कांचीपुरम। स्थानीय लोग उस विशाल शिलाखंड को तमिल जुबान में वानीराई काल (आसमानी देवता का पत्थर) कहते हैं, तो अंग्रेजी में उसे कृष्णाज बटर बॉल यानी भगवान कृष्ण की मक्खन की गेंद कहा जाता है। तमिलनाडु के महाबलीपुरम् कस्बे के बाहरी हिस्से में चट्टानी ढलान पर 45 डिग्री कोण पर रखा गेंद जैसा दिखने वाला 20 फीट व्यास का यह बोल्डर ऐसा लगता है मानो अभी लुढ़क पड़ेगा। अनुमान है कि 250 टन वजनी यह विशाल बोल्डर गुजरे 1300 वर्षों से यहां ऐसी ही खतरनाक स्थिति में टिका हुआ है।
प्राकृतिक संरचना नहीं है ये
इस अनोखे बोल्डर को आसपास हमेशा स्थानीय और बाहरी सैलानियों की भीड़ जमा रहती है। लोग उसकी परिक्रमा करते हैं और धड़कते दिल के साथ उसके नीचे खड़े होकर तस्वीरें खिंचवाते हैं। इस बोल्डर को लेकर तीन जनश्रुतियां प्रचलित हैं। एक राय यह है कि ईश्वर ने अपनी शक्ति को साबित करने के लिए इसे यहां स्थापित किया है। कुछ लोग कहते हैं कि दूसरे ग्रहों से आए लोगों ने इसे यहां रखा है, जबकि तीसरी राय है कि यह एक कुदरती संरचना है। हालांकि भूविज्ञानियों का साफ कहना है कि प्राकृतिक तौर पर शिलाओं में होने वाले क्षरण से इस तरह के असामान्य आकार के बोल्डर नहीं बनते हैं।
पल्लव नरेश ने सबसे पहले प्रयास किया
इतिहास में दर्ज है कि दक्षिण भारत पर 630 से 668 ईस्वी में राज करने वाले पल्लव वंश के महाराजा नरसिम्हवर्मन ने सबसे पहले इस बोल्डर को अपने स्थान से हटाने का प्रयास किया था, लेकिन सफल नहीं हो सके। इसके बाद सन् 1908 में मद्रास के तत्कालीन अंगे्रज गवर्नर आर्थर लॉली ने यह सोचकर इसे हटवाने की कोशिश की कि अगर यह कभी लुढ़क पड़ा तो कस्बे को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। गवर्नर लॉली ने इसे हटाने के लिए सात हाथी लगवाए थे, लेकिन बोल्डर टस से मस नहीं हुआ।