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चीन की फिर धमकी- क्या होगा अगर हम उत्तराखंड-कश्मीर में घुस जाएं, मोदी वॉर्निंग नजरअंदाज ना करें

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Aug 9 2017 11:39AM | Updated Date: Aug 10 2017 10:10AM
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बीजिंग। डोकलाम पर चीन ने मंगलवार को एक बार फिर भारत को सख्त लहजे में धमकी दी है। चीन का कहना है कि 1962 में नेहरू के समय में भी चीन ने भारत को कई बार समझाया लेकिन अपना रवैया नहीं बदला। चीन के अखबार ग्लोबल टाइम्स ने कहा, यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन की चेतावनी को नजरअंदाज करते रहे तो सैन्य संघर्ष होकर रहेगा। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने एक बार फिर डोकलाम पर भारत को चेतावनी दिया है। 

 
मोदी वॉर्निंग नजरअंदाज ना करें
अखबार के संपादकीय का कहना है कि भारत अगर लगातार चीन की चेतावनी को नजरअंदाज करता रहा तो निश्चित ही युद्ध होकर रहेगा। जबकि भारत की ओर से कूटनीतिक तौर पर मुद्दे को सुलझाने की कोशिशें जारी हैं। मीडिया ने यह भी कहा है कि भारत 1962 की जंग का सबक भूल गया है, नेहरू ने चीन को कमतर आंका था, लेकिन मोदी वॉर्निंग नजरअंदाज ना करें। 
 
...तो नई दिल्ली क्या करेगी 
भारत ने सुझाव दिया था कि दोनों देश डोकलाम से एक साथ अपनी सेनाएं हटा लें। लेकिन, चीन ने मंगलवार को इस सुझाव को मानने से इनकार करते हुए कहा कि नई दिल्ली क्या करेगी अगर वह उत्तराखंड कालापानी या कश्मीर में घुस जाएं। 
 
भारत को बताया अनुभवहीन
ग्लोबल टाइम्स के अनुसार, नई दिल्ली आज भी 1962 के जवाहरलाल नेहरू की तरह अनुभवहीन है। भारत खुद को विपरीत हालात से निपटने के लिए तैयार नहीं कर रहा बल्कि देश की जनता को सब कुछ ठीक होने का दिलासा दे रहा है। इसमें भारतीय अखबार का भी जिक्र है जिसके अनुसार, चीन कभी भारत पर हमला नहीं कर सकता। यहां तक कि सैन्य कार्रवाई का भी खतरा नहीं उठाएगा।
 
युद्ध ही एकमात्र विकल्प
ग्लोबल टाइम्स में कहा गया है कि चीन भी युद्ध नहीं बल्कि शांति की बहाली चाहता है और साथ मिलकर आगे बढ़ना चाहता है। लेकिन अगर भारतीय सेना लगातार चीन की धरती पर मंडराएगी तो स्थितियां अलग हो सकती हैं। संपादकीय में आगे कहा गया है, अगर भारत चालाकी करेगा तो युद्ध को रोकना मुश्किल है और भारत लगातार चीन की चेतावनी को अनसुना करता रहा तो युद्ध ही एक मात्र विकल्प बचेगा। 1962 में भी नेहरू को लगा था कि चीन हमला नहीं करेगा लेकिन भारत अब भी उसी तरह की अनुभवहीनता दिखा रहा है।
 
55 सालों में भी नहीं सीखा भारत
चीनी मीडिया के अनुसार, 55 साल बीत गए लेकिन भारत सरकार वैसे ही अनुभवहीन है जैसी 1962 में थी। 1962 के युद्ध की सीख आधे दशक तक भी नहीं याद रही। यदि नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से इन चेतावनियों को नजरअंदाज करना जारी रहा तो स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाएगी। करीब दो माह से सिक्किम सेक्टर के डोकलाम में चीनी और भारतीय जवान तैनात हैं। चीन की सरकार, मीडिया थिंक टैंक की ओर से करीब हर रोह भात को युद्ध संबंधित चेतावनी दी हा रही है। भारत की ओर से इसके लिए शांतिपूर्ण समझौते का प्रयास किया जा रहा है।
 
