आमतौर पर यह कहा जाता है कि भगवान भक्ति की शक्ति के प्रभाव से पिघलते हैं, लेकिन मध्य प्रदेश के श्योपुर में महादेव शंकर अपने भक्तों की शरीरी ताकत के बल पर जिधर चाहो उधर घूम जाते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं साल में एक बार यह शिवलिंग अपने आप अपनी दिशा बदल लेता है। यही वजह है कि अपनी धुरी पर चारो दिशाओं में घूमने वाले इस अनोखे शिवलिंग के दर्शन का अलग ही महत्त्व है।
माना जाता है कि यह शिवलिंग संभवत: दुनिया में इकलौता है। शिवालयों की एक लंबी श्रृंखला की मौजूदगी को लेकर शिव नगरी के नाम से प्रसिद्ध श्योपुर में यूं तो कई शिवालय अपने आप में तरह-तरह की खूबियां समेटे हुए हैं, लेकिन यहां के गोविंदेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित शिवलिंग अनूठा है। किसी किले से भी ज्यादा मजबूत 24 खंभे की छतरी वाले इस मंदिर में स्थापित शिव की यह पिंडी उल्टी या सीधी, किसी भी दिशा में घूम जाती है। फिर क्या भक्त अपनी मनचाही दिशा में भोले बाबा को घुमाकर उनका पूजन कर लेते हैं।
बताया जाता है कि यहां आने व हर श्रद्धालु की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। आमतौर पर शिवलिंग का मुख नंदी की प्रतिमा की ओर रहता है, लेकिन यहां कोई भी भक्त शिवलिंग को घुमाकर उसका मुख किसी भी दिशा में कर सकता है। इससे भी बड़ा चमत्कार और चौकाने वाला तथ्य यह है कि साल में एक बार यह शिवलिंग अपने आप ही घूमता है। मंदिर की देखरेख करने वाले पंडित मोहन बिहारी शास्त्री की कई पीढ़ियां इस मंदिर की सेवा करते गुजर गईं।
सोलापुर से लाया गया था यह शिवलिंग
यहां के लोगों के अनुसार साल में एक बार रात के समय मंदिर की घंटिया अपने आप बजने लगती हैं। आरती होती है और शिवलिंग धूमने लगता है। इस शिवलिंग का मुख सदैव दक्षिण की ओर रहता है, लेकिन अपने आप कभी यह पूरब तो कभी उत्तर मुखी हो जाता है। आमतौर पर शिवलिंग उत्तरमुखी होते हैं, लेकिन इस शिवलिंग का मुख दक्षिण दिशा की ओर है। घूमने वाले शिवलिंग की प्राण-प्रतिष्ठा श्योपुर के गौड़ वंशीय राजा पुरुषोत्तम दास ने 294 साल पहले करवाई थी।
इससे पूर्व शिवलिंग सोलापुर महाराष्ट्र में बांबेश्वर महादेव के रूप में स्थापित था। गौड़ राजा शिवभक्त थे। उन्होंने शिवनगरी के रूप में श्योपुर नगर बसाया। इतिहासकारों के मुताबिक 17वीं शताब्दी में मुगल शासक औरंगजेब का उसके भाइयों के साथ युद्ध हुआ था। युद्ध में श्योपुर के राजा मनोहरदास ने औरंगजेब का साथ दिया था। विजय मिलने पर औरंगजेब ने खुश होकर राजा मनोहर दास को सोलापुर महाराष्ट्र का किलेदार नियुक्त किया। सोलापुर में 1722 में राजा का निधन हो गया था।
राजा मनोहर दास के शव को सोलापुर से श्योपुर लाकर छारबाग में अंतिम संस्कार किया गया था। शव के साथ ही सोलापुर से विशेष प्रकार के शिवलिंग को श्योपुर लाया गया। 1722 में छार बाग में शिव पंचायतन की विधि-विधान से प्राण-प्रतिष्ठा राजा पुरुषोत्तमदास गौड़ द्वारा कराने का उल्लेख इस मंदिर में लगे शिलापट्ट पर भी अंकित है। इस शिवालय को अब गोविंदेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।