नई दिल्ली। पाकिस्तान में 25 जुलाई को चुनाव होने वाले हैं। लेकिन इस चुनावी सरगर्मी के बीच एक अदृश्य ताकत भी है जो पाक चुनाव परिणामों पर बड़ा असर डाल सकती है। वह ताकत है पाकिस्तान के 'डीप स्टेट' की। दरअसल 'डीप स्टेट' किसी भी राज्य की वो अवधारणा है जिसमें सेना, खुफिया विभाग और नौकरशाही परदे के पीछे से राज्य की नीतियों को प्रभावित करते हैं। जबकि लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार एक मुखौटा भर होती है।
मेमोगेट स्कैंडल मे गिरफ्तारी का खतरा झेल रहे अमेरिका में पाक के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी का कहना है कि इस बार पाक चुनाव ईमानदारी से होने की संभावना कम है। सेना वहां की न्यायपालिका की मदद से पंजाब प्रांत के सबसे ताकतवर नेता नवाज शरीफ की पीएमएल-एन की हार सुनिश्चित करने मे लगी है।
पाकिस्तान की न्यायपालिका ने नवाज शरीफ को अयोग्य घोषित करने के साथ-साथ पीएमएल-एन के कई उम्मीद को अयोग्य घोषित कर दिया है। वहीं सेना के खुफिया विभाग के अधिकारी पीएमएल-एन के बड़े नेताओं को पूर्व क्रिकेटर इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ में शामिल होने की धमकी दे रहे हैं। चुनावों के ठीक पहले मीडिया की आजादी पर भी लगाम लगा दी गई है।
इशारों पर चलने वाली सरकार चहाती है सेना
हक्कानी का कहना है कि पाकिस्तान की सेना इस्लामाबाद मे ऐसी सरकार चाहती है जो सेना के हुक्मों पर चले न कि ऐसी सरकार जिसे जनता विश्वास प्राप्त है। हांलाकि पाकिस्तानी सेना के इस तरह के प्रयोग अब तक व्यर्थ ही गए हैं। पाकिस्तान के राजनीतिक इतिहास पर प्रकाश डालते हुए हक्कानी कहते हैं कि जब 1970 में पाकिस्तान के पहले आम चुनावों में पूर्वी पाकिस्तान की आवामी लीग के नेता शेख मुजीबुर रहमान ने रिकार्ड बहुमत हासिल किया तो पाकिस्तानी सेना के वेजह हस्तक्षेप के कारण ही बांग्लादेश बना और पाक के दो टुकड़े हो गए।