मांझो के चरखों को आप अगर गिनना शुरू करें तो आपको कई घंटे लग जाएं। और अगर प्रणवीर सिंह आपको अपने एक-एक पतंग और मांझे की खासियत बताने लगे तो शायद कई दिन भी लग जाएं।
प्रणवीर के पास करीब 8 हजार पतंगें और 3 हजार मांझों के चरखे हैं। उनका दावा है की इतनी संख्या में पतंग और मांझे शायद ही किसी के पास हों। उन्हें बचपन से ही उनके दो शौक थे-एक क्रिकेट खेलने का और दूसरा पतंग उड़ाने का। जैसे-जैसे उनकी उम्र ढली उनके क्रिकेट का शौक तो खत्म हो गया पर पतंगबाजी का शौक और परवान चढ़ने लगा।
पतंग और मांझे के लिए पैसे चाहिए। वे कहते है कि मैं अभी छप्पन साल का हूं, करीब तीस साल पहले मुझे पतंग और मांझा खरीदने का जुनून हुआ। उनके पास 30 साल पुराने पतंग और मांझें हैं। वो खास हैं क्योंकि ना ही आपको अब पुराने जमाने वाला अच्छा कागज मिलेगा और ना ही धागा जिससे मांझा बनाया जाता है।
अब तो उनमें से काफी कंपनियां ही बंद हो गईं जो पतंग और मांझे के लिए सबसे उपयुक्त कागज और धागा बनाते थे। पिछले तीस सालों में वीरू भाई ने इतना पतंग और मांझा खरीद लिया है कि उनके घर में अब जगह नहीं है उन्हें रखने की। इसीलिए उन्होंने अपने पतंग और मांझों को बेचना शुरू किया है। लेकिन वो उन्हीं लोगों को बेचते हैं जो अच्छे पतंगबाज हैं और उनके चीजों की सही कद्र जानते हैं।