जिनेवा। औद्योगिक उद्देश्यों के लिए होने वाली खेती और खाद्य उद्योग से पर्यावरण को उतना ही नुकसान हो रहा है जितना जीवाश्म ईंधनों से तथा भूमि के इस्तेमाल की आदतों में बदलावों के बिना 2030 तक उत्सर्जन 45 प्रतिशत घटाने का लक्ष्य हासिल नहीं हो सकेगा। जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल की ‘‘जलवायु परिवर्तन एवं भूमि’’ के बारे में गुरुवार को यहाँ जारी विशेष रिपोर्ट में यह बात कही गयी है। इस रिपोर्ट को बुधवार को पैनल की बैठक में स्वीकार किया गया था।
दुनिया के 52 देशों के 107 वैज्ञानिकों ने मिलकर दो साल की मेहनत इसे तैयार किया है तथा भूमि उपयोग और पर्यावरण पर उसके प्रभाव पर यह पहली विस्तृत रिपोर्ट है। इसमें कहा गया है कि दुनिया भर में करीब 50 करोड़ लोग ऐसे इलाकों में रहते हैं जहाँ जमीन बंजर होती जा रही है। मरुभूमि और बंजर बन रही जमीन वाले इलाकों में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भी ज्यादा होता है और प्राकृतिक आपदायें ज्यादा आती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है
वनस्पतियों पर जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभाव और आबादी के बढ़ने के साथ सबके लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि जमीन की उत्पादकता बनी रहे। इसका तात्पर्य यह है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने में भूमि के योगदान की सीमायें हैं-मसलन ऊर्जा क्षेत्र की फसलें और वनीकरण। वृक्षों और भूमि को कार्बन के प्रभावी भंडारण में समय लगता है। जैव ऊर्जा की जरूरतों का प्रबंधन इस प्रकार होना चाहिये कि खाद्य सुरक्षा, जैव विविधता और भूमि की गुणवत्ता संबंधी जोखिमों से बचा जा सके।