लंदन। वह एक नायिका थी। भारतीय मूल की ब्रिटिश जासूस, नाम था उसका नूर इनायत खान। ब्रिटेन में इन दिनों बहस चल रही है कि ब्रेग्जिट के बाद 50 पाउंड के नोट पर किसकी फोटो छपनी चाहिए? यह ब्रिटिश करंसी का सबसे बड़ा नोट है और इसे 2020 में प्लास्टिक फॉर्म में री-इश्यू किया जाएगा। इस बहस के बीच वहां के इतिहासकारों ने नूर इनायत खान की फोटो छापने को लेकर कैम्पेन शुरू कर दिया है। संभावना जताई जा रही है कि इस नोट पर नूर की फोटो छपेगी।
सामाजिक कार्यकर्ता जेहरा जैदी की इस कैम्पेन का इतिहासकार और बीबीसी के एंकर डैन स्नो ने समर्थन किया है। वहीं संसद में विदेश समिति के चेयरमैन टॉम टुगेनडाट और बरौनेस सायीदा वारसी ने भी इस संबंध में अपील की है। जैदी ने बताया कि नूर इनायत खान एक प्रेरणादायी महिला थीं। वह एक ब्रिटिश, सोल्जर, लेखिका, मुस्लिम, भारत की आजादी की समर्थक, सूफी, फासिस्म के खिलाफ फाइटर थीं और एक नाइका थीं। आज जिस दुनिया में हम रह रहे हैं वह उस जमाने में उसी दुनिया की बात करती थीं।
13 सितंबर को गोली मार दी गई
जून 1943 में उन्हें एसओई ने उन्हें फ्रांस के उस हिस्से में भेज दिया जहां नाजियों का प्रभाव था। यहां जाने वाली वह पहली महिला थीं। वह वहां पेरिस के प्रॉस्पर रेसिस्टेंस नेटवर्क में रेडियो प्रजेंटेटर बन गई। वहां उनका कोडनेम था मेडलिन। नाजी शासन शुरू होने के बाद उनकी कंपनी आखिरी कंपनी रह गई, जिसका संचालन पेरिस और लंदन के बीच हो रहा था। अक्टूबर 1943 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। सितंबर 1944 में खान और तीन अन्य एसओई एजेंट्स को दचाऊ कॉन्संट्रेशन कैम्प ले जाया गया। वहां 13 सितंबर को उन्हें गोली मार दी गई। खान का आखिरी शब्द था- लिबर्टी मतलब आजादी।
श्रबानी ने खान की जिंदगी पर लिखी किताब
साल 2008 में श्रबानी बसु ने खान की जिंदगी पर एक किताब लिखी। जिसका शीर्षक था स्पाई प्रिंसेस लाइफ आॅफ नूर इनायत खान। नवंबर 2012 मे प्रिंसेस एनी ने गॉर्डन स्क्वायर गार्डन में खान की प्रतिमा का अनावरण किया था। खान का फोटो ब्रिजानी नोट पर लगाने की चर्चा इन दिनों जोरों पर है।
यह सम्मान पाने वाली एथनिक माइनॉरिटी की पहली शख्स
यदि खान की फोटो ब्रिटिश करंसी में छपती है तो वह यह सम्मान पाने वाली एथनिक माइनॉरिटी की पहली शख्स होंगी। खान का जन्म 1914 में मॉस्को के क्रेमलिन में तब हुआ था जब उनके माता-पिता रूस के राजघराने में अतिथि के तौर पर पहुंचे थे। उनकी मां अमेरिकी थी और उनके पिता भारतीय थे। वह टीपू सुल्तान के वंशज भी थे। वर्ल्ड वॉर 2 के दौरान खान ने फ्रेंच रेड क्रॉस में नर्स का काम किया। बाद में उन्होंने इंग्लैंड में महिलाओं की एयरफोर्स जॉइन कर ली। खान की फ्रेंच पर अच्छी पकड़ थी, इसे देखते हुए उन्हें स्पेशल आॅपरेशंस एग्जीक्यूटिव ने रेडियो आॅपरेटर के तौर पर नियुक्त किया।