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दार्जिलिंग : मालकिन की जान बचाने के लिए तेंदुए से भिड़ा कुत्ता, ऐसे बचाई जान...

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Aug 17 2019 11:43AM | Updated Date: Aug 17 2019 11:45AM
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दार्जिलिंग। आपने कुत्तों की वफादारी को लेकर कई किस्से पढ़े और सुने होंगे। कई बार कुत्ते जान की बाजी लगाकर अपने मालिक की जान बचाते हैं। इसका हालिया उदाहरण दार्जिलिंग में देखने को मिला। जहां टाइगर नाम का कुत्ता अपनी 58 साल की मालकिन की जान बचाने के लिए बुधवार को तेंदुए से भिड़ गया। इस कुत्ते की उम्र महज चार साल है। तेंदुए से घिरी मालकिन को देखकर टाइगर (कुत्ते का नाम) ने ना सिर्फ तेज आवाज में भौंकना शुरू किया बल्कि बिना डरे उस पर (तेंदुए) हमला भी बोल दिया। टाइगर की बहादुरी के कारण 58 साल की अरुणा लामा की जिंदगी बच गई। 
 
बहादुर बेखोफ निडर ओर सहासी टाइगर (कुकूटका नाम ) ने अपनी मालकिन को बिल्ली की नस्ल के तेंदुए के हमले से बचाने के लिए सलाम करते है। जानकारी के मुताबिक सोनादा निवासी अरुणा लामा को घर के स्टोररूम से कोई आवाज सुनाई दी। वहां जीवित मुर्गे रखे हुए थे। जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला, उनके होश उड़ गए। वहां तेंदुआ बैठा हुआ था। घबराहट में उन्होंने दरवाजा बंद करने की कोशिश की लेकिन तब तक तेंदुए ने उन पर हमला बोल दिया।
 
 
तेंदुए को भागना पड़ा - तेंदुए से खुद को बचाने के लिए जब अरुणा संघर्ष कर रही थीं, टाइगर उनकी सहायता के लिए बीच में कूद पड़ा। तेज आवाज में भौंकते हुए टाइगर अरुणा और तेंदुए के बीच मजबूत दीवार की तरह खड़ा हो गया। वह लगातार तेज आवाज में भौंकता रहा। टाइगर की बहादुरी के आगे तेंदुए ने भी हार मान ली और वह वहां से भाग निकला। स्टोररूम में इस संघर्ष के दौरान अरुणा को कुछ चोटें जरूर आई हैं लेकिन उनकी जिंदगी बच गई और वह इसके लिए टाइगर की शुक्रगुजार भी हैं। 
 
'कर्ज अदा किया है टाइगर ने' - अरुणा की बेटी स्मृति ने बताया, 'तेंदुए के साथ बहादुरी से लड़ते हुए टाइगर ने मेरी मां की जिंदगी बचा ली। अगर वह सही समय पर ऐसा नहीं करता तो पता नहीं आज क्या हो जाता।' उधर, अस्पताल में इलाज करा रहीं अरुणा ने कहा, 'आज उसने (टाइगर) एक पुराना कर्ज अदा किया है। 
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सड़क पर भूखा मिला था टाइगर' - उनकी बेटी स्मृति ने बताया, 'दरअसल, 2017 में राज्य में एक बड़े आंदोलन के दौरान सड़क पर हमने टाइगर (कुत्ते को)को भूखा पाया था। उस समय आंदोलन की वजह से पहाड़ियों पर करीब 104 दिन का बंद था और भोजन की कमी थी। इसके बावजूद हम उसके लिए लगातार भोजन की व्यवस्था करते रहे। खाना देने के बाद हम चाहते थे कि वह अपने असली मालिक के पास लौट जाए लेकिन वह कुछ देर में ही दोबारा हमारे पास लौट आता। इसके बाद वह हमारे परिवार का हिस्सा बन गया।' उन्होंने रुंधे गले से आगे कहा, 'अगर हम (टाइगर और अरुणा का परिवार) नहीं मिलते, तो शायद मैं इस कहानी को बताने के लिए जीवित नहीं होती।' 
 

 

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