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यूरोपीय, ओशिनियाई देशों के साथ व्यापार बढ़ाने पर चर्चा

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Mar 29 2019 10:51PM | Updated Date: Mar 29 2019 10:51PM
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नई दिल्ली। भारत ने यूरोपीय और ओशिनियाई देशों के साथ आर्थिक सहयोग तथा व्यापार बढ़ाने के लिए उनके राजनियकों के साथ चर्चा की है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने शुक्रवार को बताया कि वाणिज्य सचिव अनूप वधावन ने यहाँ गुरुवार को यूरोपीय और ओशिनियाई देशों के राजदूतों और उच्चायुक्तों के साथ चर्चा की। उन्­होंने कहा कि भारत एक विकासशील देश है जबकि  यूरोपीय संघ और ओशिनिया देश मुख्य रूप से विकसित हैं।

इस वजह से हमारी  महत्वाकांक्षाएं, आकांक्षाएं और संवेदनाएं कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में इन  देशों के साथ मेल नहीं खातीं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि भारत, यूरोपीय  संघ और ओशिनिया देश इन  मुद्दों को सुलझाने में सक्षम होंगे और निकट भविष्य  में आपासी समझ विकसित कर किसी प्रकार के औपचारिक समझौते तक पहुंच पाएंगे। ओशिनियाई देश प्रशांत महासागर और उसके  आसपास के क्षेत्र के द्वीपीय देश हैं जिन्­हें उनकी भौगोलिक समानता के कारण  ओशिनियाई देशों के रूप में जाना जाता है। ओशिनियाई  देशों की कम्पनियों की ओर से अप्रैल 2002 से दिसंबर 2018 के बीच भारतीय बाजार में करीब 103.42 करोड़ डॉलर का  निवेश किया गया।

भारत की विदेशी निवेश का करीब 1.7 फीसदी हिस्सा ओशिनियाई  क्षेत्र के देशों में जाता है। इन देशों में ऑस्ट्रेलिया , फिजी, न्यूजीलैंड  और वानूआतू प्रमुख हैं।  भारत और यूरोप के  बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2011-12 में 150 अरब डॉलर से ज्यादा का रहा। हालाँकि, वैश्विक  मंदी और कॅमोडिटी की कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव के कारण व्यापार प्रभावित  हुआ, लेकिन हाल के समय में इसमें सुधार के संकेत मिल रहे है। वर्ष 2017-18  के दौरान भारत और यूरोपीय देशों के बीच 130.1 अरब डॉलर का व्यापार हुआ।  निर्यात और आयात दोनों ही मोर्चे पर दहाई अंक की वृद्धि दर्ज की गई। भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का एक चौथाई  हिस्सा यूरोपीय देशों से आता है।

इसी तरह भारत की ओर से विदेशों में किए  जाने वाले निवेश का करीब 29.8 फीसदी हिस्सा यूरोप में जाता है। डॉ. वधावन ने कहा कि विकासशील और विकसित देशों के साथ होने वाली व्­यापार वार्ताओं की तरह ही यूरोपीय और ओशिनियाई देशों के साथ भी लंबे समय से ऐसी वार्ताएँ की जा रही हैं। ये देश प्रमुख व्यापारिक साझेदार होने के साथ ही भारत  में निवेश के प्रमुख स्रोत भी हैं। इनमें व्­यापार की प्रचुर  संभावनाएँ हैं जिनका लाभ उठाया जा सकता है। चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ और ओशिनिया में उपलब्ध अवसरों को समझने के लिए सरकार, निर्यात, व्यापार और निवेश से संबंधित संस्थानों, निर्यातकों और व्यवसायों आदि के हर स्तर पर संपर्क बनाये रखना जरूरी है। उन्होंने एक-दूसरे की बाध्यताओं को समझते हुए सभी पक्षों की रजामंदी से बीच का रास्ता निकालने पर जोर दिया। 

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