मोदी को भारतीय हितों के लिए खड़ा होने वाला नेता मानते हैं जिनपिंग
वॉशिंगटन। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ऐसे नेता के रूप में देखते हैं जो भारतीय हितों के लिए खड़े रहने और क्षेत्र में चीन को रोकने के इच्छुक देशों के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं। ये मानना है एक शीर्ष अमेरिकी-चीनी विशेषज्ञ का, भारत-चीन के बीच जारी डोकलाम सीमा विवाद पर पैनी नजर रखे हुए हैं।  
 
सेंटर फार स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (सीएसआईएस) की बोनी एस ग्लेसर ने इंटरव्यू में कहा, मेरा मानना है कि शी जिनपिंग प्रधानमंत्री मोदी को एक ऐसे नेता के रूप में देखते हैं जो भारतीय हितों के लिए खड़े रहना और क्षेत्र में चीन को रोकने के इच्छुक अन्य देशों, खासतौर से अमेरिका और जापान के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं। उन्होंने कहा, मुझे लगता है इसी बात से चीन चिंतित है। एशिया के लिए वरिष्ठ सलाहकार और वॉशिंगटन डीसी स्थित शीर्ष अमेरिकी थिंक टैंक सीएसआईएस में चाइना पावर प्रोजेक्ट की निदेशक ग्लेसर का मानना है कि चीन को भारत के साथ अपने तनावपूर्ण संबंधों से कुछ लाभ होता नजर नहीं आ रहा है।
 
चीन की नई चाल : भारतीय पत्रकारों को बुलाकर दिखाई सैन्य ताकत
डोकलाम विवाद में दबाव बढ़ाने के इरादे से चीन ने भारतीय पत्रकारों के दल को एक सैन्य ट्रेनिंग सेंटर का दौरा कराकर अपनी ताकत दिखाई। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (चीनी सेना) के सीनियर कर्नल ली ने इस दौरान धमकाने के अंदाज में कहा, टकराव टालने के लिए भारतीय सेना चीन की जमीन से हट जाए। चीनी सरकार प्रायोजित यह दौरा उस समय प्रोपेगेंडा बन गया, जब चीनी सेना ने डोकलाम में जारी तनाव को लेकर कड़ा रुख अपनाया।
 
कर्नल ली ने कहा, भारतीय सेना ने चीनी भूमि पर आक्रमण किया है। आप लिख सकते हैं कि चीनी सैनिक क्या सोच रहे हैं। मैं एक सैनिक हूं और देश की अखंडता कायम रखने के लिए अपना सर्वस्व दूंगा। यह हमारी प्रतिज्ञा व संकल्प है। पत्रकारों को जिस सैन्य ट्रेनिंग सेंटर ले जाया गया था वह बीजिंग के बाहरी इलाके में स्थित है। चीन द्वारा भारतीय पत्रकारों को संभवत: पहली बार इस तरह का दौरा कराया गया। ये जगह बीजिंग के करीब ही है। यहां भारतीय पत्रकारों को चीन के युद्ध कौशल के बारे में भी बताया गया। भारतीय पत्रकारों को पीएलए की शार्प शूटिंग स्किल्स, दुश्मनों को बंदी बनाना और आतंकवाद से मुकाबले का तरीका दिखाया गया।
 
गैरीसन पीएलए का सबसे पुराना ट्रेनिंग सेंटर है। यहां फिलहाल 11 हजार चीनी सैनिक ट्रेनिंग ले रहे हैं। हालांकि, ली ने साफ कर दिया कि चीनी सैनिकों की तैयारियों का डोकलाम विवाद से कोई ताल्लुक नहीं है।
 
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