रायगढ़। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में निवास करने वाली बिरहोर जनजाति विशेष जनजातियों में शामिल है। बिरहोर जनजाति के संबंध में ये मान्यता है कि ये जिस पेड़ को छू देते हैं उस पर कभी बंदर नहीं चढ़ता।
एके सिन्हा ने अपनी किताब छत्तीसगढ़ की ‘आदिम जनजातियां’ में बिरहोर जनजाति के विषय में विस्तार से लिखा है। बिरहोर जनजाति खाने के लिए बंदर का शिकार करती है लेकिन वो ऐसा क्यों करते है इसके पीछे भी एक कहानी है जो रामायण काल से सम्बंधित।
शिकार से पहले मंत्र पढ़कर बुलाते हैं भूत
बिरहोर जनजाति के लोग शिकार कर जीवनयापन करते हैं। शिकार करने से पहले बिरहोर लोग धार्मिक क्रिया करते हैं, जिससे पता चल सके कि शिकार के लिए जानवर मिलेगा या नहीं। इसके लिए तीन आदमी एक जगह बैठते हैं और एक चावल लेकर थोड़ा-थोड़ा सबके हाथों में देता है फिर सब जोहार-जोहार करके मंत्र पढ़ते हैं और भूत को बुलाते हैं।
भूत बताता है शिकार मिलेगा या नहीं
मंत्र पढ़कर भूत बुलाने के बाद जो आदमी चावल देता है उसके शरीर में भूत प्रकट होता है। जब वह कांपने लगता है तो मान लिया जाता है कि उस व्यक्ति पर भूत प्रकट हो गया है। उसे एक बोतल शराब देते हैं और पूछते हैं कि शिकार मिलेगा या नहीं? जब भूत बता देता है कि शिकार मिलेगा तो थोड़ी सी शराब जमीन पर गिराते हैं। इसके बाद बचे हुए शराब को सभी पीते हैं और शिकार करने निकल जाते हैं।
बंदर खाने के पीछे है यह कहानी
एक कोल्तीन परिवार में दो बेटियां थीं। किसी से अवैध संबंध स्थापित होने से बडी लड़की गर्भवती हो गई। बच्चे के जन्म लेने पर उसके मां-बाप शर्म महसूस करने लगे। इसी कारण रात को ही उसके मां-बाप झोपड़ी को गिराकर भाग गए ताकि बच्चा और उसकी मां दोनों दबकर मर जाए।
सुबह गांववालों ने बच्चे और उसकी मां को झोपड़ी से बाहर निकाला। बच्चा वहीं पला बढ़ा। बच्चे की छटी और नामकरण होने से पहले ही उसकी मां मर गई। बच्चा गांव में ही रहकर बढ़ने लगा। जब भी बच्चा पवित्र स्थल या कोई समारोह में जाता था, तो गांव वाले उसे मना करते थे। बच्चा जब बड़ा हुआ तो लोग उसे समाज में इज्जत की नजर से नहीं देखते थे। उसने गांव छोड़कर जंगल में शरण ले ली और बिरु पर्वत में रहने लगा।
बिरू पर्वत की गुफा में रहने के कारण उसका नाम बिरहोर पड़ा। एक दिन वह कोरवा लड़की को उठाकर ले आया और उससे विवाह कर लिया। विवाह के बाद उसने रस्सी बनाने का काम शुरू किया। गाय बांधने की रस्सी (गेरवा) बनाकर उसकी पत्नी गांव में बेचने जाती थी। 3-4 साल से गांव वाले महिला को अकेले देख रहे थे। लोगों ने महिला से एक दिन पूछा तुम्हारा पति कहां है? अगले दिन उसे भी ले आना। दूसरे दिन युवक अपनी इज्जत के डर से गांव नहीं गया। उसकी पत्नी ने भी वहां जाना बंद कर दिया।
देगनगुरु नाम के एक व्यक्ति को बाजा बनाने के लिए बंदर की खाल चाहिए थी। इस बाजे से वे इष्ट देव को जागृत करना चाहते थे। देगनगुरु लंका के राजा रावण के पास गए और कहा कि मुझे बंदर की खाल चाहिए। रावण ने कहा कि मेरे पास तो खाल नहीं है, मैं कहां से दूंगा। बिरू पर्वत पर बिरहोर रहता है, उसी के पास जाओ वही देगा।
बंदर की खाल पाने के लिए देगनगुरु बिरहोर के पास आए। देगनगुरु जब बिरहोर के घर में घुसने लगे तो बिरहोर डरकर भागने लगा। देगनगुरु ने समझाया कि उन्हें बाजा बनाने के लिए बंदर की खाल चाहिए। बिरहोर बोला मैं खाल कैसे दूंगा। देगनगुरु ने बताया कि मोहलाइन के रेशे से जाल बना लेना और जब बंदर पानी पीने आएगा तब उसे फंसा लेना।
देगनगुरु ने कहा था खा लेना बंदर
बंदर पानी पीने आया और जाल में फंस गया, इसके बाद बिरहोर देगनगुरु को बुला लाया। देगनगुरु ने बंदर की खाल निकाल ली। इसके बाद बिरहोर बोला कि बाकी शरीर का क्या करेंगे? देगनगुरु ने कहा कि बंदर के शरीर को खा लेना। इसी दिन से लोगों ने बंदर खाना शुरू कर दिया।