वॉशिंगटन। रूस ने अब अमेरिका और पश्चिमी देशों के समक्ष एक और गंभीर समस्या खड़ी कर दी है। अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार रूसी जहाज पानी के नीचे कम्युनिकेशन केबलों के आसपास घूम रहे हैं, जिनके द्वारा इन केबलों को नुकसान पहुंचाए जाने की आशंका है। रूस का इरादा चाहे ऐसा न हो, लेकिन अमेरिका और पश्चिमी देशों का मानना है कि रूसी जहाजों के 400 फाइबर-आॅप्टिक केबल्स के आसपास घूमने से दुनिया के ज्यादातर कॉल्स, ई-मेल्स और टेक्स्ट मैसेज के साथ-साथ रोज के दस ट्रिलियन डॉलर वित्तीय आदान-प्रदान प्रभावित होगा। हालांकि इस संबंध में रूस की ओर से अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है।
1980 के बाद पहली बार बनी ऐसी स्थिति
यूएस और यूरोपीयन कमांड के कमांडर जनरल कर्टिस स्कापैरोटी ने कांग्रेस में कहा कि हम पानी के अंदर रूस के नौसैनिक और खासकर रूसी सबमरीन की एक्टिविटी को देख रहे हैं, जो कि हमने 1980 के बाद पहली बार है। इन केबल्स के प्रभावित होने से एशियाई देशों का एक भी देश अपना पैसा सऊदी अरब नहीं भेज पाएगा, जो वहां से आॅयल खरीदता है। इससे अमेरिकी सेना को अफगानिस्तान और मिडिल ईस्ट के कट्टरपंथियों से लड़ने में दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। वहीं यूरोप में जो स्टूडेंट्स पढ़ रहे हैं, वे अमेरिका में अपने पेरेंट्स से स्काइप से बात नहीं कर पाएंगे।
रूस के मकसद का नहीं हो पा रहा खुलासा
कनाडा में सूचना प्रौद्योगिकी सुरक्षा सलाहकार स्टीफन वाटकिंस ने कहा ऐसा कोई पुख्ता सबूत तो नहीं है कि रूस के जहाज केबल्स को नुकसान पहुंचाने के मकसद से वहां खड़े हैं, लेकिन जहाज उन क्रिटिकल केबल्स के ऊपर क्यों रुके हैं, वो भी तब जब आॅटोमेटिक सिस्टम ट्रैकिंग ट्रांसपोंडर आॅन नहीं है। यह अपने आप में कई सवाल खड़े कर रहा है।
एक लाइन भी टूटी तो होगा बड़ा नुकसान
जितनी भी इंटरनेट और कम्युनिकेशन की केबल हैं, वे पानी के अंदर फाइबर वायर से होते हुए दुनिया को एक देश से दूसरे तक जोड़ने का काम करती हैं। समुद्र के नीचे चलने वाली 6,20,000 मील की दूरी पर ये फाइबर आॅप्टिक केबल हैं, जो पृथ्वी के लगभग 25 गुना है। ज्यादातर लाइन प्राइवेट है, जिसमें गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी कंपनियां भी शामिल हैं। इसमें से अगर एक भी लाइन टूटी तो बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा।