मेलबर्न। एक नए अध्ययन के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के चलते अंटार्कटिका से बर्फ का पिघलना सदियों तक जारी रह सकता है। ‘ईस्ट अंटार्कटिक आईस शीट’ (ईएआईएस) के अलावा विभिन्न ऊंचाइयों पर चट्टानों के पिघलने का अध्ययन कर शोधार्थी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि हाल के भूगर्भिक अतीत में ग्लेशियर तेजी से पिघले हैं और यह कई सदियों से जारी है। उपग्रह पे्रक्षणों से पता चलता है कि समुद्र के गर्म होने से अंटार्कटिक बर्फ की परत फिलहाल पतली हो रही है।
समुद्री बर्फ की परत की अस्थिरता को लेकर खास चिंता है, जहां गहरी होती घाटियों में बर्फ का कम होना जारी रह सकता है। वेलिंगटन की विक्टोरिया यूनिवर्सिटी में पोस्टडॉक्टोरल रिसर्च फेलो रिचर्ड जोंस के नये शोध से संकेत मिलता है कि अस्थिरता की ओर ले जानी वाली प्रक्रियाएं महज मामूली जलवायु परिवर्तन से शुरू हो सकती हैं। जोंस ने बताया कि भविष्य में समुद्री स्तर में बदलाव में अंटार्कटिका के योगदान का अनुमान लगाने में ये नतीजे अहम साबित हो सकते हैं।
उन्होंने बताया, खासतौर पर तब जब समुद्र का स्तर कई मीटर ऊपर उठाने में ईएआईएस में पर्याप्त बर्फ हैं। बर्फ को कम करने के लिए मामूली मात्रा में जलवायु में अंतर की जरूरत होगी और यह सदियों तक चल सकता है। जोंस ने बताया कि पहले के कई अध्ययनों में पश्चिम अंटार्कटिका पर ध्यान रहा है, जिसने पूर्वी अंटकार्कटिका से इन अवलोकनों को अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है। यह शोध नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित किया गया था।