शैलेश पाठक इंदौर - 98260-11032
इंदौर। देसी चने का स्टॉक मध्यप्रदेश और राजस्थान की मंडियों में पिछले साल की समानावधि की तुलना में 40-45 प्रतिशत कम है। वहीं कई सटोरिये इससे भी कम स्टॉक की अफवाह फैला रहे हैं जिससे चने की कीमतें पिछले एक महीने से धीमी गति से बढ़ती जा रही हैं।
12 अगस्त 2015 को जो चना कांटा इंदौर में 4400-4500 रुपए बिक रहा था वो बढ़कर 4650-4700 रुपए पर पहुंच गया है। इसी तरह पिछले साल इन दिनों देशभर में चने का भरपूर स्टॉक था। यही कारण है कि फसल आने से अगले 9 महीने तक 2800-3000 रुपए के आसपास घूमता रहा लेकिन सटोरियों की सक्रियता के चलते चने के दाम बढ़ गए हैं।
हालांकि तेजी का एक कारण कुछ विशेषज्ञ यह भी बता रहे हैं कि पिछले साल इसी अवधि के अंतराल 300 डॉलर प्रति टन ऑस्ट्रेलिया में भाव ऊंचे चल रहे हैं। इस समय वहां 800 डॉलर से कम में कोई बिकवाल नहीं है। इसी तरह डॉलर में अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है, जिससे आयातित चना भारतीय पोर्ट पर कुछ महंगा बैठ रहा है।
हालांकि अब कुछ विशेषज्ञों का मानना है चने का भविष्य अब लंबी तेजी का नहीं है। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में भी जो बारिश की कमी थी वो पिछले दिनों अच्छी बारिश हो जाने से दूर हो गई है और वहां फसलों को पुन: लाभ के संकेत दिखाई दे रहे हैं।
इधर, महंगाई के भय से केंद्र सरकार द्वारा स्टॉक सीमा कभी भी लागू करने की दहशत भी स्टॉकिस्टों और व्यापारियों को अपना स्टॉक बेचने पर मजबूर कर रही है। वहीं ऐसी भी चर्चा जोरों पर है कि एनसीडीईएक्स में रखा स्टॉक भी स्टॉक सीमा के दायरे में लिया जा सकता है।
इससे देशभर के स्टॉकिस्टों में घबराहट है जिससे चने की कीमतों में गिरावट का रुख देखने को मिल रहा है। चना कांटा पिछले दिनों जो 5000 रुपए तक पहुंच गया था वो घटकर 4700 रुपए पर आ गया है। इन दामों पर लंबी तेजी नजर नहीं आ रही है। दूसरी ओर काबली चने की कीमतें धीरे-धीरे बढ़ने लगी हैं।
यह बात जरूर है कि मटर के भाव इस बार 40 प्रतिशत नीचे चल रहे हैं। यही मटर पिछले साल 600 रुपए क्विंटल ऊपर बिक रही थी। इस वजह से इस बार देसी चने की तेजी की रफ्तार भी कम रहेगी, लेकिन विदेश में भाव काफी ऊंचे होने और घरेलू बाजार में स्टॉक सीमा लागू करने में देरी होती है तो चने के वर्तमान दामों में कुछ सुधार बन सकता है। अन्यथा वर्तमान भाव पर भी कोई लंबी तेजी नजर नहीं आ रही है।
चने के कम स्टॉक की अफवाह फैलाकर सटोरिये भले ही चने की कीमतें बढ़ाने में कुछ समय के लिए सफल हो गए हों लेकिन अब बाजार पुन- नीचे की ओर जाना शुरू हो गया है। दूसरी ओर दालों के बढ़ते दामों को रोकने के लिए सरकार कभी भी स्टॉक सीमा सख्ती से लागू कर सकती है। ऐसी भी चर्चा है कि स्टॉक सीमा के दायरे में एनसीडीईएक्स के गोदामों में रखा स्टॉक भी आ सकता है जिससे स्टॉकिस्टों में घबराहट बनी हुई है और वो बिकवाली पर उतर आए हैं। जिससे कीमतों में और गिरावट आ सकती है।
वायदा में सख्ती बढ़ी
पिछले हफ्ते रिकॉर्ड स्तर छूने के बाद चने की कीमतों पर काबू पाने के लिए एक्सचेंज और रेगुलेटर ने बड़ा एक्शन लिया है। इस हफ्ते खरीद सौदों पर 10 फीसदी स्पेशल कैश मार्जिन लगाने के बाद एक्सचेंज ने इसकी पोजीशन लिमिट में 50 फीसदी की भारी कटौती कर दी है।
अब मेंबर पूरे चना वायदा में 1.5 लाख टन से ज्यादा में पोजीशन नहीं ले सकेंगे, पहले ये सीमा 3 लाख टन की थी। इसी तरह से क्लाइंट के लिए इसे 1.5 लाख टन से घटाकर 75 हजार टन कर दिया गया है। क्लाइंट की पोजीशन लिमिट 15,000 टन से घटाकर 7,500 टन कर दी गई है।
यानी 21 सितंबर से जब से नियम लागू हो जाएंगे, क्लाइंट स्तर पर कोई भी चना वायदा में 7,500 टन से ज्यादा की पोजीशन नहीं ले सकता है। कुछ जानकरों का मानना है एक्सचेंज द्वारा एकाएक सख्ती करना भी एक नीतिगत निर्णय है। इसका प्रमुख कारण कहीं सरकार एक्सचेंज में रखे स्टॉक पर भी स्टॉक सीमा लागू नहीं कर दे? सख्ती से सरकार अपना ध्यान हटा सकती है।