वॉशिंगटन। अमेरिकी ट्रेजरी ने भारतीय करेंसी को उस निगरानी सूची में डाल दिया है, जिसमें ऐसे देश शामिल हैं, जिनकी विनिमय दर नीति पर उसे संदेह है। इस सूची में चीन समेत चार अन्य देशों के नाम शामिल हैं। अमेरिकी ट्रेजरी के मुताबिक निगरानी सूची में उन देशों को शामिल गया जाता है, जो बड़े व्यापारिक साझेदार हैं और जिनकी विनिमय दर पर ध्यान देने की जरूरत है।
इसमें भारत को जोड़ा गया है, जबकि पिछले साल अक्टूबर में अर्द्धवार्षिक रिपोर्ट के वक्त कांग्रेस ने इसमें चीन, जापान, जर्मनी, कोरिया और स्विट्जरलैंड शामिल किए थे। अमेरिका दो रिपोर्ट तक इस सूची में देशों को रखता है, जिससे सुनिश्चित किया जा सके कि देशों के प्रदर्शन में सुधार अस्थायी नहीं, बल्कि स्थायी कारणों से है। हालांकि अमेरिका का कहना है कि उसे कोई बड़ा व्यापारिक साझेदारी देश नहीं मिला, जिसने अपनी मुद्रा से छेड़छाड़ की है, लेकिन दो अन्य मानकों के कारण पांच अन्य देश इस सूची में शामिल हैं। वहीं चीन को इस सूची में इसलिए डाला गया, क्योंकि अमेरिका के व्यापार घाटे में उसका बड़ा हिस्सा है।
व्यापार घाटे में सुधार के लिए होगा काम
अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्टीवन नूचिन ने कहा सरकार इस व्यापार घाटे के सुधार के लिए काम करेगी। अनुचित मुद्रा नीतियों पर नजर रखी जाएगी और उनसे निपटा जाएगा। कांग्रेस ट्रेजरी से रिपोर्ट मांगती है, जिससे उन देशों की पहचान की जा सके जो अपनी मुद्रा दर को कृत्रिम तरीके से नियंत्रित करते हैं, जिससे व्यापार में उन्हें फायदा मिल सके। जैसे, विनिमय दर नीची रखते हैं, जिससे सस्ते निर्यात को बढ़ावा मिल सके। रिपोर्ट के मुताबिक भारत का अमेरिका के साथ 1499 अरब रुपए का ट्रेड सरप्लस, यानी व्यापार अधिशेष है। भारत ने 2017 की पहली तीन तिमाही में विदेशी मुद्रा की खरीद में वृद्धि की। फिर भी रुपए की कीमत ज्यादा है।
जर्मनी का करेंट अकाउंट सरप्लस सर्वाधिक
यूरोपीय करेंसी यूनियन का हिस्सा होने के चलते जर्मनी अकेले अपनी मुद्रा यूरो को नियंत्रित नहीं कर सकता। इसके बावजूद उसे इस सूची में डाला गया है, क्योंकि उसका व्यापार करेंट अकाउंट सरप्लस दुनिया में सबसे ज्यादा है। तीन साल से यह कम भी नहीं हो रहा। अमेरिका के मुताबिक सूची में शामिल सभी देश आर्थिक सुधार करें, जिससे सरप्लस कम हो।